डॉ. सुशील उपाध्याय
ijrail udh युद्ध के उन्माद में रोमांच खोजने वालों को इजराइल और गजा की स्थिति से सबक लेना चाहिए। अनगिन लाशों से कौन खुशी पा रहा होगा ? केवल गिद्ध और सियार खुश हो सकते हैं। मौत के इस तांडव में इजरायल की ताकत अभेद्य नहीं थी। अब भले ही इजरायल गजा में लाखों लोगों को मार डाले, लेकिन अपने उन बच्चों, महिलाओं और नागरिकों को जिंदा नहीं कर सकता जो हमास के हमले में मारे गए हैं। लाशों के बदले में लाशों के ढेर कोई समाधान नहीं है। युद्ध कभी भी शांति का विकल्प नहीं है और ना ही हो सकता है। ijrail udh
ijrail udh जिस इजराइल को दुश्मनों से निपटने में दुनिया में सबसे ज्यादा सक्षम माना जाता था, आज वो भी उतना ही लाचार है जितना 9/11 के वक्त अमेरिका था। अब, बदले की चाहत इस इलाके को और भयावह बनाएगी। इसे धधकते शमशान और अनदेखी चीखें में बदल देगी। सारा गजा खाली कराकर शांति आ जाएगी, इसकी कोई गारंटी नहीं है। 70 साल पहले इस प्रयोग को स्टालिन ने चेचन्या में करके देखा था। सारी आबादी को साइबेरिया निर्वासित कर दिया था, लेकिन शांति नहीं आई। रूस की देह पर चेचन्या आज भी दहकता है। ijrail udh
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ijrail udh आज के हालात से भारत को इतना ही सबक लेना चाहिए कि अपने पड़ोस को संभालकर रखे। सचेत और तैयार रहना बड़ी सुरक्षा है। वैसे, दोस्ती से बड़ी कोई और सुरक्षा दीवार नहीं है, दोस्ती चाहे पड़ोस में हो या घर के भीतर। बीते सौ, डेढ़ सौ साल को देख लीजिए, युद्ध कोई सुरक्षा नहीं देता। लाशों और मलबे के ढेर देकर जाता है। करुण रुदन देकर जाता है। भविष्य को अनाथ करके जाता है। अपंग और अनाथ देकर जाता है।
ijrail udh हिटलर ने जो कुछ यहूदियों के साथ किया, आज इजरायल वैसा ही फलस्तीनियों के साथ कर रहा है।
ijrail udh एक बात और, हिटलर ने जो कुछ यहूदियों के साथ किया, आज इजरायल वैसा ही फलस्तीनियों के साथ कर रहा है। लाखों यहूदी गैस चौंबर्स में मारे गए थे, अब हजारों फलस्तीनी स्कूलों, अस्पतालों और शरण स्थलों पर हो रही बमबारी में मारे जा रहे हैं। माना जाता है कि जिसने अतीत में पीड़ा भीगी हो, वो करुण और संवेदनशील होगा ही, लेकिन आज यह बात सच नहीं दिखती। स्मरण रहे, गजा पट्टी पूरी तरह तहस-नहस हो जाए, तब भी बदले की चिंगारी जिंदा रहेगी। चारों तरफ नफरत की फसल लहलहा रही होगी।
ijrail udh आज, सही और गलत का प्रश्न पूरी तरह गौण हो गया है। बस, लाशों के ढेर और घायलों की मर्माहत करने वाली पीड़ा ही सच है। झुलस चुके बच्चों के चेहरे देखिए। बच्चों को देखिए, इन्हें यहूदी और मुसलमान की तरह मत देखिए। इंसान की तरह दर्द महसूस कीजिए। युद्ध का विरोध कीजिए। बम और बंदूकें शांति नहीं ला सकती। सुलह, समझौते और सह-अस्तित्व से ही शांति आ सकेगी। आ सकती है। भगवान कृष्ण की बात याद रखिए, शांति पाने के लिए किया गया कोई भी समझौता (संधि) किसी भी युद्ध की तुलना में अत्यधिक मूल्यवान होता है।
ये भी याद रखिए,
वैर से वैर समाप्त नहीं होता
अवैर से ही वैर समाप्त होता है।
धम्म पद, भगवान बुद्ध