घरों में बुजुर्गों का हो रहा अपमान, कुत्ते जी रहे हैं लक्जरी जिन्दगी

राष्ट्रीय

-राम महेश मिश्र

इस विषय पर लेख लिखते समय मेरी उंगलियाँ लड़खड़ाने लगी हैं। कुछ देर के लिए दिमाग सुन्न सा होता महसूस हुआ है। उंगलियों और माथे की कुछ देर मालिश की, सहसा आँखें बन्द हुई और कुछ देर के लिए हम चुपचाप चिन्तन करते रहे। लेख लेखन का मन बन चुका था, आधार बिन्दु भी नोट कर चुके थे, सो यह काम करना ही था, अतः फिर उंगलियाँ चल पड़ीं और यह लेख आपके सामने है। कृपया इसे अक्षरशः पढ़ेंगे, गुनेगे और सोचेंगे कि भारत को भारत कैसे बनाए रखा जा सकता है?

कुत्ता सहित पालतू पशु पालने का रिवाज बढ़ा आज कुत्ता बड़ा महंगा हो गया है। और महंगा हो गया है उसका रखरखाव, उसका भोजन, उसकी देखरेख, उसका इलाज और उसकी साज-सज्जा । अपने कुत्ते के लिए लोग निज आवास यानी बंगले में स्पेशल रूम बनवाने लगे हैं। महानगरों में कुत्तों के लिए पेट्स स्पॉ बन गए हैं, केयर सेन्टर खुल गए हैं, उनके चारबर या यूँ कहें, ब्यूटीपार्लर सेवारत हैं। उनके बाल सेट किए जाते हैं, नाखून काटे होते हैं, उनकी मसाज होती है, उन्हें बश कराया जाता है, सुगन्धित पदार्थों से नहलाया जाता है, ड्रायर से बाल सुखाए जाते हैं, उनकी पॉलिशिंग होती है, आदि-आदि। इस सब पर अच्छा खासा खर्च होता है, युवा भारतीय स्त्री व पुरुष इसके लिए पर्याप्त समय भी देते हैं।


हम हाल में एक टी.वी. चैनल पर न्यूज की पाठशाला के पाठों को सुन रहे थे। उसमें कुत्तों एवं अन्य पालतू पशुओं पर जारी रिपोर्ट का अंश सुनने और गुनने योग्य था। पालतू जीवों में कुत्तों के अलावा बिल्ली, साँ और मगरमच्छ तक की चर्चा थी। पालकों की पहली पसन्द कुत्तो को बताया गया। बताया कि साल 2019 में भारत में 2 करोड़ पालतू कुत्ते थे। वर्ष 2023 में यह संख्या 3 करोड़ 10 लाख हो गयी है। पेट्ल केयर का बाजार बीते बरस 2022 में 74,000 करोड़ रुपए का था, जो वर्ष 2032 में बढ़कर 2.10 लाख करोड़ रुपए का हो जाने का अनुमान है। यानी हर साल 19 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हो रही है।

केवल पेट्स मार्केट का तेजी से होता विस्तार बातब्य हो, वर्ष 2022 में केवल कुत्तों के भोजन का बाजार 4,000 करोड़ रुपए का था जो 2025 तक 10,000 करोड़ हो जाने का अनुमान है। कुत्तों को तमीज व व्यवहार विज्ञान सिखाने के लिए अब बाजार में प्रशिक्षित ट्रेनर्स की सेवायें मिलने लगी हैं, जिस पर प्रति डॉग 5,000 से 10,000 रुपए हर महीने खर्च आता है। पेट्स बोडिंग भी खुल गए हैं जो हर रोज 500 से 900 रुपए कुत्ता रखने का लेते हैं। इसमें रखरखाव, भोजन व चिकित्सा आदि का दायित्व शामिल है। कुत्ते की ग्रूमिंग पर 1,000 से 2,000 रुपए का व्यय आता है। एक स्थान से दूसरे स्थान को ले जाने हेतु 3,500 रुपए तक का खर्च वे संस्थाएँ लेती हैं। कुत्ता मर जाए तो रु0 6,000 का खर्च उसकी अन्त्येष्टि पर आता है।

सूत्र बताते हैं कि अब कुत्तों के होटल भी खुल गए हैं, जहाँ 24 घण्टे के लिए रु. 4,500 तक का बिल आता है। इन होटलों में कुत्ते की स्वीमिंग, स्पॉ, कैफ़े आदि की सुविधा है। और हाँ ! कुछ स्पेशल होटल ऐसे खुल गए हैं, जिनमें बुकिंग कुत्ता मालिक के नाम से नहीं, बल्कि कुत्ते के नाम से होती है, यानी कुत्ता पालक तभी उस होटल में रह सकता है, जब वह कुत्ते को भी साथ में रखे। कुत्तों को खोने अर्थात लापता हो जाने से बचाने के लिए स्पेशल जी.पी.एस. बनाए गए हैं, जिसका खर्च 1,500 से 4,500 रुपए तक आता है। कुत्ते की खेल बॉल (कांग बॉल) लगभग रु. 300-700 में आती है, बिस्तर 1,000 से 2,000 में, गले की बेल्ट 300 से 500 रुपए में आती है। कुत्ते का भोजन बड़ा महंगा है। कुछ खाद्य पदार्थ तो ऐसे हैं जे रु.4,000 से रु.9,000 प्रति किलोग्राम तक बाजार में मिलते हैं। कुत्तों के लिए अनेक दवाएँ आ गयी हैं और भाँति-भाँति के महंगे कपड़े मार्केट में मिलने लगे हैं। कुछ लोग कुत्ते का जन्मदिन भी मनाते हैं, जिसके लिए स्पेशल केक आती है।

ऋषियों के देश में माता-पिता की बढ़ती उपेक्षाः कुत्तों और कुत्ता मालिकों के इस देश में ऐसे बुजुर्ग माता-पिता भी हैं, जिन्हें सन्तान के विशाल बंगले में एक ठीक-ठाक कमरा मुहैया होना बड़ा मुश्किल होता है। उनके दो जून के सादा भोजन की व्यवस्था में कठिनाई होती है। उनके कपड़ों, चश्मों, दवा पर होने वाला साधारण खर्च बेटे-बहू को बहुत भारी जान पड़ता है। इस कारण वृद्धाश्रम विस्तार लेने लगे हैं। वर्ष 2016 में भारत में लगभग 500 वृद्धाश्रम यानी ओल्ड एज होम थे जो 2022 में बढ़कर 728 हो गए हैं, अर्थात् वृद्धाश्रमों में सालाना 25 फीसदी का इजाफा हो रहा है। साल 2021 में भारत में 13.80 करोड़ वृद्धजन यानी बुजुर्ग थे, जिनमें पुरुष 7.10 करोड़ और महिलाएँ 6.70 करोड़ थीं। बीती शताब्दी में वर्ष 1961 में कुल आबादी का 5.6 प्रतिशत बुजुर्ग थे, जो वर्ष 2021 में 10 प्रतिशत हो गया है। बताया गया है कि वर्ष 2031 तक बुजुर्ग सकल आबादी का 13 प्रतिशत हो जायेंगे। हाल में सीरियल अभिनेता डॉ. अमित त्रिवेदी द्वारा 200 वृद्धों को रोज निःशुल्क टिफिन पहुँचाने की सूचना भी चर्चा का विषय बनीं । ज्ञातव्य हो इन वृद्धों में 75 प्रतिशत पूर्व के करोड़पति हैं और वे बाल-बच्चों वाले हैं।

जन्मदाता व संरक्षक की देखभाल हो गयी भारीरू आंकड़े बताते हैं कि ऋषियों के राष्ट्र हिन्दुस्थान में मात्र 27 प्रतिशत सन्ताने ही माता-पिता को अपने साथ रखकर उनकी देखभाल कर रही हैं। हेल्पेज इण्डिया नाम की संस्था का सर्वे कहता है कि भारत के 35 प्रतिशत बेटे-बहू और बेटी वमाद अपने माता-पिता को साथ रखकर उनकी देखभाल व सेवा करने के कत्तई इच्छुक नहीं हैं। रिपोर्ट कहती है कि 14 प्रतिशत युवा बेटे बहुओं ने कहा कि वे कभी-कभी ही माता-पिता की देखभाल कर सकते हैं, हमेशा नहीं। 13 प्रतिशत बच्चों ने कहा कि वे कभी-कधार ही उनकी बच्चों के होते बुजुर्ग सेवा हेतु बन गए एनजीओ ऐसी स्थितियों में कुछ स्वयंसेवी संस्थाएँ खड़ी हो गयी हैं, जो बुजुर्गों से पैसा लेकर उनकी सेवा करने लगी हैं। इस पर वे रु. 6,000 महीने तक उगाहती हैं। सुनने में तो यहाँ तक आया है कि कुछ लोग बिना एनजीओ बनाए एकल सेवा दे रहे हैं। आपको यह जानकर अचरज होगा कि इस सेवा में वे किन्हीं बुजुर्ग के पास जाकर उनसे 1/2 घण्टा बातें करते हैं, उन्हें हँसाते हैं। सम्पन्न बुजुर्ग इतने भर के लिए उन्हें अच्छा खासा पैसा देते हैं। क्योंकि, कोई उनसे बात करने वाला नहीं होता। बुजुर्गों का कहना है कि इन लोगों के बात करने से उनका मन बहलता है, हमें अच्छा लगता है और कुछ समय कट जाता है। इसलिए वे बात करने के लिए उन्हें बुलाते हैं। कुछ ने कहा कि इससे उन जरूरतमन्द व्यक्तियों के परिवार संचालन में हमसे कुछ सहायता भी हो जाती है।

आईएएस अफसर के दादा-दादी की आत्महत्या ने देश को रुलायाः आयु के वार्धक्य के साथ बुजुर्ग व्यक्तियों की समस्याओं में निरन्तर वृद्धि हो रही है। हाल में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के चरखी दादरी कस्बे में घटी एक घटना ने समूचे देश को झकझोरकर रख दिया है। जगदीश चन्द्र आर्य (78) और भागली देवी (77) नाम के बुजुर्ग दम्पत्ति ने सल्फास की गोलियाँ खाकर अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली। प्राण पखेरू उड़ने से पहले पुलिस को अपने हाथ से सौप सुसाईड नोट में वृद्ध जगदीश चन्द्र ने बताया कि उनके बेटों के पास 30 करोड़ की सम्पत्ति है। उनका पौत्र भारतीय प्रशासनिक सेवा का अधिकारी अर्थात आईएएस अफसर है। बड़े बेटे ने उन्हें अपने पास नहीं रखा तो दो वर्ष यह दम्पत्ति वृद्धाश्रम में रहे। छोटे बेटे के पास गए, लेकिन वहाँ भी उन्हें दो वक्त की रोटी नसीब नहीं हुई। बुजुर्ग पनी लकवे का शिकार हो गयी है। छोटी बहू बासी भोजन देती थी। हम दोनों ने ऐसा मीठा जहर खाने से बेहतर समझा कि जहर खाकर खुद को खत्म कर लें।

सावधान! अब और कहीं देर न हो जाए अभी अप्रैल माह के पहले सप्ताह में आयी इस सूचना ने दिल व दिमाग सभी को चकरा दिया है। चिन्तनशील व्यक्तियों की आत्मा चीत्कार कर उठी है। सरकारों द्वारा बुजुर्गों के लिए बनाए गए कठोर नियमों-कानूनों के बावजूद घट रही ऐसी घटनाएँ गम्भीर चिन्ता का सबब बन रही हैं। जीव दया उचित है, कुत्तों तथा अन्य पशुओं की सेवा भी वाजिब है, लेकिन जन्म देने वाले तथा अपना पेट काटकर बच्चों को सुयोग्य बनाकर समाज देश को सौंप देने वाले माता- पिता की इस तरह की उपेक्षा किसी भी तरह उचित नहीं कही जा सकती। इस और समाज और सरकार अर्थ-जगत और अध्यात्म जगत सभी को गम्भीरता से चिन्तन, विमर्श और प्रयत्न करने की आवश्यकता है। सावधान! अब और कहीं देर न हो जाए।

(लेखक भाग्योदय फाउंडेशन के अध्यक्ष व राष्ट्रीय प्रस्तावना के आध्यात्मिक सम्पादक हैं।)

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