मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा गीता संवाद कार्यक्रम डा. श्रीप्रकाश मिश्र की अध्यक्षता मे संपन्न
कुरुक्षेत्र।
सम्पूर्ण विश्व में जिस ग्रंथ के प्रति सर्वाधिक लोगों की श्रद्धा, विश्वास है, जो ग्रंथ संसार के अनेक अनेक भाषाओं में अनुदित हुआ, जिससे इस ग्रंथ के नायक एवं युगनायक भगवान श्री कृष्ण का हर व्यक्ति को परिचय मिलता है। जो भारत, भारत की संस्कृति को समेटे सार्वभौम ग्रंथ है, वास्तव में वह श्रीमद्भगवदगीता रूपी दिव्य अनंत दिव्यताओं से परिपूर्ण है।श्रीमद्भगवदगीता हर युग की आवाज बन कर सदैव मानव में युगधर्म के बोध का जागरण करती है। यह उदगार पंजाब सरकार की पूर्व कैबिनेट मंत्री डा. लक्ष्मीकांता चवला ने मातृभूमि सेवा मिशन आश्रम परिसर में गीता सेवा संवाद कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि व्यक्त किये। कार्यक्रम का शुभारम्भ योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण के चित्र पर डा. लक्ष्मीकांता चवला एवं मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डा. श्रीप्रकाश मिश्र संयुक्त रूप से माल्यार्पण, पुष्पार्चन एवं दीप प्रज्ज्वलन से हुआ। मातृभूमि शिक्षा मंदिर के बच्चों ने डा. लक्ष्मीकांता चवला के मातृभूमि सेवा मिशन आश्रम पहुंचने पर पुष्पगुच्छ देकर स्वागत किया। डा. लक्ष्मीकांता चवला ने मातृभूमि सेवा मिशन की समस्त सेवा प्रकल्पों का अवलोकन किया। डा. लक्ष्मीकांता चवला ने कहा मातृभूमि सेवा मिशन वास्तविक रूप से समाज के असहाय एवं जरूरतमंद बच्चों के सर्वागीण विकास में निःस्वार्थ भाव से समर्पित है। गीता की शिक्षाओ को आत्मसात कर मातृभूमि सेवा मिशन समाज के जरूरतमंद बच्चों के जीवन में आशा का संचार कर उन्हे सब प्रकार से सशक्त बना रहा है। श्रीकृष्ण ने उस समय के प्रचलित ज्ञान को एक नया रूप, नयी युगीन व्याख्या दी। आदर्श को व्यवहारिक पक्ष दिया, क्योंकि जब तक आदर्श व्यवहार में नहीं उतरता, तब तक वह आदर्श आदर्श ही रह जाता है, जीवन को उससे कोई लाभ मिल पाना असम्भव होता है। श्रीकृष्ण ने रूढ़ियों, परंपराओं, रीति-रिवाजों से अलग हटा कर उसे एक नया रूप दिया। इस प्रकार श्रीमदभगवद्गीता युग की आवाज बनी।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा श्रीमद्भगवदगीता में अर्जुन की जिज्ञासा और भगवान श्री कृष्ण के उत्तर से उपजा जीवात्मा और परमात्मा का अद्भुत संवाद समाया है। ऐसा संवाद जो मनुष्य मात्र के हृदय में उठते प्रश्नों पर आधारित है और इन सबका समाधान परक उत्तर स्वयं भगवान श्रीकृष्ण देते हैं। इसलिए यह पवित्र ग्रंथ ज्ञान से भरा है। यह उस परिस्थिति में दिया गया संदेश व समाधान है, जब धर्म का लोप हो चुका था, लोग अपने कर्तव्य को भूल बैठे थे। मर्यादाओं का लोप हो चुका था। वास्तव में युद्ध भूमि में दिया गया भगवान श्रीकृष्ण का यह अमृत ज्ञान युद्ध उकसाने के लिए नहीं था, अपितु यह ज्ञान मनुष्य की कुंठित हो चुकी चेतना को सत्य, न्याय, सेवा-सहायता हेतु जागृत करने के लिए था। मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा डा. लक्ष्मीकांता चावला को स्मृति चिन्ह एवं अंगवस्त्र भेंट कर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में मिशन के सदस्य, विद्यार्थी एवं अनेक गणमान्य जन उपस्थित रहे।