विश्व एड्स दिवस पर राष्ट्रीय सेवा योजना द्वारा आयोजित की एड्स जागरूकता कार्यशाला

हरिद्वार उत्तराखंड

*विश्व एड्स दिवस के अवसर पर राजकीय महाविद्यालय भूपतवाला हरीद्वार में राष्ट्रीय सेवा योजना द्वारा आयोजित एड्स जागरूकता कार्यशाला में प्राचार्य :- डॉ दिनेश कुमार जी शुक्ला, वरिष्ठ प्राध्यापक :- डॉ युवराज जी, डॉ अजय उनियाल जी, राष्ट्रीय सेवा योजना संयोजिका डॉ स्मिता बसेड़ा जी,डॉ संजीव कुमार जी, डॉ किरन त्रिपाठी जी, डॉ प्रमिलाजी , डॉ अर्चना जी, डॉ विशाल जी, डॉ प्रियंका जी आदि के सानिध्य में मुझे मुझे ( डॉ सत्यनारायण शर्मा ) मुख्य वक्ता के रूप में सम्बोधन का अवसर प्राप्त हुआ।

*एड्स वैश्विक महामारी जो एच आई वी (human immunodeficiency virus) वायरस द्वारा संक्रमित मानव में रक्त में समाहित हो उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को कम करती जाती है, अंततः इतनी कम कर देती है कि सामान्य जीवाणु व विषाणु संक्रमण भी ठीक नही होते, और मानव काल का ग्रास बन जाता है।*

*1959 में सर्वप्रथम अफ्रीकी गणराज्य कांगों की राजधानी विनशासा में एक रोगी के रक्त परीक्षण में यह वायरस पाया गया*
*इसको चिन्हित करने में 24 वर्ष लग गए, सन 1983 में इसको पहचाना और इसको HTLV ( human T-cell Lymphotrophic virus ) नाम दिया क्योंकि यह लिम्फ कोषों पर आक्रमण करता है।*

*वर्षो तक वैज्ञानिक इस तथ्य को ढूंढने में लव रहे कि यह वायरस कहाँ से उतपन्न हुआ और मानव शरीर तक कैसे पहुंचा। 1999 में यह स्पष्ट हुआ कि पश्चिमी भूमध्य रेखा पर स्थित अफ्रीकी चिम्पांजी की उपजाति में यह वायरस उतपन्न हुआ मानव द्वारा उनका शिकार करते वक्त उसके रक्त के मानव रक्त में मिलने से यह मानवो में प्रसारित हुआ और उन मानवो द्वारा अन्य मानवो के संसर्ग से यह पूरे विश्व मे महामारी के रूप में व्याप्त हुआ।*

*Hiv virus के संक्रमण को एड्स तक पहुंचने में 8 से 10 वर्ष लगते हैं। यह वायरस संक्रमित मानव शरीरस्थ पांच तरल पदार्थों में रहता है- रक्त, वीर्य, योनि स्राव, गुद स्राव व स्त्री स्तन दुग्ध के माध्यम से संक्रमण करता है।*

*इसके बचाव हेतु सर्वाधिक सरल व उत्तम उपाय है प्राचीन भारतीय परम्पराओं व जीवनचर्या के अनुसार जीवन यापन करना, अनैतिक सम्बन्धों को छोड़कर अपने साथी के साथ ही सम्बन्ध रखने से इस व्याधि से बचा जा सकता है।*

*भारत सरकार , विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा anti retro viral therepy द्वारा इस रोग से प्रभावित व्यक्तियों की मृत्यु दर पर बहुत हद तक अंकुश लगाया जा सका है।*

*इसके लक्षणों में तेजी से वजन में कमी होना, निरंतर बुखार बने रहना थकान रहना, दस्त लगना जीभ व मुंह मे दाग होना आदि है। संभावना होने पर तुरन्त रक्त जांच कराकर इसका निश्चय किया जा सकता है।*
*संसर्ग काल मे समुचित बचाव उपक्रमों का उपयोग एक उचित साधन हो सकता है।*

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