ऋतु परिवर्तनकाल में किया गया यज्ञ साधक के अंतर्मन के साथ ही घर और निकटवर्ती क्षेत्र का वातावरण पवित्र कर देता है: स्वामी विज्ञानानंद सरस्वती

उत्तराखंड हरिद्वार
हरिद्वार । श्रीगीता विज्ञान आश्रम के परमाध्यक्ष महामंडलेश्वर स्वामी विज्ञानानंद सरस्वती जी महाराज ने कहा है कि साधना व्यक्त की अंतरात्मा को संबल प्रदान करती है , जबकि अनुष्ठान का आयोजन किसी विशेष कार्य की सिद्धि के लिए होता है और विशेष अवसर पर की गई साधना तथा अनुष्ठान दोनों ही व्यक्ति का जीवन बदल देते हैं । उक्त उद्गार उन्होंने शारदीय नवरात्र में चल रहे अनुष्ठान एवं व्रत साधना में लीन भक्तों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
         सनातन धर्म को पर्वों का गुलदस्ता बताते हुए स्वामी विज्ञानानंद सरस्वती जी महाराज ने कहा कि भारतीय पर्वों की व्यवस्था विज्ञान की कसौटी पर खरी उतरती है इसीलिए ऋतु परिवर्तन के आधार पर पर्व एवं उसके उत्सवों को क्रमवद्ध किया गया है । नवरात्र साधना को वर्षा और शरद ऋतु का संगम बताते हुए उन्होंने कहा कि उपवास व्यक्ति के पाचन तंत्र को शक्ति प्रदान करते हैं जिससे व्यक्ति का जीवन चिरायु बनता है । नवरात्र साधना का महत्व समझाते हुए उन्होंने कहा कि ऋतु परिवर्तनकाल में किया गया यज्ञ साधक के अंतर्मन के साथ ही घर और निकटवर्ती क्षेत्र का वातावरण पवित्र कर देता है । एक सप्ताह तक किए जाने वाले सात्विक आहार, जल-फल और दुग्धपान से पाचन तंत्र तो मजबूत होता ही है समस्त प्रकार के रक्त दोष एवं आंतरिक विकार भी शांत हो जाते हैं । धर्म को ही कर्म का पथ प्रदर्शक बताते हुए उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति धर्म के सापेक्ष आचरण करता है उसका शेष जीवन सफल हो जाता है । नवरात्र साधना को नव निधि की प्रदाता बताते हुए उन्होंने कहा कि नवरात्र साधना करने वाला सदैव सुखी और स्वस्थ रहता है । उन्होंने सभी भक्तों का आवाहन किया की नवमी तिथि को अनुष्ठान की पूर्णाहुति पर  कन्याओं का पूजन कर मनवांछित फल की प्राप्ति करें ।

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