राखी का पर्व कब है, जानें रक्षाबंधन की तारीख और शुभ मुहूर्त
राशि के अनुसार बहनें भाई की कलाई पर बांधे राखी (रक्षाबंधन)
श्रावण रात्रि पूर्णिमा व्रत 11 अगस्त गुरुवार को और श्रावण दिवा पूर्णिमा व्रत 12 अगस्त शुक्रवार को
रक्षाबंधन का त्योहार हर वर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। रक्षाबंधन पर्व के विषय में श्री कैलख ज्योतिष एवं वैदिक संस्थान ट्रस्ट के प्रधान महंत रोहित शास्त्री ज्योतिषाचार्य ने बताया सावन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि 11 अगस्त गुरुवार को सुबह 10 बजकर 39 मिनट पर शुरू हो रही है, जो 12 अगस्त शुक्रवार को सुबह 07 बजकर 06 मिनट तक रहेगी। लेकिन सावन पूर्णिमा तिथि शुरू होते ही भद्रा भी लग जा रही है जो गुरुवार 11 अगस्त सुबह 10 बजकर 39 मिनट से शुरू होगी और उसी दिन रात्रि 08 बजकर 53 मिनट पर समाप्त होगी। शास्त्रों का मत है कि भद्रा काल में राखी का त्योहार नहीं मनाना चाहिए । अगर आप 11 अगस्त गुरूवार को राखी बांधना चाहते हैं तो 11अगस्त गुरुवार रात्रि 8 बजकर 54 मिनट से लेकर इसी रात्रि 9 बजकर 48 मिनट के मध्य काल में राखी बांध सकते हैं। शुक्रवार 12 अगस्त को धनिष्ठा नक्षत्र के साथ सौभाग्य योग भी विद्यमान रहेंगे। इस प्रकार सावन की पूर्णिमा पर अद्भुत संयोग का निर्माण हो रहा है। इस उत्तम संयोग में शुक्रवार 12 अगस्त सुबह 7 बजकर 06 के पहले राखी बांधने से ऐश्वर्य और सौभाग्य की वृद्धि होती है।
सनातन धर्म में रक्षाबंधन का बहुत अधिक महत्व है,जिसे भाई-बहन के प्रेम का परिचायक माना जाता है इससे सामाजिक और पारिवारिक संबंधों में प्रगाढ़ता आती है। रक्षाबंधन भाई-बहन के प्रेम का अटूट रिश्ता कहलाता है। देश भर में चीनी सामान के बहिष्कार की दिशा में भारत ने एक कदम और आगे बढ़ा दिया है,भारत मे इस साल मेड इन इंडिया राखियां ही लेनी चाहिए।
पूजन विधि :-
प्रथमत: बहन,भाई को तिलक कर उसकी आरती करती है। उसके ऊपर अक्षत अर्पण करती है उसके बाद राखी भाई के दाहिनी कलाई पर बांधी जाती है भाई का पूजन करें,तत्पश्चात बहन भाई को मिठाई खिलाती है और उसके बाद भाई बहन के पैर छूकर आशीर्वाद लेगा। इस प्रकार भाई आजीवन अपनी बहन की सुरक्षा के लिए दृढ़ संकल्पित हो जाता है, इसके बाद भाई बहनों को उपहार दे। इस पूरी प्रक्रिया तक भाई और बहन दोनों को उपवास रखना चाहिए।
कोरोना महामारी के चलते इस प्रकार रक्षाबंधन पर्व को मनाए। :-
कोरोना महामारी के चलते अगर भाई- बहन रक्षाबंधन के त्योहार पर अगर मिल नहीं सकते तो भाई-बहन अलग-अलग भी रहते हुए ये त्योहार मना सकते हैं। जैसे बहनें मन में भाई का ध्यान करते हुए भगवान श्रीकृष्ण की तस्वीर अथवा प्रतिमा को राखी बांधे ,तिलक,पूजन एवं प्रसाद का भोग लगाएं और भाई की मंगलकामना एवं दीर्घायु के लिए भगवान से प्राथना करें और भाई भी भगवान की प्रतिमा से राखी स्पर्श कर राखी बांध ले,तिलक लगाएं,भगवान को प्रणाम करें और भगवान को प्रसाद लगाकर स्वयं ग्रहण करें,पैसे निकाल कर रख दे जब भी बहन से मिले उनको भेंट करें।
आइए जानते हैं राशि के अनुसार बहनें अपने भाई को हाथ पर कौन से रंग की राखी बांधें और कौन सा मिष्ठान खिलाएं
*मेष* अगर आपके भाई की राशि मेष है तो भाई को मालपुए खिलाएं एवं लाल रंग की राखी बांधे।
*वृषभ* राशि के भाई को दूध से निर्मित मिठाई खिलाएं एवं सफेद रेशमी डोरी वाली राखी बांधे।
*मिथुन* राशि के भाई को बेसन से निर्मित मिठाई खिलाएं एवं हरी रंग की राखी बांधे।
*कर्क* राशि के भाई को रबड़ी खिलाएं एवं पीली रेशम वाली राखी बांधे।
*सिंह* राशि के भाई को रस वाली मिठाई खिलाएं एवं गुलाबी रंग, गोल्डन रंग या पंचरंगी डोरे वाली राखी बांधे।
*कन्या* राशि के भाई को मोतीचूर के लड्डू खिलाएं एवं गणेशजी के प्रतीक हरे रंग वाली राखी बांधे।
*तुला* राशि के भाई को हलवा या घर में निर्मित मिठाई खिलाएं एवं सफेद रंग या रेशमी हल्के पीले डोरे वाली राखी बांधे.
*वृश्चिक* राशि के भाई को गुड़ से बनी मिठाई खिलाएं एवं गुलाबी डोरे वाली राखी बांधे.
*धनु* राशि के भाई को रसगुल्ले खिलाएं एवं पीली व सफेद डोरी से बनी राखी बांधे।
*मकर* राशि के भाई को मिठाई खिलाएं एवं नीले ब्ल्यू धागे या मिलेजुले रंग से बनी वाली राखी बांधे।
*कुंभ* राशि के भाई को ग्रीन मिठाई खिलाएं एवं नीले रंग से सजी राखी बांधे.
*मीन* राशि के भाई को मिल्क केक खिलाएं एवं पीले-नीले जरी की राखी बांधे.
सगी बहन ना हो तो मामा, चाचा, मित्र ,पुरोहित भी अपने यजमान को राखी बांधते हैं इस प्रकार राखी बांधकर दोनों एक दूसरे के कल्याण एवं उन्नति की कामना करते हैं।
राखी बांधने के दौरान एक खास मंत्र का उच्चारण किया जाता है जो निम्नलिखित है :-
मंत्र : ‘येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।’
इसका अर्थ है – जिस प्रकार राजा बलि ने रक्षा सूत्र से बंधकर विचलित हुए बिना अपना सब कुछ दान कर दिया, उसी प्रकार हे रक्षा आज मैं तुम्हें बांधता हूं, तू भी अपने उद्देश्य से विचलित न होना और दृढ़ बना रहना
पुराणों के अनुसार रक्षाबंधन से जुड़ी कहानियां
(1) पुराणों के मुताबिक एक समय दानवो ने देवताओ पर आक्रमण कर दिया था। जिसमे देवताओ की पराजय होने लगी थी। स्वर्ग लोक में मचे इस हाहाकार से देवराज इंद्र की पत्नी घबरा गई और अपने स्वामी के प्राणों की रक्षा करने के लिए तप करने लगी। तप करने से उन्हें एक रक्षा सूत्र प्राप्त हुआ जिसे शचि (इंद्र की पत्नी) ने इंद्र की कलाई पर बांध दिया। शचि ने इस रक्षा सूत्र को सावन महीने की पूर्णिमा के दिन इंद्र की कलाई पर बांधा था इसलिए इसे रक्षा बंधन कहा जाता है। रक्षा सूत्र प्राप्त होने के पश्चात देवताओ की जीत हुई और दानव पाताल लोक वापस चले गए।
(2)भगवान कृष्ण, पांडवों की पत्नी द्रोपदी को बहन मानते थे,शिशुपाल का सिर काटने के वक़्त कृष्ण की उंगली भी कट गई,द्रोपदी ने तुरंत अपनी साड़ी का पल्लू फाड़ा और बांध दिया, भगवान ने वादा किया कि वो हमेशा द्रोपदी की रक्षा करेंगे, जब द्रोपदी चीरहरण का सामना कर रही थी, तो कृष्ण्ा ने अपार वस्त्र देकर उनकी इज्ज़त बचाई,यह घटना भी सावन महीने की पूर्णिमा तिथि को हुई थी। कई लोगों का मानना है कि इस घटना के बाद से राखी का त्योहार मनाया जाने लगा।
(3) जब सैनिकों के साथ मनाया गया रक्षाबंधन।
एक कथा के अनुसार महाभारत युद्ध के समय भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि तुम्हारी रक्षा करने वाले तुम्हारे सैनिक हैं। इसलिए इनके साथ रक्षाबंधन का त्योहार मनाओ। श्री कृष्ण की सलाह पर युधिष्ठिर ने अपने सैनिकों के संग राखी का त्योहार मनाया। जिसके बाद से रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाने लगा।
(4)भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया तो राजा बलि से तीन पग जमीन मांगी। भगवान वामन ने एक पग में स्वर्ग और दूसरे पग में पृथ्वी को नाप लिया। तीसरा पैर कहां रखे, इस बात को लेकर बलि के सामने संकट उत्पन्न हो गया। अगर वह अपना वचन नहीं निभाता तो अधर्म होता। आखिरकार उसने अपना सिर भगवान के सामने कर दिया और कहा तीसरा पग आप मेरे सिर पर रख दीजिए। वामन भगवान ने वैसा ही किया पैर रखते ही बलि सुतल लोक में पहुंच गया। बलि की उदारता से भगवान प्रसन्न हुए। उन्होंने उसे सुतल लोक का राज्य प्रदान किया। बलि ने वर मांगा कि भगवान विष्णु उसके द्वारपाल बनें। तब भगवान को उसे यह वर भी प्रदान करना पड़ा। पर इससे लक्ष्मीजी संकट में आ गईं। वे चिंता में पड़ गईं कि अगर स्वामी सुतल लोक में द्वारपाल बन कर रहेंगे तब बैकुंठ लोक का क्या होगा ? तब देवर्षि नारद ने उपाय बताया कि बलि की कलाई पर रक्षासूत्र बांध दो और उसे अपना भाई बना लो। लक्ष्मीजी ने ऐसा ही किया। उन्होंने बलि की कलाई पर राखी (रक्षासूत्र) बांधी। बलि ने लक्ष्मीजी से वर मांगने को कहा। तब उन्होंने विष्णु को मांग लिया। रक्षासूत्र की बदौलत लक्ष्मी को अपने स्वामी पुन: मिल गए।
श्रावण रात्रि पूर्णिमा व्रत 11 अगस्त गुरुवार को और श्रावण दिवा पूर्णिमा व्रत 12 अगस्त शुक्रवार को।
महंत रोहित शास्त्री (ज्योतिषाचार्य) अध्यक्ष श्री कैलख ज्योतिष एवं वैदिक संस्थान ट्रस्ट (पंजीकृत)
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