कुशाग्रहणी अमावस्या 02 सिंतबर सोमवार को :- महंत रोहित शास्त्री ज्योतिषाचार्य
इस दिन ही साल भर के धार्मिक कृत्यों के लिये कुश एकत्र कर लेते हैं।
भाद्रपद मास की अमावस्या का बहुत महत्व है,इस दिन ही साल भर के धार्मिक कृत्यों के लिये कुश एकत्र कर लेते हैं,इस लिए इसे कुशोत्पाटिनी (या कुशाग्रहणी) अमावस्या भी कहा जाता है,कुशा को डोगरी भाषा में इसे दर्भ अथवा दाभ कहा जाता है। भाद्रपद अमावस्या के विषय में श्री कैलख ज्योतिष एवं वैदिक संस्थान ट्रस्ट के प्रधान महंत रोहित शास्त्री ने बताया इस वर्ष अमावस्या तिथि दो सितम्बर सोमवार और तीन सितम्बर मंगलवार दो दिन प्राप्त हो रही है इसलिए इस वर्ष दो दिन भाद्रपद मास मनाई जाएगी। इस वर्ष सन् 2024 ई. सोमवार 02 सितम्बर को सुबह 05 बजकर 22 मिनट से भाद्रपद अमावस्या तिथि आरंभ होकर 03 सिंतबर मंगलवार को सुबह 07 बजकर 26 मिनट तक रहेगी। पितृ कार्य,तीर्थ स्नान महात्म्य,कुशोत्पाटन कार्य सोमवार 02 सिंतबर को करना ही उत्तम रहेगा। भाद्रपद अमावस्या स्नान दान आदि 03 सिंतबर मंगलवार सुबह 07 बजकर 26 मिनट तक करना शुभ होगा। सोमवार अमावस्या तिथि होने के कारण इसे सोमवती अमावस्या भी कहा जाएगा और मंगलवार अमावस्या तिथि होने के कारण इसे भौमवती अमावस्या भी कहा जाएगा।
पूजाकाले सर्वदैव कुशहस्तो भवेच्छुचि:। कुशेन रहिता पूजा विफला कथिता मया॥
सनातन धर्म को मानने वाले यह बात अच्छे से जानते हैं की बिना कुशा के की गयी सारी पूजा निष्फल मानी जाती हैं।प्रत्येक धार्मिक कार्यो के लिए कुशा का इस्तेमाल किया जाता है।
कुशा: काशा यवा दूर्वा उशीराच्छ सकुन्दका:।
गोधूमा ब्राह्मयो मौन्जा दश दर्भा: सबल्वजा:।।
शास्त्रों में दस प्रकार के कुश होते हैं और जो भी मिल जाए उसी को ग्रहण कर लेना चाहिए, ऐसा माना जाता हैं कि जिस कुश का मूल सुतीक्ष्ण हो, सात पत्ती हों, अग्रभाग कटा न हो और हरा हो, वही कुश देव और पितृ दोनों कार्यो में उपयोग करने लायक होता है,जिस जगह कुश उपलब्ध हो उस जगह पर पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके बैठ जाना चाहिए ,दिन के दूसरे प्रहर में दाहिने हाथ से इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए-
विरंचिना सहोत्पन्न परमेष्ठिन्निसर्गज।
नुद सर्वाणि पापानि दर्भ स्वस्तिकरो भव॥
‘हूं फट् ‘ कहकर दाहिने हाथ से कुश को उखाड़ना चाहिए और इस बात का जरूर ध्यान देना चाहिए की कुश की जितनी जरूरत हो उतनी ही उखाड़नी चाहिए।
पूजा के समय विद्वान पंडित लोगों को अनामिका उंगली में कुश की बनी अंगूठी को पहनाते हैं,व्यक्ति के बायें हाथ में तीन कुश और दायें हाथ में दो कुशों की बनी हुई पवित्री पहनते हैं।
जिन लोगों को शनि,राहु और केतु परेशान कर रहे हैं, उन लोगों को हर अमावस्या पर पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ अपने पितरों को भोग और तर्पण अर्पित करना चाहिए।
कुशाग्रहणी अमावस्या के दिन तीर्थ,स्नान, जप, तप और व्रत के पुण्य से ऋण और पापों से छुटकारा मिलता है,इस दिन सबसे पहले गणेश जी की पूजा करने के बाद ही नारायण और शिव, अपने इष्टदेव,शनिदेव जी की पूजा विधि-विधान पूर्वक करनी चाहिए, जिन लोगों की जन्मकुंडली में पितृ दोष से संतान आदि न होने की आशंका है, उन्हें इस अमावस्या को पूजा-पाठ, दान अवश्य करना चाहिए। अगर किसी कारण वश गंगा आदि नदियों में स्नान ना कर सके तो घर में पानी में गंगाजल डाल कर स्नान करें और घर के आस पास ज़ररूरत मंद लोगों यथा संभव दान अवश्य करें।
ऐसी मान्यता है कि यदि पंचक में मृत्यु हो जाए तो घर में पाॅच सदस्य मरते हैं। इसके निवाराणार्थ 5 कुश के पुतले बनाकर मृतक के साथ जला दें। आसन- कुश घास में बने आसन पर बैठकर पूजा करना ज्ञानवर्धक,देवानुकूल व सर्वसिद्ध दाता बनता है। इस आसन पर बैठकर ध्यान साधना करने से तन-मन से पवित्र होकर बाधाओं से सुरक्षित रहता है।धनवर्धक- कुशा को लाल कपड़े में लपेटकर घर में रखने से समृद्धि बनी रहती है। ग्रहण काल में कुश का प्रयोग- ग्रहण काल से पूर्व सूतक में इसे अन्न-जल आदि में डालने से ग्रहण के दुष्प्रभाव से बचते है। धर्म ग्रंथों में दर्भ को जल्द फल देने वाली औषधि,आयु की वृद्धि करने वाला और दूषित वातावरण को पवित्र करके संक्रमण फैलने से रोकने वाला बताया गया है। पूजा पाठ,जप, तप आदि कर्मकांड करने से व्यक्ति के अंदर जमा आध्यात्मिक शक्ति संचय कहीं पृथ्वी में न समा जाए।
*महंत रोहित शास्त्री (ज्योतिषाचार्य) अध्यक्ष श्री कैलख ज्योतिष एवं वैदिक संस्थान ट्रस्ट (पंजीकृत) संपर्कसूत्र :-9858293195,7006711011,9796293195*