भीष्मपंचक का सनातन धर्म में बड़ा ही महत्त्व है : महंत रोहित शास्त्री ज्योतिषाचार्य

धर्म

इस वर्ष 04 नवंबर शुक्रवार को भीष्मपंचक शुरू होंगे और 08 नवंबर मंगलवार को समाप्त होंगे

शुक्र अस्त (तारा डूबा) हुआ होने के कारण भीष्मपंचक उद्यापन (मोख) नहीं होगा

पंचक का सनातन धर्म में बड़ा ही महत्त्व है। भीष्म पंचक के विषय में श्री कैलख ज्योतिष एवं वैदिक संस्थान ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत रोहित शास्त्री ज्योतिषाचार्य ने बताया धर्मग्रंथों में कार्तिक माह में ‘भीष्म पंचक’ व्रत का की विशेष महत्त्व कहा गया है। यह व्रत कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी से आरंभ होता है तथा कार्तिक पूर्णिमा तक चलता है। भीष्म पंचक को ‘पंच भीखू’ के नाम से भी जाना जाता है। भीष्म पितामह ने इस व्रत को किया था, इसलिए यह ‘भीष्म पंचक’ नाम से प्रसिद्ध हुआ। भीष्म पंचक’ व्रत का उद्यापान होता है,डुग्गर प्रदेश में इसको दीयों का मोख कहते हैं, इस वर्ष सन् 2022 ई.04 नवंबर शुक्रवार को भीष्मपंचक शुरू होंगे और 08 नवंबर मंगलवार को समाप्त होंगे। शुक्र अस्त (तारा डूबा) हुआ होने के कारण भीष्मपंचक कर उद्यापन (मोख) नहीं होगा।

*भीष्म पंचक कथा*
महाभारत का युद्ध समाप्त होने पर जिस समय भीष्म पितामह सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा मे शरशैया पर शयन कर रहे थे। तब भगवान श्रीकृष्ण पाँचो पांडवों को साथ लेकर उनके पास गये थे। ठीक अवसर मानकर युधिष्ठर ने भीष्म पितामह से उपदेश देने का आग्रह किया। भीष्म पितामह ने पाँच दिनो तक राज धर्म, वर्णधर्म मोक्षधर्म आदि पर उपदेश दिया था । उनका उपदेश सुनकर श्रीकृष्ण एवं अन्य सन्तुष्ट हुए और बोले, ”पितामह! आपने शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक पाँच दिनों में जो धर्ममय उपदेश दिया है उससे मुझे बडी प्रसन्नता हुई है। मैं इसकी स्मृति में आपके नाम पर भीष्म पंचक व्रत स्थापित करता हूँ । जो लोग इसे करेंगे वे जीवन भर विविध सुख भोगकर अन्त में मोक्ष प्राप्त करेंगे।

*भीष्म पंचक पूजन का विधान*
शुद्ध जल से स्नान कर,आत्म पूजा करें,श्रीगणेश पूजन कर,”ऊँ नमो भगवने वासुदेवाय” मंत्र से भगवान कृष्ण की पूजा की जाती है । पाँच दिनों तक लगातार घी का दीपक जलता रहना चाहिए। “ऊँ विष्णुवे नमः स्वाहा” मंत्र से घी, तिल और जौ की १०८ आहुतियां देते हुए हवन करना चाहिए।

*भीष्म पंचक के दिनों में किन बातों का खास ख्याल रखें*।

भीष्म पंचक के दिनों में किसी भी प्रकार की तामसिक वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए,ब्रम्चार्य का पालन करना चाहिए,इन दिनों में शराब आदि नशे से भी दूर रहना चाहिए, व्रत रखने वालों को इस व्रत के दौरान दाढ़ी-मूंछ और बाल नाखून नहीं काटने चाहिए, व्रत करने वालों को पूजा के दौरान बेल्ट, चप्पल-जूते या फिर चमड़े की बनी चीजें नहीं पहननी चाहिए,काले रंग के कपड़े पहनने से बचना चाहिए,किसी का दिल दुखाना सबसे बड़ी हिंसा मानी जाती है। गलत काम करने से आपके शरीर पर ही नहीं, आपके भविष्य पर भी दुष्परिणाम होते है।

*महंत रोहित शास्त्री (ज्योतिषाचार्य)*
*अध्यक्ष श्री कैलख ज्योतिष एवं वैदिक संस्थान ट्रस्ट(पंजीकृत)*
*संपर्कसूत्र :-9858293195,7006711011,9796293195*

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