मंदिरों के कपाट शाम को हो जाएंगे बंद
आज नहीं होगी सायंकालीन आरती, दूध में कुशा रक्खें
रात दस बजे तक चांदनी में रख खाएं खीर या चौले
अनादि राधा कृष्ण ने आज रात स्वर्ग में किया महारास
शरद के चंद्रमा से रात में होगी सोम रूपी अमृत वृष्टि
समुद्र मंथन से इसी दिन जन्मीं महालक्ष्मी
शरद पूर्णिमा की आधी रात के बाद 1.05 बजे से चंद्रग्रहण लग रहा है । ग्रहण का सूतक लगते ही समस्त धार्मिक कार्यों पर विराम लग जाएगा । चंद्रमा को रात 2.24 बजे ग्रहण से मुक्ति मिलेगी । कल सवेरे मंदिरों की धुलाई होगी और पूजा आरती प्रारंभ होंगी ।
अश्विन शुक्ल पूर्णिमा की रात में आकाश से सोम रूपी अमृत की वृष्टि होगी । वेदों में इसी सोम को अमृत बताया गया है । समुद्र मंथन के समय निकले चौदह रत्नों में लक्ष्मी भी एक थीं । इसी रात उनका प्रादुर्भाव हुआ था । मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की प्रकाशमयी रात्रि में अनादि राधा और अनादि कृष्ण ने पहला महारस स्वर्ग में किया था ।
भागवत पुराण , महाभारत एवम विष्णु पुराण के अनुसार समुद्र मंथन के समय जब अमृत निकला , वह शरद पूर्णिमा की ही रात थी । शरद की रात्रि में ब्रह्मलोक से सोमरूपी अमृत की वृष्टि हुई । इस रात्रि में खुले आकाश के नीचे छत, मैदान या घाट पर बैठकर चांदनी से टपक रहे अमृत का पान करना चाहिए ।
सरल मार्ग यह बताया गया है कि दूध मिश्रित चौले या चिवड़ा रात की चांदनी में रखे जाएं और आधी रात के बाद उसे प्रसाद रूप में पिया जाए । दूध चावल से बनी खीर चांदनी में रखकर खाने से नेत्र ज्योति बढ़ती है । ग्रहण के कारण दूध में कुशा रखें और चांदनी में ठंडी कर खीर खाएं । चांदनी के प्रकाश में यदि सुईं में धागा पिरोया जाए तो नेत्रज्योति में वृद्धि होती है ।
शरद पूर्णिमा की रात्रि में जब समुद्र मंथन से लक्ष्मी प्रकट हुई तब देवताओं ने उनकी वंदना की । आज भी शरद पूर्णिमा की रात्रि में चंद्रमा के प्रकाश में बैठकर लक्ष्मी की पूजा की जाती है । इस बार शरत पूर्णिमा पर सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है । रेवती नक्षत्र शाम सात बजे तक रहेगा और उसके बाद अश्विनी नक्षत्र प्रारंभ हो जाएगा । शरद रात्रि में इन दोनों का मिलन शुभ माना जाता है ।
अश्विन पूर्णिमा की चांदनी का मिलन जब कार्तिक मास की प्रतिपदा से होता है तो शास्त्रों में उसे अमृत योग कहा गया है । इस चांदनी में एक बार राधा कृष्ण ने स्वर्ग में महारास किया था । धरती पर राधाकृष्ण द्वापर युग में हुए परंतु यह महारास अनादि राधा तत्व और अनादि कृष्ण तत्व ने सतयुग में किया था ।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार प्रेम रास में दोनों इतने लीन हुए कि जल रूप हो गए । इस द्रवित रूप से गंगा का जन्म हुआ । शरद पूर्णिमा की रात्रि में अनेक भक्त चंद्रमा के प्रकाश में बैठकर मां महालक्ष्मी की आराधना करते हैं । इसी प्रकार शरद पूर्णिमा की रात में जन्मी गंगा मैया के तटों पर बैठकर भक्तजन रात्रि जागरण करते आए हैं ।
Kaushal sikhaola varishth patrakaar