वर्तनान भारत स्वामी दयानंद सरस्वती की शिक्षाओ को आत्मसात करके ही एक आत्मनिर्भर एवं विकसित राष्ट्र बन सकता है – डा. श्रीप्रकाश मिश्र
स्वामी दयानन्द सरस्वती के 201वे जयंती के उपलक्ष्य में मातृभूमि सेवा मिशन आश्रम परिसर में कार्यक्रम सम्पन्न।
कुरुक्षेत्रl
स्वामी दयानन्द सरस्वती एक महान दार्शनिक, धार्मिक,सामाजिक विचारक एवं राजनितिक चिंतक को। स्वामी दयानन्द सरस्वती का मानना था जब तक भारत में फैली सामाजिक कुरितियों का अन्त नहीं होगा, तब तक भारत का विकास सम्भव नहीं है। साथ ही उनका यह मानना जो की सुधार सुधार एवं समस्त अन्धविश्वास एवं कुरीतियों के उन्मूलन के आवश्यक सभी साधन व सामग्री भारत के प्राचीन गौरवमयी संस्कृति में मौजूद हैं। यह विचार स्वामी दयानंद सरस्वती के 201 वे जयंती के उपलक्ष्य में मातृभूमि शिक्षा मंदिर के तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम में मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डा.श्रीप्रकाश मिश्र ने व्यक्त किये। स्वामी दयानन्द सरस्वती की जयंती के उपलक्ष्य में मातृभूमि शिक्षा मंदिर के विद्यार्थियों द्वारा लोकमंगल के निमित्त वैदिक यज्ञ सम्पन्न हुई। विद्यार्थियों ने सस्वर वेद के मंत्रो का उच्चारण कर वैदिक यज्ञ में आहुति समर्पित की। विद्यार्थियों ने अपने जीवन में सामाजिक कुरीतियों एवं अन्धविश्वास के उन्मूलन का संकल्प लिया। डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में स्वामी दयानंद सरस्वती का अतुलनीय योगदान है।स्वामी जी भारत में लोकतंत्र के पक्षधर थे। स्वामी जी का मानना था कि लोकतंत्र में ही व्यक्ति के अधिकारों और कर्तव्यों में सही संतुलन स्थापित हो सकता है इसलिए उन्होंने अपने ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश में लोकतंत्र के निर्माण, स्वरूप शासन तथा न्याय संबंधी धारणाओं की विवेचना की है। स्वामी जी के चिंतन और मनन में
स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा यह तीन आदर्श समान रूप से देखे जा सकते हैं, जिनपर वर्तमान लोकतंत्र आधारित है।
डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा स्वामी दयानन्द सरस्वती जी ने वेदों का प्रचार किया, इसके प्रचार के लिए ही मुम्बई में आर्य समाज की स्थापना की, वेदों की ओर लौटो ऐसा एक नारा भी स्वामी जी ने दिया जो वेदों के प्रचार व प्रसार का प्रतीक बन गया। आज वर्तनान भारत स्वामी दयानंद सरस्वती की शिक्षाओ को आत्मसात करके ही एक आत्मनिर्भर एवं विकसित राष्ट्र बन सकता है। स्वामी दयानन्द के समय देश परतन्त्र था। समाज में विदेशी वस्तुओं का प्रचलन था। अंग्रेजों ने बहुत सारी चीजें भारतीयों पर जबरदस्ती थोपी हुई थी। समाज के लोगों में भय व्याप्त था। समाज के लोगों में मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं होती थी। स्वामी जी ने सर्वप्रथम स्वराज्य का उद्घोष किया, ऐसा करके स्वामी जी ने भारतीय जन-जीवन में नवचेतना का संचार किया।जिससे राजनीतिक स्वतंत्रता की पृष्ठभूमि तैयार हुई। स्वराज्य की पुकार सर्वप्रथम महर्षि दयानंद के द्वारा उठाई गई थी। जिस समय लोग अंग्रेजों के सामने कुछ भी बोलने में संकोच करते थे, उस समय स्वामी जी ने निडरता से अपनी ये मांगे उठाई थी। कार्यक्रम का समापन शांतिपाठ से हुआ। कार्यक्रम में आश्रम के सदस्य, विद्यार्थी एवं कार्यकर्ता उपस्थित रहे।