राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर यशस्वी भारतीय काव्य परम्परा के अनमोल धरोहर हैंः डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र

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राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की जयंती पर मातृभूमि सेवा मिशन आश्रम परिसर में कार्यक्रम संपन्न
कुरुक्षेत्र। कविता वह है जो अपने युग की वाणी बने। अपने दौर के हर वर्ग और शोषितों की हक़ में उठे। समाज में व्याप्त पाखंड और आडंबर को खत्म कर एक स्वस्थ और जागृत समाज के निर्माण में अपना योगदान दे। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जीवन भर अपनी कविता के जरिए यही करते रहें और अपने युग के कवियों से इसका आह्वान भी करते रहे। यह विचार मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की जयंती के उपलक्ष्य में व्यक्त किए। मातृभूमि शिक्षा मंदिर के बच्चों ने राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की अनेक कविताओं का पाठ किया। डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा दिनकर यशस्वी भारतीय काव्य परम्परा के अनमोल धरोहर हैं, जिन्होंने अपनी कालजयी रचनाओं के जरिए देश निर्माण और स्वतंत्रता संघर्ष में स्वयं को पूरी तरह समर्पित कर दिया था। ‘कलम आज उनकी जय बोल’ जैसी प्रेरणादायक कविता और उर्वशी जैसे काव्य के प्रणेता रामधारी सिंह दिनकर ने साहित्य की विभिन्न विधाओं में अनवरत लेखन किया, लेकिन उनकी विशिष्ट पहचान कविता के क्षेत्र में ही बनी।

उन्होंने कविता में पदार्पण भले ही छायावाद और श्रृंगार रस से प्रभावित होकर किया हो, लेकिन समय के साथ-साथ उनकी कविता निरंतर राष्ट्रीयता और स्वातंत्र्य प्रेम का पर्याय बनती चली गई। डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा दिनकर ने अपनी इस राष्ट्रीयता और राष्ट्रीय प्रेम को स्वीकार्य करते हुए भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार समारोह के अवसर पर कहा था कि जिस तरह जवानी भर मैं रवीन्द्र और इक़बाल के बीच झटके खाते रहा, उसी तरह जीवन भर मैं गांधी और मार्क्स बीच भी झटके खाता रहा हूँ। इसीलिए उजले को लाल से गुणा करने पर जो रंग बनता है वही रंग मेरी कविता का है और मेरा विश्वास है कि भारतवर्ष के भी भावी व्यक्तित्व का रंग यही होगा। डा. मिश्र ने कहा 23 सितंबर 1908 को बिहार के मुंगेर जिला के सिमरिया गांव में जन्में रामधारी सिंह दिनकर की शुरुआती शिक्षा गांव में ही हुई। पिता रवि सिंह किसान थे। दिनकर ने स्नातक की पढ़ाई पटना विश्वविद्यालय से की। छात्र जीवन से ही संघर्षों और चुनौतियों से जूझते हुए दिनकर ने बचपन से जवानी तक के सफ़र में अनेक उतार-चढ़ाव देखे। इस संघर्षों ने दिनकर के विचारों और सोच को एक व्यापक दृष्टिकोण प्रदान किया। आज दिनकर जैसे कवियों की भारत को आवश्यकता जो भारत को उसकी सुप्त ऊर्जा से जगाकर राष्ट्र सेवा की धारा में जोड़ सके, जिससे हम अपने वीर शहीदों के स्वप्नो के भारत का निर्माण कर सके। कार्यक्रम का समापन राष्ट्रीय गीत वन्देमातरम से हुआ।

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