मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा हिंदी दिवस पर आयोजित निबंध प्रतियोगिता मे नकुल ने प्रथम स्थान प्राप्त किया
कुरुक्षेत्र। हिंदी दिवस हिंदी भाषा के महत्व को पहचानने और युवा पीढ़ी को इसके अधिक उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करता है. दुनिया भर में लगभग 120 मिलियन लोग दूसरी भाषा के रूप में हिंदी बोलते हैं, और 420 मिलियन से अधिक लोग इसे अपनी मातृभाषा के रूप में बोलते हैं. यह विचार मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डा. श्रीप्रकाश ने हिंदी दिवस के उपलक्ष्य मे मातृभूमि शिक्षा मंदिर द्वारा आयोजित भाषा संवाद कार्यक्रम मे व्यक्त किये।कार्यक्रम का शुभारम्भ विद्यर्थियों द्वारा भारतमाता के चित्र पर दीप प्रज्जवलन पुष्पार्चन एवं सरस्वती वंदना से हुआ। हिंदी दिवस के उपलक्ष्य मे आयोजित भाषा संवाद कार्य
क्रम के अवसर पर विद्यर्थियों के मध्य वर्तमान भारत मे हिंदी दिवस की प्रासंगिकता विषय पर निबंध प्रतियोगिता का आयोजन हुआ। निबंध प्रतियोगिता मे कार्यक्रम के अति विशिष्ट अतिथि समाजसेवी शुभकरण कम्बोज, शिक्षक बाबूराम एवं बाल अभिमन्यु छात्रावास के अधीक्षक हरि व्यास ने निर्णयाक मंडल के सदस्य के रूप मे भूमिका का निर्वाह किया। निबंध प्रतियोगिता मे मातृभूमि शिक्षा मदिर के कक्षा षष्ठम के नकुल ने प्रथम , कक्षा षष्ठम के दिवाकर ने द्वितीय, कक्षा पंचम के हरिओम ने तृतीय एवं कक्षा सप्तम के गौरव ने सांत्वना पुरस्कार प्राप्त किया। सभी विजेता विद्यर्थियों को स्मृति चिन्ह, अंगवस्त्र एवं प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया।
मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने विद्यर्थियों को सम्बोधित करते हुए कहा १४ सितम्बर १९४९ को सविधान की भाषा समिति ने हिंदी को राजभाषा के पद पर आसीन किया क्योंकि भारत की बहुसंख्यक जनता द्वारा हिंदी भाषा का प्रयोग किया जा रहा था। स्वाधीनता आंदोलन के दौरान हिंदी भाषा में प्रकाशित पत्र .पत्रिकाओं ने देश को आज़ाद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई तथा भारतीयों को एक सूत्र में बांधे रखा। स्वतंत्रता के पश्चात भले ही हिंदी को राष्ट्रभाषा व राजभाषा का दर्जा दिया गया लेकिन भाषा के प्रचार व प्रसार के लिए सरकार द्वारा सराहनीय कदम नहीं उठाए गए व अंग्रेजी भाषा का प्रयोग अनवरत चलता आ रहा है।
डा. मिश्र ने कहा आज हिंदी की वैश्विक स्थिति काफी बेहतर है और विश्व के अनेक महतवपूर्ण देशों के विश्वविद्यालयों में हिंदी का अध्ययन अध्यापन हो रहा है। परन्तु विडंबना यह है कि विश्व में अपनी मजबूत स्थिति के बावजूद हिंदी भाषा अपने ही घर में उपेक्षित जिंदगी जी रही है।आज अपने देश मे ही गुड मॉर्निग से सूर्याेदय और गुड इवनिंग से सूर्यास्त होता है। अंग्रेजी बोलने वालों को तेज तरार बुद्धिमान एवं हिंदी बोलने वालों को अनपढ़, गवार जताने की परम्परा रही है। राजनेताओं द्वारा हिंदी को लेकर राजनीति की जा रही है। जब भी हिंदी दिवस आता है हिंदी को लेकर लम्बे लम्बे वक्तव्य देकर हिंदी पखवावड़े का आयोजन कर इतिश्री कर ली जाती है। हिंदी हमारी दोहरी नीति का शिकार हो चुकी है। यही कारण है कि हिंदी आज तक व्यावहारिक द्रष्टि से न तो राजभाषा बन पाई और ने ही राष्ट्र भाषा। डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा आज आवश्यकता है हिंदी भाषा हमारे दैनिक जीवन मे अधिक से अधिक उपयोग हो और यह एक जन आंदोलन बने। आज आजादी के अमृतोत्सव पर प्रत्येक भारतीय को कम से कम अपने बोलचाल की भाषा एवं अपने हस्ताक्षर मे हिंदी भाषा के उपयोग का संकल्प लेना चाहिए। आजादी के अमृतोत्सव पर यह हमारे वीर शहीद जवानों के प्रति यह एक महत्वपूर्ण श्रद्धांजलि होगी।