कैलख संस्कृत रत्न पुरस्कार 2024 निरंजन पीठाधीश्वर श्रीश्री 1008 आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरि जी महाराज को मिलेगा: महन्त रोहित शास्त्री

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कैलख संस्कृत रत्न पुरस्कार 2024 निरंजन पीठाधीश्वर श्रीश्री 1008 आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरि जी महाराज को मिलेगा: महन्त रोहित शास्त्री

हरिद्वार /जम्मू: निरंजन पीठाधीश्वर श्रीश्री 1008 आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरि जी महाराज को इस वर्ष का कैलख संस्कृत रत्न पुरस्कार दिया जाएगा। उन्हें यह सम्मान देववाणी संस्कृत को बढ़ावा देने के लिए दिया जाएगा। इसकी जानकारी श्री कैलख ज्योतिष एवं वैदिक संस्थान ट्रस्ट के प्रधान महंत रोहित शास्त्री ने दी। उन्होंने बताया कि ट्रस्ट की ओर से देववाणी संस्कृत को बढ़ावा देने के लिए देववाणी संस्कृत के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने के लिए हर वर्ष संस्कृत के किसी विद्वान को कैलख संस्कृत रत्न पुरस्कार देने का सिलसिला सन् 2017 से शुरू किया गया है। इस बार ट्रस्ट ने यह निर्णय लिया है कि वर्ष 2024 का कैलख रत्न पुरस्कार संस्कृत के विद्वान निरंजन पीठाधीश्वर श्रीश्री 1008 आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरि जी महाराज महाराज को दिया जाए। महन्त रोहिक शास्त्री ने बताया कि जल्द ही जम्मू में भव्य आयोजन कर निरंजन पीठाधीश्वर श्रीश्री 1008 आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरि जी महाराज जी को सम्मानित किया जाएगा।
निरंजन पीठाधीश्वर श्रीश्री 1008 आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरि जी महाराज देववाणी संस्कृत भाषा एवं भारतीय संस्कृति को जन-जन तक पहुंचाने का महत्वपूर्ण कार्य करते हुए समाज के उत्थान में अपनी विशिष्ट भूमिका निभा रहे हैं। निरंजन पीठाधीश्वर श्रीश्री 1008 आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरि जी महाराज का भारत में संस्कृत भाषा के संवर्धन व विकास में अमूल्य योगदान रहा है। उनके द्वारा पढ़ाए गए छात्र आज प्रदेश सरकार एवं केंद्र सरकार में उच्च पदों पर पदस्थ हैं।
स्वामी कैलाशानंद जी महाराज एक हिंदू आध्यात्मिक गुरु, संत, योग गुरु और हिंदी, अंग्रेजी और संस्कृत भाषाओं के विद्वान और लेखक हैं। स्वामी कैलाशानंद गिरि जी निरंजनी अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर हैं। निरंजनी अखाड़े के प्रथम व्यक्ति के रूप में वह लाखों नागा साधुओं के संन्यासी और हजारों महामंडलेश्वरों के गुरु हैं। लाखों नागा साधुओं और हजारों महामंडलेश्वरों को दीक्षा दी और वे उनके पहले गुरु हैं। उनकी पुस्तकें भारतीय संस्कृति, परंपराओं और प्राचीन भारतीय धर्म वैदिक सनातन धर्म पर आधारित हैं।
पंचायती अखाड़ा निरंजनी का नाम सबसे बड़े अखाड़ों में से एक माना जाता है, एक ऐसा अखाड़ा जिसमें सबसे ज्यादा करीब 19 लाख नागा साधु हैं और ज्यादातर पढ़े-लिखे साधु हैं. निरंजनी अखाड़ा सभी अखाड़ों में बहुत लोकप्रिय है। अखाड़े के इष्टदेव भगवान कार्तिकेय हैं, जो देव सेनापति हैं। निरंजनी अखाड़े की स्थापना विक्रम संवत 960, कार्तिक कृष्ण पक्ष सोमवार को गुजरात के मांडवी में हुई थी। महंत अजी गिरि, मौनी सरजूनाथ गिरि, पुरूषोत्तम गिरि, हरिशंकर गिरि, रणछोर भरत, जगजीवन भारती, अर्जुन भारती, जगन्नाथ पुरी, स्वभाव पुरी, कैलाश पुरी, खड्ग नारायण पुरी, स्वभाव पुरी ने संयुक्त रूप से अखाड़े की नींव रखी थी। अखाड़े का मुख्यालय तीर्थराज प्रयाग में स्थित है। अखाड़े के मठ उज्जैन, हरिद्वार, त्रयम्बकेश्वर और उदयपुर में स्थित हैं। शैव परंपरा के अखाड़े निरंजनी अखाड़े के करीब 70 फीसदी संतों ने उच्च शिक्षा प्राप्त की है।
निरंजन पीठाधीश्वर श्रीश्री 1008 आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरि जी महाराज का जन्म 1 जनवरी 1976 को बिहार के जमुई में देवघर के पास एक छोटे से गाँव में हुआ था। वह बचपन में ही होम सॉलिटेयर बन गए थे। उन्होंने बचपन में ही अपना घर छोड़ दिया और आध्यात्मिक जीवन की ओर चल पड़े। संतों की संगति में रहते हुए उनकी वैदिक सनातन धर्म के बारे में जिज्ञासा दिन-प्रतिदिन बढ़ती गई, इसलिए उन्होंने वैदिक शिक्षा का और अधिक ज्ञान प्राप्त करने का निर्णय लिया। इस उद्देश्य से उन्होंने कई आश्रमों में जाकर वैदिक धर्म, वेद, पुराण, उपनिषद और योग के बारे में बहुत कुछ सीखा।
2013 में प्रयागराज महाकुंभ में अग्नि अखाड़े ने पूज्य स्वामी जी को अपने अखाड़े का महामंडलेश्वर पद पर आसीन किया। यह पूज्य स्वामी जी की कड़ी मेहनत का ही परिणाम था कि उन्होंने 38 वर्ष की आयु में वैदिक सनातन धर्म का बड़ा और प्रतिष्ठित पद महामंडलेश्वर ग्रहण किया।
मानसून के दौरान प्रतिदिन लगभग 14 घंटे तक लगातार भगवान शिव का महारुद्राभिषेक लोगों के बीच कौतुहल का विषय बना रहता है। स्वामी जी का पूरे सावन माह तक मौन व्रत रखना और लगातार 14 घंटे तक भगवान शिव का रुद्राभिषेक करना लोगों की आस्था का केंद्र बन गया है।
अग्नि अखाड़ा 13 अखाड़ों में से एक है और यह अखाड़ा केवल ब्रह्मचारियों के लिए है। इस अखाड़े में कोई संन्यासी, कोई महंत या कोई अन्य पदाधिकारी नहीं हो सकता. ब्रह्मचारी रहना इस अखाड़े की मुख्य और सबसे बड़ी शर्त है। अग्नि अखाड़े के वर्तमान अध्यक्ष परम पूज्य बापू गोपालानंद ब्रह्मचारी जी ने कैलाश नंद ब्रह्मचारी को अपना शिष्य बनाया और उन्हें अग्नि अखाड़े का सचिव बनाया।
महन्त रोहित शास्त्री ने युवा पीढ़ी का आह्वान करते हुए कहा कि उनको भी निरंजन पीठाधीश्वर श्रीश्री 1008 आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरि जी महाराज का अनुसरण कर प्रदेश एवं राष्ट्र संस्कृति संरक्षण में अपना योगदान देना चाहिए।

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