भगवान परशुराम का सामाजिक दर्शन मुख्यत न्याय, धर्म और समाज सुधार पर आधारित है – डा. श्रीप्रकाश मिश्र

राज्य

मातृभूमि सेवा मिशन के तत्वावधान में भगवान परशुराम प्रकाट्टोत्सव के उपलक्ष्य में मातृभूमि शिक्षा मंदिर द्वारा लोक मंगल संवाद कार्यक्रम संपन्न

कुरुक्षेत्रl

भगवान परशुराम ने एकता का सूत्र संसार को दिया है। सभी जाति और समाजों में समरसता का संदेश दिया है।भारतीय वाङमय में सबसे दीर्घ जीवी चरित्र परशुराम जी का है। सतयुग के समापन से कलयुग के प्रारंभ तक उनका उल्लेख मिलता है। भगवान परशुराम जी के जन्म समय को सतयुग और त्रेता का संधिकाल माना जाता है। यह विचार भगवान परशुराम प्रकाट्टोत्सव के उपलक्ष्य में मातृभूमि शिक्षा मंदिर द्वारा आयोजित लोक मंगल संवाद में कार्यक्रम में मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने व्यक्त किये। कार्यक्रम का शुभारम्भ भगवान परशुराम के विग्रह के समक्ष पुष्पार्चन एवं दीप प्रज्ज्वलन से हुआ। मातृभूमि शिक्षा मंदिर के विद्यार्थियों ने भगवान परशुराम को नमन करते हुए उनके दिखाये मार्ग पर चलने का संकल्प लिया। विद्यार्थियों ने भगवान परशुराम के जीवन से सम्बन्धित प्रेरक प्रसंग भी प्रस्तुत किये।
लोक मंगल संवाद कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डा.श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा भगवान परशुराम का सामाजिक दर्शन मुख्यत न्याय, धर्म, और समाज सुधार पर आधारित है। वे अन्याय के विरुद्ध थे और उन्होंने क्षत्रिय समाज के अहंकारी राजाओं को पराजित किया, जो समाज रक्षण का मूल धर्म भूल गए थे। साथ ही, उन्होंने सामाजिक समरसता और भूमि सुधार के लिए भी कार्य किया। भारतीय इतिहास में इतना दीर्घजीवी चरित्र किसी का नहीं है। वे हमेशा निर्णायक और नियामक शक्ति रहे। दुष्टों का दमन और सत-पुरूषों को संरक्षण उनके चरित्र की विशेषता है। उनका चरित्र अक्षय है, इसलिए उनकी जन्म तिथि वैशाख शुक्ल तृतीया को माना गया। इस दिन का प्रत्येक पल, प्रत्येक क्षण शुभ मुहूर्त माना जाता है। विवाह के लिए या अन्य किसी शुभ कार्य के लिए अक्षय तृतीया के दिन अलग से मुहूर्त देखने की जरूरत नहीं है। उनके जीवन का समूचा अभियान, संस्कार, संगठन, शक्ति और समरसता के लिए समर्पित रहा है।

डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा भगवान परशुराम ने मानव जीवन को व्यवस्थित ढांचे में ढालने का महत्वपूर्ण कार्य किया। दक्षिण के क्षेत्र में जाकर वहां कमजोर समाज को एकत्रित कर समुद्र तटों को रहने योग्य बनाया। अगस्त ऋषि से समुद्र से पानी निकालने की विद्या सीख कर समुद्र के किनारों को रहने योग्य बनाया। एक बंदरगाह बनाने का भी प्रमाण परशुराम जी का मिलता है। वही परशुराम जी ने कैलाश मानसरोवर पहुंचकर स्थानीय लोगों के सहयोग से पर्वत का सीना काटकर ब्रह्म कुंड से पानी की धारा को नीचे लाये जो ब्रह्मपुत्र नदी कहलायी। परशुराम जी को भगवान् विष्णु का आवेशावतार कहा जाना भी उचित नहीं है. वे आवेश, पराक्रम, अस्त्र शस्त्र के साथ ज्ञान, विवेक, बुद्धि व विज्ञान दृष्टि से भी संज्ञ, प्रज्ञ व विज्ञ थे। परशुराम जी ने समूची सामाजिक व्यवस्थाओं की स्थापना आर्यावर्त के कोने कोने में की थी. उस कालखंड में जब समाज में आर्य एक उपाधि या गुणसूचक विशेषण हुआ करता था, उन्होंने अनार्य, अघोरी, औघड़, अवर्ण, सवर्ण, सभी को आर्यश्रेष्ठ बनाने का ऋषिवत आचरण रखा था। कार्यक्रम का समापन लोक मंगल की प्रार्थना से हुआ। कार्यक्रम में आश्रम के सदस्य, विद्यार्थी एवं अनेक गणमान्य जन उपस्थित रहे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *