-कौशल सिखौला वरिष्ठ पत्रकार
काग चींटियों गाय और कबूतरों को देते हैं अन्न जल
भारतीय संस्कृति अदभुत है । श्राद्ध पक्ष सीख देता है कि पितरों के साथ साथ पशु पक्षियों को भी वर्ष भर तृप्त रखा जाए । दिवंगत पितरों को किसी भी रूप में अन्न जल देने का वर्णन गरुड़ पुराण के साथ साथ ब्रह्म पुराण में भी किया गया है ।
धर्मशास्त्रों में वसुधा के सभी जीवों के जीवन की कामना की गई है । जलचर हों , भूमिचर अथवा नभचर ; सभी को साथ लेकर चलने का विधान रचा गया है । अध्यात्म कहता है कि जगत पर अकेले मनुष्य का नहीं अपितु लाखों अन्य जीव जंतुओं और पशु पक्षियों का भी पूरा हिस्सा है । यही कारण है कि धार्मिक प्रबंधों में पक्षियों को भी शामिल किया गया है । तथापि कुछ कुप्रथाओं तथा तांत्रिक गतिविधियों के चलते उल्लू जैसे पक्षियों के लुप्त होने की बात भी सामने आती रही है ।
श्राद्ध पक्ष में पितरों के साथ कव्य और श्राद्ध यज्ञ हव्य भी निकाले जाते हैं । गरुड़ पुराण के अनुसार ब्राह्मण को श्राद्ध का भोजन कराने से पूर्व गाय काग और श्वान को भोजन दिया जाता है । यद्यपि कुछ अन्य कारणों से कव्वों की संख्या में कमीं आई है , लेकिन आश्चर्य का विषय है कि अश्विन के श्राद्ध पक्ष में कव्वे दिखाई देने लगते हैं । श्राद्ध पक्ष में गाय को नियमित रूप से रोटी दी जाती है । पक्षियों को दाना डालने से अनेक प्रकार के संकट टल जाते हैं । प्राचीन काल से देशवासी कीट पतंगों और चींटियों को आटा डालते आए हैं । कबूतरों को दाना डालने की देश में बड़ी पुरानी परंपरा है । राजस्थान और गुजरात के सैकड़ों शहरों में कबूतरों के चौक मौजूद हैं । अनेक मुहल्लों के नाम ही कबूतरों का चौक मुहल्ला पड़ गया है ।
धर्मशास्त्रों में चिड़ियों और पक्षियों के लिए हजारों लोग छतों पर पानी भरकर रखते हैं । छतों पर सतनजा के नाम से सात प्रकार के अनाज उड़ने वाले पक्षियों के लिए डाले जाते हैं । सतनजा के बारे में कहा गया है कि पक्षियों को सतनजा खिलाने के लिए सवेरे के समय नदियों के किनारे जाना चाहिए । शास्त्रों के अनुसार चिड़ियों कबूतरों को सतनजा खिलाने से पितृदोषों का निवारण हो जाता है । दीपावली के अवसर पर लक्ष्मी के साथ उल्लू की भी पूजा प्रतीकात्मक रूप से की जाती है । गरुड़ पक्षी की पूजा भगवान विष्णु के साथ होती है ।
अलबत्ता तंत्र जगत ने पक्षियों को बहुत क्षति पहुंचाई है । अब तो बलि प्रथा बन्द होती जा रही है , लेकिन पहले तांत्रिकों ने उल्लू , कबूतर , कोयल और चमगादडों पर काफी कहर बरपाया है । जंगलों में अघोर साधना करने वाले उल्लू पकड़कर श्मशान के शवों के साथ उनके वीभत्स प्रयोग कर पक्षियों को समाप्त करने में योगदान करते थे । अब तांत्रिकों , मांत्रिकों और अघोरियों की संख्या घटने से इस कुप्रथा में कमीं आई है । बलि प्रथा भी काफी हद तक समाप्त हो गई है ।