पुत्रदा एकादशी:शारीरिक शुद्धता के साथ ही मन की पवित्रता का भी ध्यान रखना चाहिए

धर्म

शारीरिक शुद्धता के साथ ही मन की पवित्रता का भी ध्यान रखना चाहिए।

पुत्रदा एकादशी का व्रत हर वर्ष पौष माह शुक्ल पक्ष की एकादशी को रखा जाता है। पुत्रदा एकादशी व्रत के विषय में श्रीकैलख ज्योतिष एवं वैदिक संस्थान ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत रोहित शास्त्री (ज्योतिषाचार्य) ने बताया पुत्रदा एकादशी का व्रत महिलाएं अपनी संतान की लंबी उम्र और सुखी जीवन की कामना के लिए रखती हैं। इस वर्ष पौष शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 20 जनवरी शनिवार शाम 07 बजकर 27 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन यानी 21 जनवरी रविवार शाम 07 बजकर 28 मिनट पर समाप्त होगी पौष शुक्ल पक्ष की सूर्योदय व्यापिनी एकादशी 21 जनवरी रविवार को है इसलिए यह व्रत इस वर्ष सन् 2024 ई. 21 जनवरी रविवार को ही होगा। सभी एकादश‍ियों में पुत्रदा एकादशी का विशेष स्‍थान है,इस व्रत के प्रभाव से योग्‍य संतान की प्राप्‍ति होती है,इस दिन सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्‍णु की आराधना की जाती है। पौष पुत्रदा एकादशी का अपना अलग महत्व है क्योंकि पुत्रदा एकादशी का व्रत वर्ष में दो बार रखा जाता है एक श्रावण महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन और दूसरा पौष महीने के शुक्ल पक्ष में एकादशी के दिन व्रत किया जाता है।

एकादशी व्रत जीवन में संतुलनता को कैसे बनाए रखना है ये सीखाता है । इस व्रत को करने वाला व्यक्ति अपने जीवन में अर्थ और काम से ऊपर उठकर धर्म के मार्ग पर चलकर मोक्ष को प्राप्त करता है। यह व्रत पुरुष और महिलाओं दोनों द्वारा किया जा सकता है।

इस व्रत को निराहार या फलाहार दोनों ही तरीकों से रखा जा सकता है। व्रत रखने वाले शाम के समय भगवान विष्णु का पूजन करने के बाद फल ग्रहण कर सकते हैं। लेकिन इस व्रत का पारण द्वादशी तिथि को किया जाता है। व्रत के अगले दिन द्वादशी पर किसी जरुरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन कराकर कुछ दान-दक्षिणा जरूर दें।

धार्मिक शास्त्रों के अनुसार एकादशी के पावन दिन चावल एवं किसी भी प्रकार की तामसिक वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए ,इस दिन शराब आदि नशे से भी दूर रहना चाहिए। इसके शरीर पर ही नहीं, आपके भविष्य पर भी दुष्परिणाम हो सकते हैं,इस दिन सात्विक चीजों का सेवन किया जाता है।

व्रत पूजन विधि :-

इस व्रत के पूजन विधि के विषय में महंत रोहित शास्त्री ने बताया शारीरिक शुद्धता के साथ ही मन की पवित्रता का भी ध्यान रखना चाहिए,प्रातः काल पति पत्नी संयुक्त रूप से लक्ष्मीनारायण की उपासना करें,इस दिन सुबह स्नान कर पूजा के कमरे या घर में किसी शुद्ध स्थान पर एक साफ चौकी पर भगवान श्रीगणेश जी एवं भगवान लक्ष्मीनारायण की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद पूरे कमरे में एवं चौकी पर गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें। चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टी के कलश (घड़े )में जल भरकर उस पर नारियल रखकर कलश स्थापना करें, उसमें उपस्तिथ देवी-देवता, नवग्रहों,तीर्थों, योगिनियों और नगर देवता की पूजा आराधना करनी चाहिए,इसके बाद पूजन का संकल्प लें और वैदिक मंत्रो एवं विष्णुसहस्रनाम के मंत्रों द्वारा भगवान लक्ष्मीनारायण सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें। इसमें आवाह्न, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधितद्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्रपुष्पांजलि आदि करें। संतान गोपाल मन्त्र का जप करें,व्रत की कथा करें अथवा सुने तत्पश्चात प्रसाद वितरण कर पूजन संपन्न करें।

महंत रोहित शास्त्री (ज्योतिषाचार्य) अध्यक्ष श्री कैलख ज्योतिष एवं वैदिक संस्थान ट्रस्ट (पंजीकृत) संपर्कसूत्र :-9858293195,7006711011,9796293195,ईमेल आईडी rohitshastri.shastri1@gmail.com

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