प्राचीन काल के सरयू तट पर अवस्थित संतो की तपोस्थली, बारीपुर सिद्ध पीठ

धर्म

सरयू और सदानीरा के मध्य अवस्थित भू-भाग सदैव सनातन की शास्वत परम्परा को समृद्ध करने के लिए जानी जाती है l
आज भी भक्त जन इस पावन देवारण्य की भूमि पर साधको के तपश्चार्या के सुगंध का अनुभव करते हैं l
पुराणों के अनुसार भगवान श्री हरि विष्णु की मानस पुत्री, वैवस्वत् महाराज के बाण प्रभाव उद्भूत होकर मान सरोवर से जलधारा के रूप मे बाहर निकल कर भगवान श्रीराम के अवतार, वनगमन, बैकुंठ, यात्रा की साक्षी भगवती सरयू के उत्तर और वर्षा ऋतु मे भी अपनी पवित्रता नहीं खोने वाली हिमालय से निकल कर अपनी अविरल धारा से जनकपुर (नेपाल) और भारत को सींचने वाली श्री हरि की आज्ञा पर नदी रूप धारण कर पाषाण विग्रह शालीग्राम को शरण देने वाली गंड़की, सदानीरा, हिरण्यवती, आदि नामो से विख्यात निरंतर प्रवाहित होने वाली गंडक नदी के दक्षिण, और पश्चिम भाग मे स्वयंभू भगवान चतुर्भुजी का प्राकट्य स्थल उत्तर प्रदेश के अंतर्गत जनपद देवरिया मुख्यालय से 11किमी0 की दुरी पर देवरिया बरहज मार्ग पर स्थित हैं l


सिद्ध पीठ के आरम्भिक प्राकट्य इतिहास वर्ष, ईसा, सन की चर्चा करना यहां के भौगोलिक स्थिति के अनुसार इसलिए प्रासंगिक नहीं हैं l कि भगवान श्रीराम के अवतार के पूर्व श्री राम की नगरी अयोध्या की पाँव पखारने वाली सरयू नदी सिद्ध पीठ के समीप प्रवाहित होती रही हैं l जिसका साक्षात् प्रमाण सिद्ध पीठ के समीप, स्थित सोनूघाट और रानीघाट, गांव हैं l
बरसात के दिनों मे सिद्ध पीठ के पूरब दिशा में स्थित एकडंगा गांव के ताल में सोनूघाट से बरहज तक जल प्रवाह का सरयू रूप धारण कर लेना,सिद्ध पीठ के समीप साधको के तापश्चर्या की भूमि होने को प्रमाणित करते हुये तपस्या के सुगंध की अनुभूति कराती हैं l
भगवान चतुर्भुजी और हनुमान
मंदिर के बाएं तरफ स्थित वन देवी स्थान के बारे में क्षेत्रीय जन बताते हैंl कि ठाकुर जी, हनुमान जी के दर्शन के पश्चात्
वन देवी और लंगोटिया ब्रह्म स्थान के दर्शन से भक्तों के मनोरथ शीघ्र ही पूर्ण हो जाते हैं l
यह किम्बदंति हैं कि लंगोटिया ब्रह्म जी महराज सिद्ध पीठ के अदृश्य चौकीदार हैंl
सिद्ध पीठ के पीठाधीश्वर, शिवचरण दास जी के उत्तराधिकारी संत गोपाल दास जी ने बताया कि,सैकड़ो वर्ष पूर्व कुटी परिसर में साधना कर रहें संत रामरेखा दास जी को ठाकुर जी ने स्वप्नन बताया कि आप लोग जहां पूजा, पाठ, हवन, कर रहें हैं, उसी हवन कुंड के निचे मेरा विग्रह हैं l जिसे कुटिया बना कर स्थापित करें तो उस विग्रह का दर्शन करने वाले भक्तों के मनोरथ शीघ्र पूर्ण हो जायेंगे l फिर संत रामरेखा दास जी द्वारा उसी स्थान पर कुटी बनाकर हवन यज्ञ किया जाने लगा l
संकट मोचन हनुमान जी के विग्रह के बारे में उन्होंने बताया कि घने जंगल के बीच पगडंडी से बरहज के कुछ व्यापारी रामभक्त संकट मोचन हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित करने के लिए ले जा रहें थे, अभी पीठ के समीप पहुंचे ही थे, कि बैल गाड़ी का पहिया टूट गया, रात का समय था, दूसरा पहिया लगा, ज्योंही चलने की तैयारी हुई दूसरा पहिया टूट गया, बैल गाड़ी का एक पहिया बनता दूसरा टूट जाता l यह सिलसिला तीन दिन तक चलता रहा l परेशान होकर व्यापारी सिद्ध पीठ कुटी में विराजमान ठाकुर जी के साधक संत रामरेखा दास जी के पास पहुंचकर आपबीती बताये तो वह ध्यान मग्न होकर अपनी अनुभूति व्यापारियों से बताये कि ठाकुर जी के विग्रह को लांघ कर हनुमान जी जाने को तैयार नहीं हैं l तब व्यापारियों ने संकट मोचन की मूर्ति ठाकुर जी के बगल में स्थापित किया l
बरहज में इसी पीठ से जुडा एक हनुमान मंदिर स्थित हैं I

पंडित गिरजेश मिश्र 

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