-डॉ. रमेश खन्ना, वरिष्ठ पत्रकार
प्रयागराज में महाकुम्भ पर्व को लेकर मेलाधिकारी ने जो बैठक बुलायी थी, उसमें साधु, संतांे, मठाधीशों और कुछ हिन्दू धर्म के कथित छद्म ठेकेदारों ने धर्म की मर्यादाओं को तार-तार कर जिस असंसदीय भाषा में भद्दी गालियों के साथ मेलाधिकारी के कक्ष में ही मारपीट और शर्मनाक व्यवहार का प्रर्दशन किया उसकी निंदा के लिए शब्द ही नहीं हैं।
हमारे सनातन धर्म मंे तो ऐसे-ऐसे पुरोधा पैदा हुए जिन्हांेने पूरे विश्व में सनातन धर्म की पताका को उस शिखर पर पहुंचाया जहां कोई अन्य धर्म शायद ही पहुंचा पाये। आदिगुरु शंकराचार्य, महात्मा गौतम बुद्ध, स्वामी करपात्री जी महाराज जैसी महान विभूतियां इसी राम, कृष्ण की धरती पर पैदा र्हुइं। वर्तमान परिस्थियों में सनातन धर्म के धर्म ध्वजवाहक बडे़-बडे़ विशाल आसमान छूती लग्जरी सुविधाओं से युक्त अटिकालिकाआंे में धर्म का ध्वज लगाकर उसे आश्रम बताकर महंगी से महंगी लग्जरी करोडों की कारों की पंक्तियां खडी कर, महंगे विदेशी इत्र और रंग बिरंगे तिलक त्रिपंुड लगाकर सनातन धर्म की रक्षा का राग अलापते हैं। कथित मठाधीशांे सनातन धर्म को खतरा मुगलांे, ईसाई मिशनरियांे से नहीं, सनातन धर्म के कुछ उन ठगाधीशों से है जो अपने महलनुमा आश्रमों में देश के बडे-बडे राजनेताआंे को आमन्त्रित कर उनकी चाकरी व मोटे-मोटे चंदे महज चुनाव में पार्टी का टिकट पाने और स्थानीय प्रशासन व शासन पर अपना रुतवा कायम करने पर मशगूल हैं।
मुगल शासन काल में जब मुगल सनातन धर्म का बाल बांका नहीं कर सके तो स्वतन्त्र भारत मंे किसी की क्या मजाल जो हमारे परम गौरवशाली सनातन धर्म की तरफ देख भी सके। रघुकुलभूषण मर्यादा पुरूषोतम करुणा के सागर राम के नाम तो महज चुनावी स्टंट तक ही सीमित कर दिया गया है। आज बेरोजगार पढे़-लिखे युवाआंे को उनकी बेरोजगारी का फायदा उठा कर धर्म के नाम पर हो रही राजनीति के कार्यकर्ताओं की हैसियत में बदल दी गई है, उन्हें मामूली सा कथित वेतन देकर चन्दे, मंदे के धन्धे में और नेताआंे की राजनैतिक प्रचार-प्रसार में झोंक दिया गया है। बैंकांे से एजुकेशन लोन लेकर उच्च शिक्षा प्राप्त युवा अपनी देश विदेश से ली गई डिग्रियां लेकर सडकों पर भटक रहे हैं। इसके पीछे सम्पन्न लोगों को मिलने वाला आरक्षण भी अहम कारण है। अत्याधिक प्रतिशत अंक होने पर भी गरीब सवर्ण नौकरी की बनी कमेटी से आरक्षण के कारण नौकरी से वंचित हो जाते हैं। कोई सनातन धर्म का ध्वजवाहक इस पर खामोशी धारण किये रहता है।
शोषित, वंचित, उपेक्षित दलितांे को विश्व की श्रेष्ठतम रचना रामचरित्र मानस के नायक त्याग, दया, समता, करुणानिधान श्रीराम के माध्यम से प्रतिष्ठित करने वाले महर्षि बाल्मीकि और गोस्वामी तुलसीदास जी को भी आने वाली पीढ़ी भूल गई हैं। अधिकांश पब्लिक स्कूलों में पढ़ने वाले महर्षि बाल्मिकी और तुलसीदास जी की बात तो छोड़िये वह भगवान श्रीराम व श्रीकृष्ण के बारे में भी कुछ नहीं जानते।
सनातन धर्म के प्रचार प्रसार के लिए बने मन्दिर, मठ, आश्रम स्वयं के ही प्रचार में मशगूल है, और अपने अस्तित्व के लिए प्रयागराज जैसी शर्मनाक घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। दरअसल हरिद्वार में तकरीबन 70-80 प्रतिशत संत अपने आश्रमों में जो धर्म की आढ़त की दुकान खोलकर बैठे हैं वहां दिन भर प्रॉपर्टी डीलरों का आवागमन रहता है। आज हरिद्वार के जिला एवं सत्र न्यायालय में सिविल (जमीन, जायदादों के विवाद) कोर्ट में आधे से ज्यादा इन्हीं धर्म ध्वजवाहकों के हैं, जिन्हें धर्मान्ध हिन्दू अपना गुरु और मार्गदर्शक मानते हैं, और यह किस राह पर हैं यह प्रयागराज में संतांे की हिंसक मारपीट से सिद्ध हो गया है। यह संत ज्यादातर विदेश यात्राओं में भी रहते हैं क्यों ? इसको लिखने की आवश्यकता नहीं समझता आप स्वयं ज्यादा समझदार हैं। राजनैतिक संरक्षण के यह कुछ संत कानून, संविधान को दरकिनार कर निरंकुशता की सारी सीमाऐं लांघ जाते हैं।
अब बात करंे, धर्माचार्यों, तीर्थ पुरोहितों और पतित पावनी मां भगीरथी गंगा माँ के नाम पर धनोपार्जन करने वालों की तो यहां भी स्थिति काफी दयनीय है। अब जप, तप, भजन व अनुष्ठान करने वालों की तादाद दिन प्रतिदिन तेजी से आधुनिकता के गर्भ में समा रही हैं। कुछ पण्डा पुरोहित महज दान लेने तक ही सीमित हो गये हैं। विद्वता इनसे कोसों दूर है।
मुझे अध्ययन काल में पढ़ने को मिला था इतिहास का वो दौर जब मुगलों का साम्राज्य तेजी से बढ़ रहा था। लोगांे मंे उनके भय का आतंक था, उस दौर में ब्राह्मण कवि पंडितराज जगन्नाथ ने मुसलमान शहजादी लवंगी का हाथ मांगकर सबको चौंका दिया था। बनारस में रहने वाले तेलगु ब्राह्मण परिवार में जन्मे पंडित राज जगन्नाथ शाहजहां के दरबार में सबसे अहम कवि रहे। उनकी रचनाओं व तर्कों, से खुश होकर मुगल बादशाह ने उन्हंे पंडितराज की उपाधि से नवाजा।
पंडितराज मुगल युवराज को संस्कृत तथा हिन्दू रीति रिवाज व मर्यादाओं की शिक्षा देने को नियुक्त हुए थे। दारा शिकोह को शिक्षा देने के दौरान उन्होंने मुगल शहजादी को देखकर उसे दिल दे दिया। शहजादी लवंगी भी पंडितराज को दिल दे बैठी।
एक दिन दरबार में पंडित जगन्नाथ ने वेद, पुराण, उपनिषद् और कुरान शरीफ के ऐसे नजीर रखे की शाहजहां पंडित जी की विद्वता से बहुत प्रभावित हुए, उन्होंने भरे दरबार में मुगल बादशाह शाहजहां से शहजादी का हाथ मांग लिया। सभी दरबारी चाैंक गये पंडितराज जगन्नाथ के ग्रन्थ प्रेमलहरी के अनुसार बादशाह ने उनसे उनकी बिरादरी के विद्रोह को पूछा तो उन्होंने कहा कि मुझे इसकी परवाह नहीं है। शाहजहां और मुमताज महल की 14 वीं सन्तान शहजादी, गौहरआरा उर्फ लवंगी की शादी हो गई।
जब पंडितराज जगन्नाथ अपनी पत्नी लवंगी को लेकर बनारस पहुंचे तो बनारस के विद्वान ब्राह्मणों ने ना केवल उनका विरोध किया बल्कि घोर अपमान भी किया उन्हें अपवित्र घोषित कर दिया। इससे व्यथित होकर पंडित जी गंगा घाट पर ही बैठ गये और मां गंगा का ध्यान कर गंगाजी की स्तुति मंे श्लोक रचने लगे जैसे-जैसे पंडित जी श्लोक पढ़ते जाते गंगा जी सीढ़ी दर सीढ़ी ऊपर आती जाती। यह देख काशी (बनारस) के ब्राह्मणों ने उनसे क्षमा मांगी। यह पंडितराज जगन्नाथ जी की माँ गँगा के प्रति आस्था, भक्ति और श्वांस-श्वांस मंे उनकी स्तुति।
आज हरिद्वार मंे सजे हुए धर्म के बाजार में भी किसी ऐसे गंगा पुत्र की जरूरत है, जो पतित पावनी मां भागीरथी गंगा के स्वरूप को प्रकट कर उसके धरती पर उपस्थिति का एहसास करवा कर गंगा के नाम पर आडम्बरधारी कुछ तथाकथित मठाधीशों की हकीकत को उजागर कर श्रद्धालुआंे को यहां जो चल रहा है उसका एहसास करा सके। अन्यथा गंगा जी की छाती पर जो जख्म हो रहे हैं उससे कहीं माँ सरस्वती की तरह वह भी लोप ना हो जाये।
हमारे संतों को अपना आचरण बदलना होगा। उनका आचरण ना तो भगवे के अनुरूप है और ना ही धर्म के अनुरूप। आज जो हमारी युवा पीढ़ी पश्चिम की ओर भाग रही है, वह संतों से सबक लेकर सनातन धर्म के प्रचार एवं प्रसार को आगे आए, ऐसा उनको अपने व्यवहार में परिवर्तन लाना होगा।