कनखल में गंगा के तट पर सतीघाट में सिखों के तीसरे गुरु श्री गुरु अमर दास जी का तप स्थान स्थित है भाद्रपद पूर्णिमा के दिन शनिवार को श्राद्ध पक्ष के प्रथम दिन उनकी स्मृति में ज्योति ज्योत समागम एवं गुरु जन स्मृति समारोह का आयोजन किया गया इस ऐतिहासिक तप स्थल का जीर्णोद्धार और सौंदर्यीकरण महंत श्री रंजय सिंह महाराज और उनकी माताजी श्रीमती बिंनिंदर कौर सोढ़ी बिन्नी ने गुरु महाराज से प्राप्त अंतः प्रेरणा से करवाया.
सिखों के तीसरे गुरु अमर दास जी ने किया को तीर्थ नगरी हरिद्वार और गंगा मैया ने हमेशा आकर्षित किया। गुरु अमरदास जी को जब यह पता चला कि तीर्थ नगरी हरिद्वार की उपनगरी कनखल के गंगा तट पर सती घाट में सती प्रथा का प्रचलन है तो वे पंजाब के अमृतसर जिले के बासर गांव से कनखल अपने भक्तों के साथ आए और उन्होंने सती प्रथा के खिलाफ गंगा के पावन तट पर अलख जगाई। साधु-संतों और पंडों पुरोहितों को सती प्रथा को बंद करने के लिए प्रेरित किया और विधवा महिलाओं के सशक्तिकरण और पुनर्विवाह कराने का कार्य शुरू करवाया।
500 साल पूर्व गुरु अमर दास ने हिंदू धर्म में प्रचलित सती प्रथा के खिलाफ सबसे पहले आवाज उठाई। सती प्रथा के खिलाफ लगातार आवाज उठाने के लिए उन्होंने कनखल का 22 बार भ्रमण किया। उन्होंने हिंदू धर्म में व्याप्त छुआछूत और जातिवाद की कुरीति को दूर करने के लिए गंगा के पावन तट पर एक कुआं खुदवाया, जिसका नाम रखा साझी-बावरी। यानी किसी भी जाति या धर्म का व्यक्ति इस कुएं से पीने के लिए पानी भर सकता था। गुरु अमरदास जब पहली बार तीर्थ नगरी कनखल में गंगा तट पर स्थित सतीघाट पहुंचे तो उनके पैर में एक तीर्थ पुरोहित ने पद्म का चिन्ह देखा और कहा कि वे एक महान सिद्ध साधक या महान चक्रवर्ती सम्राट बनेंगे।
गुरु अमरदास सती घाट कनखल में 21 बार गृहस्थ के रूप में तथा एक बार गुरु गद्दी प्राप्त होने के बाद गुरु के रूप में आए। उन्हें 73 साल की उम्र में 1552 में गुरु गद्दी प्राप्त हुई और वे 1574 तक 22 साल तक गुरु गद्दी पर विराजमान रहे। इस तरह हरिद्वार के तीर्थ पुरोहित की भविष्यवाणी सही साबित हुई और वे महान सिद्ध साधक और गुरु बने। 5 मई 1479 को अमृतसर में जन्मे गुरु अमरदास का 95 साल की उम्र में पंजाब के गोइंदवाल में 1574 में निधन हुआ।
कनखल में सती घाट में गंगा के तट पर गुरु अमरदास जी की स्मृति में तप स्थान बना हुआ है। उनके इस तप स्थान पर मंजी साहब की स्थापना की गई है। जहां पर बैठकर गुरु महाराज ने गंगा की साधना की थी। इस तप स्थान मंजी साहब में 22 गुंबद बनाए गए हैं, जिनमें पीतल के कलश चढ़ाए गए हैं। ये कलश और गुंबद गुरु अमरदास के गंगा के इस पावन तट पर 22 बार आने की स्मृति में बनाए गए हैं। उनके इस तप स्थान मंजी साहिब के पास निशान साहिब स्थापित है और श्री गुरुग्रंथ साहिब जी का प्रकाश भी कई सालों से इस स्थान पर हो रहा है। उनके प्रकाश पर्व के अवसर पर हर साल इस तप स्थान पर शब्द कीर्तन अखंड पाठ और लंगर का आयोजन व्यापक स्तर पर किया जाता है।
सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह महाराज के निर्देश पर उनके शिष्य बाबा दरगाह सिंह महाराज ने इस स्थान की खोज की और इसका जीर्णोद्धार किया। इसलिए इस तप स्थान का पूरा नाम डेरा बाबा दरगाह सिंह तप स्थान पीजी पातशाही गुरु अमर दास है। जहां गुरुद्वारा भी स्थापित है। इस तप स्थान के मौजूदा महंत रंजय सिंह महाराज हैं। जिनकी शिक्षा-दीक्षा देहरादून के दून स्कूल और उच्च शिक्षा दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कॉलेज में हुई। वे विधि स्नातक हैं। महंत रंजय सिंह महाराज का कहना है कि गुरु अमरदास का यह तप स्थान भक्तों को हमेशा सामाजिक कुरीतियों को समाप्त करने और सामाजिक समरसता स्थापित करने की प्रेरणा देता है।