-बालकृष्ण शास्त्री
यह कितना सुखद होगा जब श्रुति, स्मृति, उपनिषद और पुराणों में प्रयुक्त संस्कृत की सरल हिंदी व्याख्या काव्य के रूप में सामने आ जाय। यह निश्चय ही संस्कृत भाषा से भी ज्यादा हिंदी के लिए एक उपहार जैसा है। आश्चर्य की बात नहीं, क्योकि ऐसा महाकाव्य ‘हे नचिकेता’ प्रकाशित हो गया है। यह महती कार्य किया है माधुरी महाकाश ने। इसका प्रकाशन निखिल पब्लिशर्स एण्ड डिस्ट्रीब्यूटर्स, आगरा ने किया है। यह हिन्दी भाषा का ऐसा कार्य है जिसकी आवश्यकता निरंतर महसूस की जा रही थी। मूल संस्कृत ग्रंथ के अध्ययन को अत्यंत सरल बनाने के लिए किए गए इस कार्य को शब्दों में व्यक्त करना कठिन है। सामान्य हिंदी भाषी व्यक्ति के लिए भी यह महाकाव्य बहुत कुछ सरल बना देगा। इस महाकाव्य की भूमिका में प्रभु नारायण, पूर्व अवध प्रांत संघ चालक एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष महामना मालवीय मिशन ने महाकाव्य का पूरा सार दे दिया है।
भारत के अनेक मूर्धन्य विद्वानों द्वारा प्राप्त ज्ञान और दिशानिर्देशन में तैयार किये गए इस महाकाव्य के कुल 152 पृष्ठ एवं नौ भागों द्वारा भाषिक क्षमता और मनोभाव को भारतीय पटल पर प्रस्तुत करने के लिए तैयार हैं। इस ग्रंथ में कवयित्री ने यम नचिकेता के संवाद को अपनी सरल हिन्दी काव्यशैली में लिखा है। हमारे ग्रन्थों को सभी लोग जिस संसाधन से समझ सकें और यह सरस,सुगम बने, इसके लिए ऐसे महाकाव्यों, टीकाओं और भाष्यों की रचना समय-समय पर होती रही है। जनपद गोरखपुर में पैदा हुईं माधुरी महाकाश जी ने परास्नातक के बाद योग, प्राकृतिक चिकित्सा का भी अध्ययन किया। हे नचिकेता एक महाकाव्य ही नहीं बल्कि इनकी अन्तर्यात्रा का एक पड़ाव है।