महान वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में मातृभूमि मिशन के तत्वावधान में मातृभूमि शिक्षा मंदिर द्वारा शौर्य संवाद कार्यक्रम संपन्न।
कुरुक्षेत्र।
रानी लक्ष्मीबाई की महानता और उनका अदम्य साहस भारतीय इतिहास में अमर हैं। रानी लक्ष्मीबाई भारतीय नारी की आदर्श प्रतिमूर्ति थी तो इसके साथ ही वे महिला सशक्तिकरण की प्रतीक भी थीं। अपने जीवन काल में रानी लक्ष्मीबाई ने कुछ ऐसे कार्य किए हैं, जो उनके जाने के 160 से अधिक वर्ष के बाद भी सम्पूर्ण भारत वर्ष के लिए प्रेरणास्रोत हैं। रानी लक्ष्मीबाई भारतीय स्वतंत्रता की प्रतीक थीं। उन्हें ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के खिलाफ 1857 के भारतीय विद्रोह में उनकी केंद्रीय भूमिका के लिए जाना जाता है। यह विचार महान वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने मातृभूमि शिक्षा मंदिर द्वारा आयोजित शौर्य संवाद कार्यक्रम में व्यक्त किये।शौर्य संवाद कार्यक्रम का शुभारम्भ मातृभूमि शिक्षा मंदिर के विद्यार्थियों द्वारा वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई के चित्र के समक्ष माल्यार्पण, दीप प्रज्ज्वलन एवं पुष्पार्चन से हुआ।
इस अवसर पर मातृभूमि शिक्षा मंदिर के विद्यार्थियों ने रानी लक्ष्मी बाई के जीवन से प्रेरणा लेकर राष्ट्रसेवा का संकल्प लिया। विद्यार्थियों को रानी लक्ष्मीबाई के महान एवं संघर्षशील जीवन पर प्रकाश डालते हुए डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा रानी झाँसी लक्ष्मीबाई की संघर्ष गाथा ओर बलिदान जनमानस के लिए विस्मृत नहीं वर्तमान काल में नारी सशक्तिकरण, नेतृत्व व संगठनतमक राजनीतिक प्रशासनिक कुशलता का जो परिचय रानी लक्ष्मीबाई ने दिया वह स्तुत्य हैं। उनके रणकुशलता वीरता अदम्य साहस की अंग्रेजी शासन ने भी प्रसंशा की है । वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई अंग्रेज साम्राज्य के लिए भय का पर्याय थी। रानी लक्ष्मीबाई भारतीय इतिहास वर्तमान और भविष्य के लिए सदा प्रेरणापुंज रहेगी। वर्तमान में नारी शक्ति और उनकी स्थिति को लेकर चलने वाले विषयों के लिए यह एक प्रत्युत्तर भी है की जब 18 वीं सदी में पश्चिम में जहाँ नारी पशुजन्य समझी जाती थी उस काल विशेष में एक नही अनेको भारतीय महिला नारी शक्ति के रूप न सिर्फ समाज, धर्म अर्थ राजनीति ही नही रण क्षेत्र में अपनी शक्ति का परिचय दे चुकी थी।
डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा आज की महिलाओं के लिए, वह सशक्तिकरण और समानता की प्रतिमूर्ति हैं। 18 जून 1858 को ग्वालियर का अंतिम युद्ध हुआ और रानी ने अपनी सेना का कुशल नेतृत्व किया। वे घायल हो गईं और अंतत: उन्होंने वीरगति प्राप्त की। रानी लक्ष्मीबाई ने स्वातंत्र्य युद्ध में अपने जीवन की आहुति देकर जनता जनार्दन को चेतना प्रदान की और राष्ट्रीय रक्षा के लिए बलिदान का संदेश दिया। रानी लक्ष्मीबाई का बलिदान उस समाज के लिए भी एक प्रेरणा है जो देश के विरोध में नए नए षड्यंत्र करते हैं। क्योंकि विचार करने वाली यह है कि देश को स्वतंत्र कराने के लिए जिन योद्धाओं ने अंग्रेजों से मुकाबला किया, वह उनके स्वयं के लिए नहीं था, बल्कि सम्पूर्ण भारतीय समाज के लिए ही था। आज हम स्वतंत्र भारत में जी रहे हैं तो इसमें इन क्रांतिकारियों का अविस्मरणीय योगदान है। भारत की भावी पीढ़ी को ऐसे नायकों से प्रेरणा लेकर जितना भी बन सके, राष्ट्र के लिए योगदान देना ही चाहिए। कार्यक्रम में मातृभूमि शिक्षा मंदिर के सदस्य, विद्यार्थी, शिक्षक आदि उपस्थित रहे। विद्यार्थियों ने रानी लक्ष्मीबाई के जीवन से सम्बन्धित अनेक प्रेरक प्रसंग प्रस्तुत किये। कार्यक्रम का समापन राष्ट्रीय गीत वन्देमातरम से हुआ।