प्राचीन काल से भारतीय सभ्यता और संस्कृति ने संपूर्ण विश्व को शांति व अहिंसा का संदेश दिया है: डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र

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मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा संचालित मातृभूमि शिक्षा मंदिर के विद्यार्थियों ने अंतर्राष्ट्रीय विश्व शांति दिवस के उपलक्ष्य आयोजित कार्यक्रम में विश्व शांति की कामना की
कुरुक्षेत्र।
भारतीय संस्कृति व सभ्यता विश्व की सर्वाधिक प्राचीन एवं समृद्ध संस्कृति व सभ्यता है। इसे विश्व की सभी संस्कृतियों की जननी माना जाता है। जीने की कला हो, विज्ञान हो या राजनीति का क्षेत्र भारतीय संस्कृति का सदैव विशेष स्थान रहा है। प्राचीन काल से भारतीय सभ्यता और संस्कृति ने संपूर्ण विश्व को शांति व अहिंसा का संदेश दिया है। यह विचार मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने अंतर्राष्ट्रीय विश्व शांति दिवस पर मिशन द्वारा फतुहपुर स्थित आश्रम परिसर में आयोजित शांति संवाद कार्यक्रम में व्यक्त किए। कार्यक्रम का शुभारंभ भारत माता एवं योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण के चित्र पर मातृभूमि शिक्षा मंदिर के विद्यार्थियों द्वारा दीप्रज्ज्वलन,पुष्पार्चन एवं शांतिपाठ से हुआ।
डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास शांति के धरातल पर ही संभव है। शांति हमारे जीवन में आवश्यक है, क्योंकि शांत वातावरण में ही मनुष्य के रचनात्मक व्यक्तित्व का विकास होता है। शांति ही सकारात्मकता की वृद्धि करती है। शांति में ही प्रगति न केवल निहित होती है, अपितु उसे समृद्धि की पहली सीढ़ी भी माना जाता है। व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास शांति के धरातल पर ही संभव है। अन्य देशों की संस्कृतियाँ तो समय की धारा के साथ-साथ नष्ट होती रही हैं किंतु भारत की संस्कृति व सभ्यता आदिकाल से ही अपने परंपरागत अस्तित्व के साथ अजर-अमर बनी हुई है। विश्व शांति दिवस पर यूनाइटेड नेशनल जनरल असेंबली राष्ट्रों और लोगों के बीच अहिंसा, शांति और युद्धविराम के आदर्शों को बढ़ावा देने के प्रयास करती है। इस वर्ष वलर््ड पीस डे की थीम है जिसका अर्थ है नस्लवाद खत्म करें। शांति स्थापित करें। लिंग, नस्ल और क्षेत्रों में स्वीकृति के लिए शांति और खुले विचारों को बढ़ावा देना आज पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। दुनिया भर के राष्ट्र और समुदाय गरीबी और बीमारी, शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल के साथ संघर्ष करते हैं। अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस हमें याद दिलाता है कि चाहे हम कहीं से भी आए हों या हम कौन सी भाषाएं बोलते हों, हम अलग होने से कहीं अधिक एक जैसे हैं।
डॉ. मिश्र ने कहा कि हर वर्ष 21 सितंबर का दिन दुनिया भर में अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस के तौर पर मनाया जाता है। दुनिया के तमाम देशों और लोगों के बीच शांति के आदर्शों को बढ़ावा देने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 1981 से इस दिवस की शुरुआत की। इसके बाद पहली बार इसे साल 1982 के सितंबर माह के तीसरे मंगलवार को मनाया गया था। 1982 से लेकर साल 2001 तक अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस को सितंबर माह के तीसरे मंगलवार को मनाया गया। दो दशक बाद 2001 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक राय से इस दिन को अंहिसा और युद्धविराम का दिन घोषित किया। इसके बाद अभी तक हर साल 21 सितंबर के दिन अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस मनाया जा रहा है। पहली बार इस दिवस को 1982 में कई राष्ट्रों, राजनीतिक समूहों, सैन्य समूहों और लोगों द्वारा मनाया गया था। 2013 में संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने इसे शांति शिक्षा के लिए समर्पित किया। विश्वास, समावेशिता और सहयोग राष्ट्रों के भीतर और दोनों के बीच समाजों के बीच शांति का परिणाम है। व्यक्तियों का सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस मनाने का उद्देश्य है। यह उन सभी लोगों के प्रयासों को पहचानने के लिए उत्सव का दिन है, जिन्होंने शांति की संस्कृति का निर्माण किया है और जारी रखा है। संयुक्त राष्ट्र दुनिया भर के प्रत्येक व्यक्ति को एक ऐसी दुनिया की ओर प्रयास करने के लिए आमंत्रित करता है जहां सद्भाव शत्रुता पर जीत हासिल करता है। जब आज पूरा विश्व परमाणु बम के प्रभाव में है ऐसे में शांति की संकल्पना हो विश्व मानवता की रक्षा कर सकती है।
मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा संचालित मातृभूमि शिक्षा मंदिर के विद्यार्थियों ने अंतर्राष्ट्रीय विश्व शांति दिवस के उपलक्ष्य आयोजित कार्यक्रम में विश्व शांति की कामना की। कार्यक्रम में मातृभूमि सेवा मिशन के अनेक सदस्य एवं गणमान्य जन उपस्थित रहे। कार्यक्रम का समापन कल्याण मंत्र से हुआ।

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