प्रयागराज।
मेजर सरस त्रिपाठी द्वारा लिखित पुस्तक “Silent Constitution Dangerous Consequences” (English) और “मौन संविधान : भयानक परिणाम” (हिंदी) का लोकार्पण हिन्दुस्तानी अकादमी सभागार में पश्चिमी बंगाल के पूर्व राज्यपाल और उत्तर प्रदेश के पूर्व विधान सभा अध्यक्ष श्री केशरी नाथ त्रिपाठी के द्वारा किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता फूलपुर की लोकसभा सांसद श्रीमती केशरी देवी पटेल ने किया और विशिष्ट अतिथि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एवं वर्तमान में उच्च शिक्षा परिषद के अध्यक्ष डाक्टर गिरीश चन्द्र त्रिपाठी थे। भाजपा के राष्ट्रीय परिषद के सदस्य श्री विभूति नारायण सिंह भी कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि थे।
पुस्तक में 21 ऐसे कानूनों और संवैधानिक संशोधनों की अनुशंसा की गई है जो देश हित और समाज के हित में
अत्यावश्यक हैं। पुस्तक के लेखक मेजर सरस त्रिपाठी ने पुस्तक की विषय वस्तु पर विस्तार से प्रकाश डाला उन्होंने
इस बात पर जोर दिया कि संविधान में अल्पसंख्यकों आर्टिकल 25 से 30 तक विशेषाधिकार के लिए अलग कानून तो हैं लेकिन संविधान इस बात पर मौन है कि अल्पसंख्यक कौन है? उन्होंने प्रश्न किया कि क्या अल्पसंख्यक कोई भी कम्युनिटी तब तक रहेगी जब तक कि वह 51% नहीं हो जाती ? क्योंकि संविधान में कहीं भी यह परिभाषित नहीं किया गया है कि कितने प्रतिशत के बाद कोई वर्ग अल्पसंख्यक नहीं गिना जाएगा। पुनश्च, जिन 9 राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों में हिन्दू अल्पसंख्यक हैं उन्हें अल्पसंख्यकों के अधिकार क्यों नहीं दिए गए हैं? इसलिए अल्पसंख्यक शब्द को प्रतिशत के संदर्भ में परिभाषित किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त राजनीतिक पार्टियों में आंतरिक लोकतंत्र की कमी, कानूनों का जीवन निर्धारण, हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के विषय में नए कानून प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों का जनता द्वारा सीधे चुनाव, ब्यूरोक्रेसी में लैटरल एंट्री का प्रावधान, राज्यों के राज्यपालों की भूमिका, हिंदू धार्मिक संस्थान अधिनियम, न्यायाधीशों की नियुक्ति में संशोधन और सुधार, हिन्दू धर्म को राजकीय संरक्षण देने जैसे कानून है जिनकी मेजर सरस त्रिपाठी ने अत्यधिक आवश्यकता बताई। उन्होंने “एक देश एक चुनाव” की तर्कपूर्ण और तथ्यात्मक विवेचना करते हुए कहा की “एक देश एक चुनाव” से राष्ट्र लगभग 60,000 करोड़ रूपया बचा सकता है जो दुनिया के 50 देशों के सकल घरेलू उत्पाद से अधिक है।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति और उच्च शिक्षा परिषद के अध्यक्ष डाक्टर गिरीश चन्द्र त्रिपाठी विशिष्ट
अतिथि के रूप में बोलते हुए कहा कि संविधान में अनेकों संशोधन की आवश्यकता है। कुछ संशोधन हुए हैं और
कुछ अति आवश्यक संशोधन होने अभी शेष है। इसके अतिरिक्त संविधान में कुछ ऐसी विसंगतियां हैं जो प्रारंभ से
ही है जैसे मौलिक संविधान में अधिकार पर अत्यधिक जोर दिया गया है जबकि मौलिक कर्तव्य पर संविधान मौन
है। उन्होंने ने इस बात पर विशेष जोर दिया की “जन” का जागृत होना ही सभी समस्याओं का समाधान है।
मुख्य अतिथि और प्रमुख वक्ता श्री केशरी नाथ त्रिपाठी ने हमारे प्राचीन धर्म ग्रंथों का उदाहरण देते हुए यह बताया
कि हमारी जो प्राचीन न्याय व्यवस्था थी वह कितनी सुंदर थी और वर्तमान न्याय व्यवस्था हमारे देश में अंग्रेजों की
दी हुई है और यह एक औपनिवेशिक शासकों द्वारा जनता के लिए बनाए गए कानून है। उन्होंने कहा कि पुस्तक में
उठाए गए विषय बहुत ही गंभीर समसामयिक और ज्वलंत है। संविधान का अधिकांश हिस्सा 1935 के गवर्नमेंट
आफ इंडिया एक्ट से लिया गया है। कुल मिलाकर चर्चा का जो विषय था वह यह था कि हमें संविधान में बहुत
मौलिक संशोधन करने की आवश्यकता है इस बात पर भी जोर दिया गया कि दुनिया में अनेक देश है जिन्होंने
अपने संविधान को पूरी तरह से खारिज कर के नए संविधान को लागू किया। संविधान में जो मौलिक कमियां हैं उन्हें दूर करना अत्यावश्यक है इसलिए इन कानूनों को भारत के संसद द्वारा पारित किया जाना चाहिए।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रही सांसद श्रीमती केशरी देवी पटेल ने कहा कि हमारे देश में अनेक कानून ऐसे हैं जो
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के समय के हैं और जिन्हें बदलना अत्यावश्यक है। उन्होंने लेखक की प्रशंसा करते हुए कहा कि पुस्तक में उठाए गए सभी 21 मुद्दे बहुत ही समसामयिक हैं और उनमें से कुछ विषयों को वह संसद में
उठायेंगी।
खचाखच भरे सभागार में सेना और प्रशासन के अनेकानेक वरिष्ठ अधिकारियों और बुद्धिजीवियों के अतिरिक्त कार्यक्रम में विश्व हिन्दू परिषद के भूपेंद्र सिंह, चन्द्रिका प्रसाद शुक्ल, प्राणनाथ मिश्र के अतिरिक्त उच्च न्यायालय के अधिवक्तागण पुरूषोत्तम कुशवाहा, हितेश मिश्र, कुन्जेश दुबे और नगर के ख्यातिनाम चिकित्सक डाक्टर त्रिभुवन सिंह भी उपस्थित थे। कार्यक्रम का कुशल संचालन डाक्टर रवि मिश्र ने किया। कार्यक्रम राष्ट्र गान के साथ समाप्त हुआ।