गोस्वामी तुलसीदास की जयंती के उपलक्ष्य मे मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा रामायण संवाद कार्यक्रम संपन्न
कुरुक्षेत्र\गोस्वामी तुलसीदास हिन्दी साहित्य के इतिहास में भक्तिकाल की सगुण भक्ति के राम काव्यधारा के प्रतिनिधि कवि के रूप में जाने जाते हैं। गोस्वामी तुलसीदास प्रकाण्ड विद्वान, उच्च कोटि के रचनाकार, परम भक्त, दर्शन और धर्म के सूक्ष्म व्याख्याता, सांस्कृतिक मूल्यों के प्रतिष्ठाता, बहुभाषाविद्, आदर्शवादी भविष्यदृष्ट्रा, विश्व-प्रेम के पोषक, भारतीयता के संरक्षक, लोकमंगल की भावना से परिपूर्ण तथा अद्भुत समन्वयकारी थे। तुलसीदास द्वारा श्रीरामचरितमानस जैसे कालजयी ग्रंथ की रचना हुई। यह विचार मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने गोस्वामी तुलदीदास जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित रामायण संवाद कार्यक्रम में नवयुग सीनियर सेकेंडरी स्कूल मोहन नगर में विद्यार्थियो के मध्य बतौर मुख्य वक्ता व्यक्त किये। कार्यक्रम का शुभारम्भ सरस्वती वंदना से हुआ। डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा तुलसीदास जिस समय अपने विश्वप्रसिद्ध प्रबंध ‘रामचरित मानस’ की रचना कर रहे थे, देश में मुस्लिम शासकों का साम्राज्य स्थापित हो चुका था। मुसलमान परम्पराये, रहन-सहन और संस्कृति भारतीय हिन्दू पराम्पराओं और सनातन संस्कृति से मेल नहीं खाती थीं। आराधना और पूजा पद्धतियाँ भी बिल्कुल भिन्न थीं। मुस्लिम शासकों का भारत में प्रवेश आतताइयों के रूप में हुआ था। अत: उनकी स्वेच्छाचारिता और अत्याचारों से हिन्दू समाज में घोर निराशा उत्पन्न हो गयी थी। तुलदीदास ने श्रीरामचरितमानस जैसे महाकाव्य की रचना का समाज में आशा का संचार किया।
डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा लोकनायक गोस्वामी तुलसीदास सिर्फ़ कवि ही नहीं बल्कि सामाजिक चेतना के अग्रदूत थे। अपनी कालजयी रचना श्री रामचरितमानस से उन्होंने समाज को जोड़ने का कार्य किया है। वर्तमान में भारत एक विखंडित समाज बन गया है। इसमें ऊँच-नीच, अमीर-ग़रीब, शासक-शासित का भेद बढ़ता ही जा रहा है। आज के विषम परिवेश में तुलसी कृत रामचरितमानस के अनुशीलन से अनेकता में एकता के तत्वों को पहचाना जा सकता है और विखंडित समाज को अखंड भारत के आदर्श से जोड़ा जा सकता है। समाज की वर्तमान स्थिति में राम की प्रासंगिकता पुनः दृष्टिगत हो रही है। रामचरितमानस के माध्यम से हमारे इस लोकप्रिय कवि का मूल उद्देश्य सामाजिक जीवन में उन मान्यताओं, मर्यादाओं एवं मूल्यों को स्थापित करना है जिनसे समाज का मंगल हो तथा वह समृद्धिशाली शक्तिशाली बने। डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा रामचरितमानस में तुलसी ने रामराज्य की कल्पना की और राम के रूप में राजा का आदर्श सामने रखा। इस राम के राज्य में लोग दैहिक, दैविक और भौतिक तापों से मुक्त होंगे, तभी वह ‘रामराज्य’ कहलाएगा। ‘रामचरितमानस’ में जीवन मूल्यों का क्षेत्र सीमित नहीं है। उनमें वैश्विक दृष्टि है। आज की युवा पीढ़ी को रामायण से प्रेरणा लेने की। आवश्यकता है।
नवयुग सीनियर सेकेंडरी स्कूल के प्रधानाचार्य और रामायण संवाद कार्यक्रम के संयोजक बी. डी. गाबा ने रामायण में मानव मात्र के कल्याण की कामना है। आज रामायण और मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम सम्पूर्ण विश्व के आदर्श है।
स्वावलम्बी भारत अभियान के हरियाणा प्रदेश संयोजक कपिल मदान अति विशिष्ट अतिथि के रूप में विद्यर्थियों को सम्बोधित किया। आभार ज्ञापन विद्यालय के निदेशक विकास गाबा ने किया। मातृभूमि सेवा मिशन परिवार की ओर से विद्यालय के प्रधानाचार्य बी. डी. गाबा को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया।