बौद्ध धर्म समानता, स्वतंत्रता और विश्व बंधुत्व के सिद्धांतों पर आधारित है – डा. श्रीप्रकाश मिश्र

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महात्मा बुद्ध की जयंती के उपलक्ष्य में मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा अहिंसा संवाद कार्यक्रम संपन्न

कुरुक्षेत्रम। हात्मा बुद्ध भारत के इतिहास के प्रथम सामाजिक परिष्‍कारक हैं, जिन्‍होंने कर्ममूलक यज्ञ की जड़ हो रही वैयक्तिक मुक्ति और सामाजिक पृथक्‍कीकरण की प्रक्रिया को रोककर समाज के प्रति उत्तरदायी जीवन-प्रणाली के निर्माण में भूमिका निभाई और मोक्ष जैसे पारमार्थिक पद को भी ऐहिक मूल्‍यों के आधार पर नियोजित कर मानव जीवन को मूल्‍यवान बनाया। महात्मा बुद्ध द्वारा प्रणीत बौद्ध धर्म का लक्ष्य एक ऐसा सामाजिक और राजनीतिक पथ का निर्माण करना है जो अपने लोकाचार में लोकतांत्रिक हो। यह विचार मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने महात्मा बुद्ध की जयंती के उपलक्ष्य में मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा आयोजित अहिंसा संवाद कार्यक्रम में व्यक्त किये।मातृभूमि शिक्षा मंदिर के विद्यार्थियों ने कार्यक्रम का शुभारम्भ भगवान महात्मा बुद्ध के चित्र पर माल्यार्पण, पुष्पार्चन एवं दीप प्रज्ज्वलन से किया। विद्यार्थियों ने महात्मा बुद्ध के जीवन से जुड़े अनेक प्रेरक प्रसंग प्रस्तुत किये। सर्वश्रेष्ठ प्रेरक प्रसंग के लिए विद्यार्थी नकुल को मिशन की ओर से पुरस्कृत किया गया। डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा महात्मा बुद्ध ने समानता और स्वतंत्रता दोनों की शिक्षा दी और उसका पालन किया। उन्होंने शूद्रों को दासता से मुक्त किया। उन्होंने लिंगों के बीच समानता की शिक्षा दी और उसका पालन किया तथा महिलाओं को पुरुषों के बराबर माना, उन्हें पुजारी बनने का अधिकार दिया। बौद्ध धर्म के आगमन से पहले और उसके दौरान चतुर्वर्ण प्रथाओं द्वारा शूद्रों और महिलाओं दोनों को इस स्वतंत्रता और समानता से वंचित किया गया था।

बौद्ध विचारधारा समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व के सिद्धांतों पर आधारित है, जो आधुनिक लोकतंत्र के मुख्य स्तंभ हैं।

डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा भगवान बुद्ध ने अपने जीवनकाल में कभी वेदों का विरोध नहीं किया लेकिन उस समय वे लोग जो वेदों का त्रुटिपूर्ण प्रतिपादन कर मनमाने कर्म जैसे हिंसा तथा पशुबलि जैसी कुप्रथा मे लिप्त हो गए थे उनका विरोध किया था। समरस समाज के निर्माण में बुद्ध की देशना इसलिए महत्त्वपूर्ण है कि समरसता एक भाव है यह समता के समान बाह्य भौतिक वृत्ति नहीं है। इसलिए मनुष्‍य के चित्त को कुशल बनाना, करना, उसे अहिंसा, करूणा आदि गुणों से आप्‍लावित करना ही बौद्ध शासन का प्रतिपाद्य रहा है। बुद्ध परंपरा में ब्रह्मविहार ही एकमात्र आचरण का निकष है। यह प्रणाली समरसता की प्रतिपादक है। सभी मनुष्‍यों में सामरस्‍य का उद्भावक है। कार्यक्रम में मिशन के सदस्य, विद्यार्थी, कार्यकर्ता एवं गणमान्य की उपस्थित रहें।

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