मातृभूमि सेवा मिशन सेवा मिशन द्वारा संचालित मातृभूमि शिक्षा मंदिर के विद्यार्थियों द्वारा सामूहिक श्रीमद्भगवद्गीता वाचन कार्यक्रम संपन्न
कुरुक्षेत्र\श्रीमद्भगवद्गीता ज्ञान का अथाह सागर है। जीवन का प्रकाशपूंज व दर्शन है। शोक और करुणा से निवृत होने का सम्यक मार्ग है। भारत की महान धार्मिक संस्कृति और उसके मूल्यों को समझने का ऐतिहासिक-साहित्यिक साक्ष्य है। इतिहास और दर्शन भी है। समाजशास्त्र और विज्ञान भी, वहीं लोक-परलोक दोनों का आध्यात्मिक मूल्य भी हैं। यह विचार मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डॉ- श्रीप्रकाश मिश्र ने मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा संचालित मातृभूमि शिक्षा मंदिर के विद्यार्थियों के मध्य सामूहिक श्रीमद्भगवद्गीता वाचन कार्यक्रम में व्यक्त किए। मातृभूमि शिक्षा मंदिर के विद्यार्थियों द्वारा सामूहिक श्रीमद्भगवद्गीता वाचन कर विश्व मंगल की कामना की गई।
डॉ- श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि आधुनिक काल में श्रीमद्भगवद्गीता बच्चों में नैतिक शिक्षा के लिए आधारस्तंभ है। आज शिक्षा में पश्चिम संस्कृति के कारण बच्चों में नैतिक मूल्यों को ह्राश हो रहा है। जिसके प्रभाव के कारण बच्चों में स्वराष्ट्र प्रेम, स्वदेशी की भावना और स्वदायित्व बोध की भावना का क्षरण हो रहा है। श्रीमद्भगवद्गीता के अध्यन एवं अध्यापन से बच्चों को निश्चित रूप से सर्वागीण विकास होगा। नैतिक शिक्षा, नैतिक शिष्टाचार एवं जीवनमूल्य बोध आज की बाल एवं युवा पीढ़ी में श्रीमद्भगवद्गीता के स्वाध्याय से ही संभव है। श्रीमद्भगवद्गीता में भारत का उज्जवल भविष्य समाहित है।
डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि श्रीमद्भगवद्गीता के महत्त्व को इसी सत्य से अनुभव किया जा सकता है कि समस्त शास्त्रों की उत्पत्ति वेदों से हुई है, वेदों का प्राकट्य ब्रह्मा जी के मुख से हुआ है, लेकिन वे स्वयं भगवान के नाभिकमल से उत्पन्न हुए हैं। इस तरह से शास्त्रों और भगवान के बीच कुछ दूरी होने से थोड़ा व्यवधान आ गया है। परन्तु श्रीमद्भगवद्गीता के संबंध में ऐसी कोई बात नहीं है। यह तो स्वयं साक्षात् योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण की अमृतवाणी है। श्रीमद्भगवद्गीता को समस्त शास्त्रों से, यहाँ तक कि वेदों से भी बढ़कर कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति न होगी।
कार्यक्रम में मातृभूमि सेवा मिशन के सदस्य शुभकरण कम्बोज, गुरप्रीत सिंह, हरि व्यास, बाबू राम सहित अनेक गणमान्य जन उपस्थित रहे।
