संस्कृतनिष्ठ भारतीय संस्कृति दैवीय सृष्टि है इसके विपरीत पाश्चात्य संस्कृति शैतानी चालचलन के समान है: भरद्वाज

उत्तराखंड हरिद्वार

Haridwar। स्व. डॉ. वाचस्पति मैठाणी स्मृति मंच द्वारा आयोजित शिक्षाविद् स्व. डॉ. वाचस्पति मैठाणी जी की 75वीं जन्मजयन्ती पर हरिद्वार के अनेक विद्वानों एवं शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने शोधपत्रवाचन के साथ दीं शुभकामनाएँ और बधाईयाँ उत्तराखण्ड राज्य की द्वितीय राजभाषा देववाणी संस्कृत है। संस्कृत के उत्थान हेतु अथक प्रयास करने वाले प्रथम संस्कृतशिक्षानिदेशक स्वर्गीय डॉ. वाचस्पति मैठाणी जी की 75वीं जन्मजयन्ती बड़ी धूमधाम के साथ अन्तर्राष्ट्रीय प्रचार-प्रसार के साथ अखिलभारतीय स्तर पर मनाई गई। 165 से अधिक बालकों, युवाओं एवं ज्ञानवृद्ध संस्कृतानुरागी जनों ने प्रतियोगिता में प्रतिभाग करके संस्कृत के प्रचार-प्रसार में सहयोग करते हुए स्वर्गीय डॉ. वाचस्पति मैठाणी का पुण्य स्मरण करते हुए गुणगान किया। कार्यक्रम का आयोजन मुख्य रूप से स्मृति मञ्च के संरक्षक मण्डल एवं पदाधिकारियों की प्रेरणा से किया गया प्रेरित होकर श्री कमलापति मैठाणी, श्री कैलाशपति मैठाणी द्वारा किया गया। कार्यक्रम की रूपरेखा उत्तराखण्ड के पूर्व शिक्षामन्त्री श्री मन्त्रीप्रसाद नैथानी जी ने परिचयात्मक उद्बोधन के साथ प्रस्तुत की तथा स्व. डॉ. वाचस्पति मैठाणी जी के जीवन पर प्रकाश डाला। आनलाईन संगोष्ठी में एक समय में 100 से अधिक तथा सम्पूर्ण कार्यक्रम में 200 से अधिक जिज्ञासुओं ने सम्मिलित होकर स्वर्गीय डॉ. मैठाणी के व्यक्तित्व का ज्ञानलाभ प्राप्त किया। स्मृति मंच के संरक्षक पूर्व शिक्षामन्त्री जी ने बताया कि डॉ. वाचस्पति मैठाणी जी की स्मृति में निरन्तर पाँचवी आनलाइन संस्कृत प्रतियोगिता का आयोजन संस्कृत की विभिन्न प्रतियोगिताओं के साथ किया गया।
आयोजन के मुख्य आकर्षक विषय के रूप में दो सत्रों में क्रमशः “संस्कृत साहित्य में विश्व शान्ति के उपाय” “डॉ. वाचस्पति मैठाणी का व्यक्तित्व एवं कृतित्व व पञ्चम अखिल भारतीय संस्कृत ज्ञान प्रतियोगिता का परिणाम” रहे। कार्यक्रम के प्रथम सत्र की अध्यक्षता वर्तमान निदेशक संस्कृत शिक्षा डॉ. आनन्द भारद्वाज जी ने की। मुख्य अतिथि की महत्त्वपूर्ण भूमिका में केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय नई दिल्ली के कुलपति प्रो. श्रीनिवास वरखेड़ी ने की साथ ही अतिविशिष्ट अतिथि के रूप में महर्षि वाल्मीकि संस्कृत विश्वविद्यालय कैथल, हरियाणा के कुलपति प्रो. रमेश चन्द्र भारद्वाज रहे। प्रो. भारद्वाज ने कहा कि संस्कृत भारत की आत्मा है और इस आत्मा रूपी संस्कृत के सशक्तीकरण हेतु डॉ. वाचस्पति ने अपना सर्वस्व प्रदान किया। संस्कृतनिष्ठ भारतीय संस्कृति दैवीय सृष्टि है इसके विपरीत पाश्चात्य संस्कृति शैतानी चालचलन के समान है।
द्वितीय सत्र की अध्यक्षता प्रो. दिनेश चन्द्र शास्त्री (कुलपति उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय हरिद्वार) ने तथा मुख्य अतिथि की भूमिका में सचिव संस्कृत शिक्षा एवं उत्तराखण्ड शासन श्री दीपक कुमार गैरोला एवं अतिविशिष्ट अतिथि की भूमिका में रहे।
श्री दीपक गैरोला सचिव संस्कृत शिक्षा (शासन) ने कहा कि सभी प्रतियोगिताओं का आनलाईन आयोजन होना अद्भुत, आश्चर्यकारक एवं आकर्षक के साथ-साथ सुविधापूर्ण है। भविष्य में इस तरह की आनलाईन विद्वत् चर्चा निरन्तर होनी चाहिए। संस्कृत के उत्थान प्रचार एवं प्रसार हेतु वैदिक गणित का अध्ययन अध्यापन कराया जाये। उत्तराखंड संस्कृत अकादमी के सचिव डॉ. वाजश्रवा आर्य जी ने भी डॉ. मैठाणी जी के व्यक्तित्व कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए भावभीनी श्रद्धांजलि समर्पित की तथा संस्कृत के उत्थान प्रचार प्रसार हेतु इस आयोजन को सफल एवं उपयोगी बताया।शोधपत्र वाचन करते हुए डॉ. शैलेन्द्र प्रसाद उनियाल ने वैदिक विभाजन को स्पष्ट करते हुए वेदों में सन्तुष्टी को विश्वशान्ति का उपाय बताया। डॉ. हरीश चन्द्र गुरुरानी ने वेदों में सम्पूर्ण भूमण्डल की शान्ति हेतु शान्तिपाठ जैसे अनेक उदाहरण प्रस्तुत करते हुए विषय की पुष्टि की। डॉ विजय कुमार त्यागी ने भी पुण्य आत्मा को श्रद्धांजलि समर्पित करते हुए उनके कृत्य कार्यों का गुणगान किया। साथ ही कवि बेलीराम कंसवाल, सरोज शुक्ला, डॉ. भगवती प्रसाद मैठाणी, डॉ. ओम प्रकाश पूर्वाल, प्रशांत जोशी डॉ वीरेंद्र सिंह बर्तवाल आदि अनेक विद्वानों ने शोध पत्र एवं कविता पाठ करके डॉक्टर मैथानी जी का पुण्य स्मरण किया।

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