सनातन धर्म प्रकृति का सबसे बड़ा संरक्षक है: स्वामी विज्ञानानंद सरस्वती जी महाराज

उत्तराखंड धर्म हरिद्वार

हरिद्वार। श्रीगीता विज्ञान आश्रम के परमाध्यक्ष एवं श्रीतपोनिधि पंचायती अखाड़ा निरंजनी के वरिष्ठतम महामंडलेश्वर स्वामी विज्ञानानंद सरस्वतीजी महाराज ने कहा है कि सनातन धर्म प्रकृति का सबसे बड़ा संरक्षक है, जो प्रकृति को पूजता भी है और उसका संरक्षण तथा संवर्धन भी करता है,यह धर्म पृथ्वी को परमेश्वर का प्रतिरूप मानकर पूजता है।
मानव प्रकृति का सबसे ज्यादा समझदार/बुद्धिमान प्राणी है जिसने भगवत कृपा पाकर कर्म का निर्धारण करने के लिए धर्म की स्थापना की। विश्व का यह संपूर्ण धराधाम विभिन्न धर्मों का गुलदस्ता है और किसी भी धर्म ने गलत आचरण का संदेश नहीं दिया, लेकिन सनातन धर्म प्रकृति का सबसे बड़ा रक्षक है । सनातन धर्म के अनुयायी प्रकृति की पूजा भी करते हैं और संरक्षण एवं संवर्धन भी करते हैं। प्रकृति की पूजा और प्रकृति के संरक्षण का जितना कार्य सनातन धर्म में होता है उतना किसी अन्य धर्म में नहीं होता है।सनातन धर्म की उत्पत्ति ही प्रकृति की गोद से हुई है जिसे हमारे ऋषि मुनियों ने आवादी क्षेत्र से दूर जंगलों एवं पर्वतों की कंदराओं में तप और ध्यान लगाकर स्थापित किया। जिस धर्म की उत्पत्ति प्रकृति की गोद से हुई हो उससे बड़ा प्रकृति का पुजारी और रक्षक कोई हो नहीं सकता । “सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामय:” का संदेश देने वाला सनातन धर्म प्रकृति में प्रभु का दर्शन करते हुए ही उसकी पूजा और पोषण का काम करता है।

प्रकृति के पांचो तत्वों की रक्षा करता है सनातन धर्म

“पंच तत्व मिलि बना शरीरा, क्षिति,पावक, जल, गगन, समीरा” प्रकृति के पांच तत्वों से मिलकर मानव तन की रचना हुई है ।सनातन धर्म में उन पांचो तत्वों की पूजा भी होती है और संरक्षण का भी विधान है । सनातन धर्म पृथ्वी को धरतीमाता का सम्मान देकर पोषण एवं संरक्षण का कार्य करता है, जिसे भारतीय संविधान और सरकारी शासनादेशों में भी स्थान दिया गया है । पृथ्वी को धरतीमाता इसलिए भी कहा जाता है कि धरती मां की गोद से ही वनस्पति एवं जीवधारी की उत्पत्ति होती है। सनातन धर्म अग्नि को देवता मानकर उसकी पवित्रता को प्रणाम करता है, अग्नि प्रकृति का वह तत्व है जो सृजन भी करता है और संहार भी । अग्नि से ही भोजन और भवनो का निर्माण होता है, अग्नि को साक्षी मानकर ही सात फेरे लेकर व्यक्ति वैवाहिक बंधन में बंधता है तो अग्नि से ही व्यक्ति का अंतिम संस्कार भी होता है । अग्नि वह शक्तिशाली देवता है जिसमें शुद्ध घृत एवं प्राकृतिक जड़ी बूटियों की आहुति देकर प्राकृतिक वातावरण को पवित्र किया जाता है, सनातन धर्म इसका पुजारी भी है और संरक्षणदाता भी है।
जल प्रकृति का सबसे बड़ा पोषक तत्व है जो जीव एवं वनस्पति को जीवन भी प्रदान करता है और शुद्धिकरण भी करता है। जल ही जीवन का आधार है और जल के अभाव में जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती ।”जल है तो कल है” “जल ही जीवन है”, “रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून” इन सभी प्रति वाक्यों का जन्मदाता सनातन धर्म ही है, जिसने जल संरक्षण का मार्गदर्शन किया और वर्तमान सरकारें भी जल संरक्षण पर कार्य कर रही हैं। यह सत्य है कि जल को संरक्षित नहीं किया गया तो अगला युद्ध जल के लिए होगा । जल का उचित प्रबंधन नहीं किया गया तो प्रकृति का विनाश भी जल प्रलय से ही होगा ,अतः हम सबको जल का दुरुपयोग रोक कर जल संरक्षण पर कार्य करना चाहिए।
सनातन धर्म अपने पर्वों के माध्यम से अंतरिक्ष की रक्षा को जीवन के संरक्षण का हेतु मानकर सूरज, चांद के साथ ही अन्य ग्रहों की पूजा कर उनका संरक्षण करता है तथा प्राकृतिक वातावरण को शुद्ध रखने के लिए ही हवन/ यज्ञों का आयोजन करता है। हवन से वायु शुद्ध हो जाती है जिससे जीव और वनस्पति का संरक्षण होता है, यह व्यवस्था केवल सनातन धर्म में ही है। वातावरण की शुद्धता को संरक्षित रखने के लिए ही मंदिरों में अष्टधातु के घंटे, घड़ियाल और शंखनाद के साथ ही ओइम् शब्द एवं मंत्रोच्चार से वातावरण का संरक्षण किया जाता है।
प्रकृति के संरक्षण के लिए वायु को वरदान माना जाता है, ऑक्सीजन को प्राणवायु कहते हैं जो वनस्पति से जीवधारियों को प्राप्त होती है । अधिकांश वृक्ष दिन में ऑक्सीजन और रात्रि में कार्बन डाइऑक्साइड गैस का उत्सर्जन करते हैं लेकिन पीपल और वटवृक्ष दिन-रात ऑक्सीजन का ही निर्माण करते हैं इसीलिए दोनों वृक्षों को सनातन धर्म में देवता मानकर इसलिए पूजा जाता है कि कोई इनको काटे ना । जिस स्थान पर पीपल और वट वृक्ष होते हैं वहां से एक मील के अंतराल तक कभी भी महामारी या संक्रमित करने वाली बीमारियां नहीं फैलती हैं । सनातन धर्म का कोई भी अनुयायी पीपल और वट वृक्ष को काटता नहीं है, बल्कि देवस्थान बनाकर उनकी पूजा करता है। प्राणियों में सद्भावना हो और विश्व का कल्याण हो, सनातन धर्म की यही विचारधारा है जिससे संपूर्ण सृष्टि का कल्याण होता है।

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