सम्राट हर्षवर्धन जैसे राजर्षि की विरासत को सम्मान देना समय की मांग”: स्वामी विज्ञानानंद सरस्वती

उत्तराखंड धर्म हरिद्वार

हरिद्वार। निरंजनी अखाड़ा के वरिष्ठ महा मंडलेश्वर तथा श्रीगीता विज्ञान आश्रम के परमाध्यक्ष महामंडलेश्वर स्वामी विज्ञानानंद सरस्वती जी महाराज ने कहा है कि प्रयागराज में आयोजित हो रहा कुंभ मेला ऐतिहासिक होगा और संतों महापुरुषों के सानिध्य में संत मुख्यमंत्री के निर्देशन में आयोजित यह महापर्व विश्व पटल पर भारत की अलग पहचान का इतिहास रचेगा । वे आज विष्णु गार्डन स्थित श्रीगीता विज्ञान आश्रम में प्रयागराज कुंभ हेतु प्रस्थान करने से पूर्व संतों, भक्तों एवं ट्रष्टियों को कुंभ स्नान पर्वों की विशेषताएं एवं पुण्य लाभ की जानकारी दे रहे थे।
गीता मनीषी शतायु संत ने कुंभ प्रस्थान से पूर्व गीता के पारायण एवं प्रमुख संदर्भों की व्याख्या करते हुए कहा कि गीता एवं वेद सनातन धर्म के आधार स्तंभ हैं। संपूर्ण ब्रह्मांड सनातन धर्म और संस्कृति का अनुसरण कर रहा है और प्रयागराज का यह कुंभ पर्व संपूर्ण विश्व को शांति सद्भाव एवं सहिष्णुता का संदेश देगा।उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार ने प्रयागराज कुंभ को भव्य और अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाकर इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय जोड़ा है। स्वामी विज्ञानानंद सरस्वती ने इस उपलब्धि की प्रशंसा करते हुए कहा कि “योगी सरकार ने कुंभ मेले को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है और भारतीय संस्कृति की महत्ता को वैश्विक स्तर पर स्थापित किया है।” हालांकि, उन्होंने सम्राट हर्षवर्धन की प्रतिमा हटाने के कदम पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि “ऐतिहासिक महापुरुषों को सम्मान देना हमारी सांस्कृतिक जिम्मेदारी है। सम्राट हर्षवर्धन भारतीय इतिहास के ऐसे महान सम्राट थे, जिन्होंने न केवल अपने साम्राज्य का कुशल संचालन किया, बल्कि कला, साहित्य और धर्म को भी संरक्षित और प्रोत्साहित किया। प्रयागराज कुंभ मेले की परंपरा को एक नई पहचान देने का श्रेय हर्षवर्धन को ही जाता है।चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी अपनी भारत यात्रा में उल्लेख किया है:
“हर छह वर्ष में हर्षवर्धन प्रयागराज में कुंभ मेले का आयोजन करते थे। वे अपनी सारी संपत्ति दान कर देते थे और यहां तक कि अपने व्यक्तिगत वस्त्र भी दूसरों की सेवा में समर्पित कर देते”।हर्षवर्धन की यह उदारता और समर्पण केवल दान तक सीमित नहीं था वे हिंदू, बौद्ध और जैन समुदायों के प्रति समान रूप से समर्पित थे। उनका यह समावेशी दृष्टिकोण उनके शासनकाल को सहिष्णु बनाता है। सम्राट हर्षवर्धन ने न केवल प्रशासन में उत्कृष्टता दिखाई, बल्कि वे विद्वानों और साहित्यकारों के सच्चे संरक्षक भी थे। संस्कृत साहित्य के सर्वश्रेष्ठ गद्यकार बाणभट्ट जैसे विद्वान उनके दरबारी कवि थे, ने उनकी जीवनी ‘हर्षचरित’ लिखी, जो न केवल हर्षवर्धन के जीवन का वर्णन है, बल्कि उस युग का सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक दस्तावेज भी है। सम्राट हर्षवर्धन स्वयं संस्कृत के उत्कृष्ट साहित्यकार थे जिन्होंने रत्नावली,नागानन्दा और प्रियदर्शिका जैसे प्रसिद्ध ग्रन्थों की रचना की।
स्वामी विज्ञानानंद सरस्वती ने कहा कि “हर्षवर्धन का संरक्षण ही था, जिसने बाणभट्ट जैसे महान साहित्यकार को आश्रय दिया। ऐसे सम्राट के योगदान को याद रखना और उन्हें सम्मान देना हमारे दायित्व का हिस्सा होना चाहिए।”उन्होंने योगी आदित्यनाथ सरकार की कुंभ मेले को भव्य बनाने की पहल की भूरि-भूरि प्रशंसा की। उन्होंने कहा, “योगी सरकार ने कुंभ को वैश्विक स्तर पर स्थापित कर भारतीय संस्कृति और परंपरा का गौरव बढ़ाया है। कुंभ का भव्य प्रबंधन यह दर्शाता है कि सरकार भारतीय विरासत को संजोने और उसे आधुनिक युग में प्रस्तुत करने के लिए प्रतिबद्ध हैं, लेकिन हर्षवर्धन जैसे महापुरुषों को भूलना उचित नहीं। वे केवल आधुनिक कुंभ के आरंभकर्ता ही नहीं थे, बल्कि उन्होंने धार्मिक सहिष्णुता, उदारता और साहित्य को भी संरक्षण दिया। उनकी प्रतिमा का स्थान हर भारतीय के दिल में है। स्वामी जी ने सुझाव दिया कि उत्तर प्रदेश सरकार, जो संस्कृति और परंपरा के संरक्षण के प्रति इतनी सजग है, को इस विषय पर पुनर्विचार करना चाहिए। सम्राट हर्षवर्धन की प्रतिमा को सम्मानपूर्वक पुनर्स्थापित करना उनकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत का सम्मान होगा।
स्वामी विज्ञानानंद सरस्वती ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि सरकार यदि सम्राट हर्षवर्धन की प्रतिमा को पुनर्स्थापित करती है, तो यह न केवल इतिहास के प्रति सम्मान होगा, बल्कि वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों को भी प्रेरित करेगा। हर्षवर्धन जैसे सम्राट की स्मृति भारतीय संस्कृति की एक अमूल्य धरोहर है, जिसका संरक्षण और संवर्धन हमारी जिम्मेदारी है। महाराजश्री के विद्वान शिष्य हरिओम आचार्य ने प्रसिद्ध यूनानी इतिहासकार और जनरल ‘थ्यूसीडिड्स’ का उद्धरण देते हुए कहा कि हमें ऐसे शासकों की आवश्यकता जो विद्वान भी हों और साहसी भी हों ,जो बुद्ध और युद्ध में, शस्त्र तथा शास्त्र दोनों में एकसाथ प्रवीण हों और भारत में राम,कृष्ण और हर्ष से लेकर वर्तमान में डा. करण सिंह तक विद्वान राजर्षियों की एक लम्बी परंपराग रही है, योगी आदित्यनाथ स्वयं इस गौरवशाली परंपरा के ज्वलंत उदाहरण हैं अतः उन्हें प्रयागराज महाकुंभ परिसर के निकट सम्राट हर्षवर्धन की पहले से भी भव्य प्रतिमा की पुनर्स्थापना करनी चाहिए जिससे जहां एक ओर उनकी कीर्ति में और भी अभिवृद्धि होगी वहीं नयी पीढ़ी को सम्राट हर्षवर्धन के औद्धात्य से प्रेरणा मिलेगी। उन्होंने भारत के विद्वान राजर्षियों के विषय में भी चर्चा की। इस अवसर पर आश्रमस्थ संत एवं विद्यार्थियों के अतिरिक्त बड़ी संख्या में स्थानीय नागरिक भी उपस्थित थे।

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