प्र स्तुत पुस्तक ‘गौहन्ना. कॉम’ अवध की ग्रामीण संस्कृति की सहज अभिव्यक्ति है। डॉ. मिश्र की स्मृतियाँ इस पुस्तक में सजीव हो उठी हैं। डॉ. मिश्र ने अपने भीतर के गाँव को कभी अलग नहीं होने दिया। इस पुस्तक के बहाने डॉ. मिश्र अपने बचपन की ओर लौटते हैं। ग्रामीण जीवन के अनेक रंगों को उन्होंने कागज के पन्नों पर मानो उकेर दिया है। उनकी भाषा में अवध की मिठास है। बचपन की स्मृतियों को सहेजकर रखना और उसे आने वाली पीढ़ी के साथ साझा करना एक चुनौती है। इस पुस्तक में लेखक ने इसी चुनौती से दो-दो हाथ किए हैं। जिन बिंवों, प्रतीकों के सहारे पगडंडियों से होता हुआ व्यक्ति महानगरों में पहुँचता है, जीवन में उनकी भी भूमिका है। रसीले महुए से लेकर फरे के स्वाद तक बहुत कुछ ऐसा है, जिसे भूल पाना संभव नहीं है। डॉ. मिश्र की अभिव्यक्ति एक बार फिर से उन्हीं पगडंडियों की ओर ले जाती है, जिन पर चलते हुए बुने गए ख्वाबों ने जीवन को एक नई दिशा दी। लेखक को गाँव के खेत, खलिहान, पशु-पक्षी सभी रह-रहकर याद आते हैं। मास्साब से लेकर शुक्ला दरोगा तक सभी पर लेखक ने साधिकार लिखा है। ऐसे अनेक चरित्र, जिनके प्रयासों से लोक संस्कृति का संरक्षण होता है, पुस्तक में उनका उल्लेख करके लेखक ने एक परिपक्व रचनाधर्मी होने का परिचय दिया है।
डॉ. ललित नारायण मिश्र का जन्म अयोध्या जनपद के गौहन्ना गाँव में सन् 1976 में हुआ। पिता श्री राम तेज मिश्र और माता श्रीमती अलका मिश्र के मार्गदर्शन में इनके व्यक्तित्व का निर्माण हुआ। गाँव में रहते हुए माता-पिता के कुशल मार्गदर्शन के कारण ही ग्रामीण जीवन का ठीक प्रकार से साक्षात्कार किया। विद्यार्थी जीवन के दौरान कृषक और ग्रामीण जीवन के संघर्ष को बहुत करीब से अनुभव किया, जिसका प्रभाव इनकी शिक्षा पर भी दिखाई देता है। श्री राम बल्लभा भगवंत विद्यापीठ इंटर कॉलेज ड्योढ़ी अयोध्या से इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय गए। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा, नई दिल्ली से पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। इनके आलेख प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं। कविता में विशेष रुचि के कारण कविता संग्रह ‘गीत मेरे मीत मेरे’ प्रकाशित।
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