महाराजा अग्रसेन की जयंती के अवसर पर मातृभूमि शिक्षा मंदिर के विद्यार्थियों को मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा स्टेशनरी एवं पाठ्य समग्री वितरित की गई।
कुरुक्षेत्र।
महाराजा अग्रसेन की जयंती के उपलक्ष्य में मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा फतुहपुर स्थित आश्रम परिसर में कार्यक्रम संपन्न हुआ। इस अवसर पर मातृभूमि शिक्षा मंदिर के विद्यार्थियों मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा स्टेशनरी एवं पाठ्य समग्री वितरित की गई। कार्यक्रम का मातृभूमि शिक्षा मंदिर के विद्यार्थियों द्वारा महाराज अग्रसेन को नमन कर हुआ।
महाराजा अग्रसेन की जयंती के उपलक्ष्य में विद्यार्थियों को सम्बोधित करते हुए मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा महाराजा अग्रसेन समाजवाद के अग्रदूत थे और उन्होंने सभी के लिए आर्थिक समानता सुनिश्चित करने हेतु एक अनूठा नियम स्थापित किया था। उनका मानना था कि समाज के हर वर्ग को बिना किसी भेदभाव के एक साथ मिलकर चलना चाहिए, जिससे सामाजिक सद्भाव बना रहे। महाराजा अग्रसेन के सामाजिक दर्शन में अहिंसा, परोपकारिता, त्याग, सहयोग और आत्मनिर्भरता का संदेश निहित है। उन्होंने वैदिक धर्म और सनातन आर्य संस्कृति के नैतिक मूल्यों को पुनः स्थापित करने का प्रयास किया, जिससे लोगों में सदाचार और नैतिक चेतना का विकास हो सके। उनका दर्शन त्याग, सहयोग और आत्मनिर्भरता का संदेश देता है, जिसके माध्यम से व्यक्ति और समाज दोनों का उत्थान हो सके।
डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा महाराजा अग्रसेन का शासन न्याय, समानता, करुणा और सहअस्तित्व पर आधारित था। वे केवल सम्राट नहीं थे, बल्कि एक दार्शनिक चिंतक और युगदृष्टा थे। उन्होंने राजा प्रजा का सेवक है जैसी अवधारणा को व्यवहार में उतारा।महाराजा अग्रसेन भारतीय संस्कृति और इतिहास के उन दिव्य शासकों में गिने जाते हैं जिनकी शासन कीर्ति किसी एक युग तक सीमित नहीं रही। उनका लोकहितकारी चिन्तन कालजयी हो गया। उनकी विलक्षण एवं आदर्श शासक-प्रणाली और उसकी दृष्टि में सत्ता का हित सर्वाेपरि न होकर समाज एवं मानवता सर्वोच्च था। वे कर्मयोगी लोकनायक तो थे ही, संतुलित एवं आदर्श समाजवादी व्यवस्था के निर्माता भी थे। आज जब हमारा समाज असमानताओं, हिंसा, स्वार्थ और राजनीतिक विघटन एवं विसंगतियों से जूझ रहा है, तब उनके विचारों और सिद्धांतों की प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती है। कार्यक्रम में विद्यार्थियों ने महाराजा अग्रसेन के जीवन से सम्बन्धित अनेक संस्मरण प्रस्तुत किये। कार्यक्रम का समापन शांतिपाठ से हुआ। कार्यक्रम में आश्रम के विद्यार्थी, सदस्य, शिक्षक आदि उपस्थित रहे।
