-कुरुक्षेत्र
स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि का महाराज आध्यात्मिकता और ज्ञान के प्रतीक थे। उन्होंने अपना जीवन गरीबों, जरूरतमंद , आदिवासी,वनवासी एवं समाज के अति पिछड़े लोगों को सशक्त बनाने के लिए समर्पित कर दिया। उन्हें भारत के समृद्ध इतिहास और संस्कृति पर बहुत गर्व था। स्वामी सत्यमित्रानंद ज्ञान, धर्म, पराक्रम और सादगी के प्रतीक थे।
स्वामी सत्यमित्रानंद महाराज ने पूरे विश्व में सनातन संस्कृति का मार्ग प्रशस्त किया। यह विचार मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने ब्रम्हलीन संत पदम भूषण संत स्वामी सत्यमित्रानंद की जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम में व्यक्त किये। स्वामी सत्यमित्रानंद की जयंती के उपलक्ष्य में मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा लोकमंगल के निमित्त आयोजित यज्ञ में मातृभूमि शिक्षा मंदिर के बच्चों ने सस्वर मंत्रोंच्चारण के साथ लोकमंगल के निमित्त आहुति दी।
विद्यार्थियों ने भजनो की भी प्रस्तुति दी। डा . श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा सनातन परंपरा के संतों में सहज, सरल और तपोनिष्ठ स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि का नाम उन संतों में लिया जाता है, जहां से कोई भी पद या पुरस्कार छोटा पड़ता है। तन, मन और वचन से परोपकारी संत सत्यमित्रानंद आध्यात्मिक ज्ञान एवं शक्ति से संपन्न व्यक्तित्व के धनी थे। उनका जन्म 19 सितम्बर 1932 को आगरा में हुआ था।धार्मिक-आध्यात्मिक परम्परा का पालन करने वाले स्वामी जी भारत माता को सर्वोच्च मानते थे। इसी श्रद्धा और प्रेम को प्रकट करते हुए उन्होंने हरिद्वार में 108 फीट ऊंचा भारत माता का विशाल मंदिर बनवाया था।
डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा उनकी समाज के प्रति प्रतिबद्धता समर्पण एवं सामाजिक कार्यों के लिए भारत सरकार ने वर्ष 2015 में पदम विभूषण से सम्मानित किया। स्वामी जी द्वारा स्थापित समन्वय परिवार पूरे विश्व और विशेष रूप से राष्ट्र के भविष्य निर्माताओं युवा शक्ति को भारत के विशाल इतिहास और भव्य संस्कृति से परिचित कराने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। स्वामी जी का सामान्य जन समुदायों के हृदय वन में निरन्तर आनन्दरुपी सौगन्ध्य विस्तारित करने के लिए, जगद्गुरु शंकराचार्य जैसे गरिमामय पद का स्वतः परित्याग कर निरन्तर दुःख संतप्तों का साथ दिया है। कभी अकाल पीड़ितों के साथ तो कभी भूकम्प पीड़ितों के बीच, तो कभी हरिजनों के बीच उनकी उपस्थिति, दुःख दावानल संतप्तों के लिए शीतल छाया का काम करती रही है।
डा.श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा स्वामी के शिष्य एवं जूनापीठ के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि आज उनका अनुसरण करते हुए सम्पूर्ण विश्व में सनातन वैदिक संस्कृति की पताका को फहरा रहे है। स्वामी सत्यमित्रानद गिरि जी महाराज वास्तव में एका युगपुरुष थे। वह आदिगुरु शंकराचार्य की भांति सनातन वैदिक संस्कृति को समर्पित थे।स्वामी सत्यमित्रानद गिरि जी महाराज अहर्निश मातृभूमि भारत की सेवा करते हुए 25 जून 2019 को ब्रम्हलीन हो गये। आज स्वामी सत्यमित्रानद गिरि जी भारत के साधु समाज के लिए बहुत ही प्रासंगिक है। कार्यक्रम का समापन शांतिपाठ से हुआ। कार्यक्रम में आश्रम के सदस्य, विद्यार्थी एवं अनेक गणमान्य जन उपस्थित रहे।