शहीद भगत सिंह की जयंती के उपलक्ष्य में मातृभूमि शिक्षा मंदिर द्वारा सामाजिक न्याय संवाद कार्यक्रम संपन्न।
कुरुक्षेत्र/
शहीद-ए-आजम भगत सिंह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक ऐसे नाम हैं, जिन्होंने कम उम्र में ही राजनीतिक-वैचारिक प्रखरता के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। उनके विचारों की गूंज आज भी युवाओं के सपनों में सुनाई देती है। उनका जीवन महज 23 साल के एक ऐसे नौजवान की कहानी नहीं है, जो फांसी के फंदे को गले लगाकर भी अपनी विचारधारा पर अडिग रहा। यह विचार मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डा.श्रीप्रकाश मिश्र ने शहीद भगत सिंह की जयंती के उपलक्ष्य में मातृभूमि शिक्षा मंदिर द्वारा आयोजित सामाजिक न्याय संवाद कार्यक्रम में व्यक्त किये। कार्यक्रम का शुभारम्भ मातृभूमि शिक्षा मंदिर के विद्यार्थियों ने शहीद भगत सिंह के चित्र पर माल्यार्पण, पुष्पार्चन एवं दीप प्रज्जवलन से किया। मातृभूमि शिक्षा मंदिर के बच्चों ने शहीद भगत सिंह के जीवन से जुड़े अनेक स्मरण सुनाये।
डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा भगत सिंह एक समानतावादी थे। वे मानते थे कि सभी लोगों को समान अधिकार और अवसर प्राप्त होने चाहिए। वे एक कट्टरपंथी गरीबों के अधिकारों के समर्थक थे। वे मानते थे कि गरीबों को उनके अधिकारों के लिए लड़ना चाहिए। वे महिलाओं के अधिकारों के समर्थक थे। वे मानते थे कि महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार और अवसर प्राप्त होने चाहिए।भगत सिंह समाजवाद के प्रति गहरी प्रतिबद्धता रखते थेव्क्रांतिकारी नेता भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर, 1907 को लायलपुर जिले में एक सिख परिवार में हुआ था, जिसे अब पाकिस्तान का फैसलाबाद कहा जाता है. वह एक ऐसे परिवार से ताल्लुक रखते थे जो स्वतंत्रता संग्राम में शामिल था, यही कारण था कि वह कम उम्र में ही भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की ओर आकर्षित हो गए थे।
डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा भगत सिंह के परिवार पर आर्य समाज व महर्षि दयानंद की विचारधारा का गहरा प्रभाव था। भगत सिंह के जन्म के समय उनके पिता सरदार किशन सिंह एवं उनके दो चाचा अजीत सिंह तथा स्वर्ण सिंह अंग्रेजों के खिलाफ होने के कारण जेल में बंद थे। जिस दिन भगत सिंह पैदा हुए उनके पिता एवं चाचा को जेल से रिहा किया गया। इस शुभ घड़ी के अवसर पर भगत सिंह के घर में खुशी और भी बढ़ गई थी। भगत सिंह के जन्म के बाद उनकी दादी ने उनका नाम ‘भागो वाला’ रखा था। जिसका मतलब होता है ‘अच्छे भाग्य वाला’। बाद में उन्हें ‘भगत सिंह’ कहा जाने लगा। अमृतसर में 13 अप्रैल 1919 को हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह की सोच पर इतना गहरा प्रभाव डाला कि लाहौर के नेशनल कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर भगत सिंह ने भारत की आजादी के लिए नौजवान भारत सभा की स्थापना की।
डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा भगत सिंह ने देश की आजादी के लिए जिस साहस के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुकाबला किया, वह युवकों के लिए हमेशा ही एक बहुत बड़ा आदर्श बना रहेगा। भगत सिंह को हिन्दी, उर्दू, पंजाबी तथा अंग्रेजी के अलावा बांग्ला भी आती थी जो उन्होंने बटुकेश्वर दत्त से सीखी थी। जेल के दिनों में उनके लिखे खतों व लेखों से उनके विचारों का अंदाजा लगता है। उन्होंने भारतीय समाज में भाषा, जाति और धर्म के कारण आई दूरियों पर दुख व्यक्त किया था। भगत सिंह की शहादत से न केवल अपने देश के स्वतंत्रता संघर्ष को गति मिली बल्कि नवयुवकों के लिए भी वह प्रेरणा स्रोत बन गए। वह देश के समस्त शहीदों के सिरमौर बन गए। भारत और पाकिस्तान की जनता उन्हें आजादी के दीवाने के रूप में देखती है जिसने अपनी जवानीसहित सारी जिंदगी देश के लिए समर्पित कर दी।
उन्होंने समाज के कमजोर वर्ग पर किसी भारतीय के प्रहार को भी उसी सख्ती से सोचा जितना कि किसी अंग्रेज के द्वारा किए गए अत्याचार को। उनका विश्वास था कि उनकी शहादत से भारतीय जनता और उग्र हो जाएगी, लेकिन जब तक वह जिंदा रहेंगे ऐसा नहीं हो पाएगा। इसी कारण उन्होंने मौत की सजा सुनाने के बाद भी माफीनामा लिखने से साफ मना कर दिया था। कार्यक्रम का समापन राष्ट्रीय गीत वन्देमातरम् से हुआ। मातृभूमि शिक्षा मंदिर के विद्यार्थियों ने शहीद भगत सिंह अमर रहे … के उद्घोष से वातावरण को गुंजायमान कर देशभक्ति का भाव भर दिया। कार्यक्रम में मातृभूमि सेवा मिशन के सदस्य, विद्यार्थी आदि उपस्थित रहे।