क्षमावाणी पर्व आपस में मित्रतापूर्ण व्यवहार को अपनाने की सीख देता हैः अग्रवाल

उत्तराखंड हरिद्वार

हरिद्वार। विश्व मैत्री दिवस पर साधु सेवा समिति पंचपुरी हरिद्वार द्वारा क्षमावाणी महापर्व का आयोजन किया गया। इस मौके पर कैबिनेट मंत्री डॉ प्रेमचंद अग्रवाल ने मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत की। इस दौरान ज्ञात-अज्ञात अथवा भूलवश हुई गलती की क्षमा भी मांगी गयी। साथ ही अन्य को ही क्षमा दी गयी।

रविवार को ज्वालापुर हरिद्वार के एक वेडिंग पॉइंट में आयोजित कार्यक्रम का शुभारंभ मंत्री डॉ अग्रवाल जी ने दीप प्रज्वलित कर परम पूजनीय रत्नाकर आचार्य 108 श्री विबुद्ध सागर जी महाराज के पाद प्रक्षालन कर किया। इसके बाद ब्रम्हचारिणी आभा दीदी कि चरण स्पर्श किये गए।

इस मौके पर आचार्य 108 श्री विबुद्ध सागर जी महाराज जी ने क्षमा का वास्तविक अर्थ बताया। उन्होंने कहा कि जहाँ मान अभिमान का क्षय नाश हो जाता है, वहीं सच्ची क्षमा प्रकट होती है। क्षमा माँगते समय छोटा और बड़ा, अमीर और गरीब नहीं देखा जाता, अपनों को पहिचान पहिचान कर क्षमा नहीं मांगी जाती, जिनसे संबंध पहले से ही मधुर उनसे क्षमा नहीं मांगी जाती। क्षमा तो उससे मांगी जाती है जिनसे आपके संबंध बिगड गये हों, फिर वह छोटा हो या बड़ा, अमीर हो या गरीब अभिमान को त्यागकर, विनय भाव से उसी से क्षमायाचना की जाती है।

इस मौके पर कैबिनेट मंत्री डॉ अग्रवाल जी ने कहा कि विश्व मैत्री दिवस पर आयोजित क्षमावाणी पर्व आपस में मित्रतापूर्ण व्यवहार को अपनाने की सीख देता है। यह पर्व हमें सीखाता है कि वाणी में ही नहीं प्राणी में भी क्षमा आनी चाहिए। सभी प्राणियों के प्रति मित्रता का भाव आना ही इस पर्व का प्रयोजन है। संसार में रहने वाले समस्त चराचर प्राणियों के प्रति क्षमा का भाव धारण करना और उन्हें अपनत्व आत्मीयता प्रदान करना अपने हृदय शुद्धि की पराकाष्ठा है।

डॉ अग्रवाल जी ने कहा कि जिन्हें हम अपना कहते जब उन्हीं से संबंध बिगड़ जाते है तो घर में, मन में उथल-पुथल मच जाती है, एक-दूसरे के दुश्मन हो जाते है, आपस में बैर बंध जाता है। कहा कि ऐसे क्रोध बैर और कनुष्ता, दुश्मनी, कटुता के परिणामों को धोने के पर्व को ही क्षमा वाणी पर्व कहा जाता है।

डॉ अग्रवाल जी ने कहा कि क्षमा केवल मैसेज की या मात्र वाणी की नहीं होनी चाहिए। क्षमा हदय से निकलना चाहिए। क्षमा मांगते समय जो अपने से बड़े हो तो चल कर क्षमा याचना करना चाहिये और यदि कोई छोटे हों तो सीने से लगाकर उनका सम्मान रखना चाहिए।

डॉ अग्रवाल जी ने कहा कि ज्ञात-अज्ञात, जानबूझकर या भूलवश भाव से हुये समस्त वचन, विचार और व्यवहार के प्रति कष्टदायक परणति की आलोचना करना और पाश्चाताप प्रायश्चित करते हुए क्षमा समता का भाव धारण करना आंतरिक शुद्धि है।

इस मौके पर ब्रह्म चारिणी आभा दीदी ने कहा कि क्षमा मांगते समय जो आनंद की अनुभूति होती है उसे मात्र वही अनुभव कर सकता है, जिसने अभिमान त्यागकर अपनी आत्मा में क्षमा को धारण किया। जब तक अहंकार नहीं टूटता तब तक क्षमाभाव आत्मा में नहीं आ सकता। मुँह ये क्षमा मांग लेना सरल है किन्तु मन से ह्रदय से क्षमा माँगना वीरों का ही काम है – क्षमा वीरस्य भूषणाम। घर परिवार में अथवा समाज के किसी व्यक्ति से कोई भूल हो जाए तो उसे क्षमा कर देना, यही सामाजिक जीवन जीने की कला है।

इस अवसर पर मेयर हरिद्वार अनिता शर्मा, मुख्य विकास अधिकारी प्रतीक जैन, साधु सेवा समिति अध्यक्ष बालेश जैन, मंत्री विजय कुमार जैन, कोषाध्यक्ष सन्दीप जैन, जेसी जैन, ओमकार जैन, अनिल जैन, रवि जैन, आदेश जैन, निर्मल जैन, विनय जैन, वकील जैन, नीरज जैन, पूजा जैन, प्रियंका जैन, ऋतु जैन, निधि जैन, रेखा जैन, रीना जैन, सुनीता जैन सहित समिति के पदाधिकारी, जैन समाज के नागरिक उपस्थित रहे।

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