हरिशयनी एकादशी का व्रत 10 जुलाई रविवार को :महंत रोहित शास्त्री ज्योतिषाचार्य

उत्तराखंड

भगवान विष्णु के विश्राम करने से सृष्टि का संचालन भगवान शिव करते हैं

हरिशयनी एकादशी का व्रत इस वर्ष सन् 2022 ई. रविवार 10 जुलाई को है। हरिशयनी एकादशी व्रत के विषय में श्रीकैलख ज्योतिष एवं वैदिक संस्थान ट्रस्ट के प्रधान महंत रोहित शास्त्री ज्योतिषाचार्य ने बताया एक वर्ष में 24 एकादशी होती हैं,लेकिन जब अधिकमास (मलमास) आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है, आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को हरिशयनी एकादशी कहते है। हरिशयनी एकादशी तिथि से जगत के संचालक भगवान विष्णु चार माह के लिए शयन करने चले जाते हैं, देवता शयन करने जाते हैं, इसलिए आषाढ़ी एकादशी को हरिशयनी एकादशी,देवशयनी एकादशी, शयनी एकादशी आदि नामों से भी जाना जाता है। भगवान विष्णु के विश्राम करने से सृष्टि का संचालन भगवान शिव करते हैं। इसलिए श्रावण से लेकर कार्तिक मास तक भगवान शिव के पूजा-पाठ करने का अत्यंत महत्व है। चातुमार्स का समापन देवउठनी (हरिप्रबोधिनी) एकादशी पर होता है। इस एकादशी की तिथि को भगवान विष्णु योग निद्रा से बाहर आते हैं।

हरिशयनी एकादशी का व्रत सब व्रतों में उत्तम माना गया है। हरिशयनी एकादशी व्रत से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और जो मनुष्य इस व्रत को नहीं करते वे नरकगामी होते हैं। इस व्रत के करने से व्यक्ति को दीर्घायु और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत पुरुष और महिलाओं दोनों द्वारा किया जा सकता है। आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि 09 जुलाई शनिवार शाम 04 बजकर 40 मिनट पर शुरू होगी और रविवार 10 जुलाई दोपहर 02 बजकर 14 मिनट पर समाप्त होगी,सूर्योदय व्यापिनी एकादशी तिथि 10 जुलाई रविवार को होगी। इसलिए हरिशयनी एकादशी व्रत 10 जुलाई रविवार को होगा और हरिशयनी एकादशी व्रत का पारण 11 जुलाई सोमवार द्वादशी तिथि के दिन सुबह 05 बजकर 41 मिनट से सुबह 08 बजकर 22 मिनट तक किया जा सकता है। हरिशयनी एकादशी के दिन शुभ योग बन रहा है। ज्योतिष शास्त्र में इस योग को शुभ योगों में गिना जाता है। इस दौरान किए गए कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।

इस दिन जो व्यक्ति दान करता है वह सभी पापों का नाश करते हुए परमपद प्राप्त करता है। इस दिन ब्राह्माणों एवं जरूरतमंद को मिष्ठानादि, दक्षिणा सहित यथाशक्ति दान करें।

एकादशी के दिन “ॐ नमो वासुदेवाय” मंत्र का जाप करना चाहिए,हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत का मात्र धार्मिक महत्त्व ही नहीं है, इसका मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य के नज़रिए से भी बहुत महत्त्व है। एकादशी का व्रत भगवान विष्णु की आराधना को समर्पित होता है। यह व्रत मन को संयम सिखाता है और शरीर को नई ऊर्जा देता है।

एकादशी व्रत पूजन विधि :-

शारीरिक शुद्धता के साथ ही मन की पवित्रता का भी ध्यान रखना चाहिए,एकादशी के व्रत को विवाहित अथवा अविवाहित दोनों कर सकते हैं। एकादशी व्रत के नियमों का पालन दशमी तिथि से ही शुरु हो जाता है। दशमी तिथि को सात्विक भोजन ग्रहण कर अगले दिन एकादशी पर सुबह जल्दी उठें और शुद्ध जल से स्नान के बाद सूर्यदेव को जल का अर्घ्य देकर व्रत का संकल्प लें पति पत्नी संयुक्त रूप से लक्ष्मीनारायण जी की उपासना करें, पूजा के कमरे या घर में किसी शुद्ध स्थान पर एक साफ चौकी पर श्रीगणेश, भगवान लक्ष्मीनारायण की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद पूरे कमरे में एवं चौकी पर गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें। चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टी के कलश (घड़े ) में जल भरकर उस पर नारियल रखकर कलश स्थापना करें, उसमें उपस्थित देवी-देवता, नवग्रहों,तीर्थों, योगिनियों और नगर देवता की पूजा आराधना करनी चाहिए,इसके बाद पूजन का संकल्प लें और वैदिक मंत्रो एवं विष्णुसहस्रनाम के मंत्रों द्वारा भगवान लक्ष्मीनारायण सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें। इसमें आवाह्न, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधितद्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान,तिल,दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्रपुष्पांजलि आदि करें। व्रत की कथा करें अथवा सुने तत्पश्चात प्रसाद वितरण कर पूजन संपन्न करें।

व्रत रखने वाले शाम के समय भगवान विष्णु का पूजन करने के बाद फल ग्रहण कर सकते हैं। लेकिन इस व्रत का पारण द्वादशी तिथि को किया जाता है। व्रत के अगले दिन द्वादशी पर किसी जरुरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन कराकर कुछ दान-दक्षिणा जरूर दें।

एकादशी के दिनों में किन बातों का खास ख्याल रखें

एकादशी के दिन किसी भी प्रकार की तामसिक वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए,ब्रहम्चार्य का पालन करना चाहिए,इन दिनों में शराब आदि नशे से भी दूर रहना चाहिए, व्रत रखने वालों को इस व्रत के दौरान दाढ़ी-मूंछ और बाल नाखून नहीं काटने चाहिए, व्रत करने वालों को पूजा के दौरान बेल्ट, चप्पल-जूते या फिर चमड़े की बनी चीजें नहीं पहननी चाहिए,काले रंग के कपड़े पहनने से बचना चाहिए,किसी का दिल दुखाना सबसे बड़ी हिंसा मानी जाती है। गलत काम करने से आपके शरीर पर ही नहीं, आपके भविष्य पर भी दुष्परिणाम होते है।

महंत रोहित शास्त्री (ज्योतिषाचार्य)
*अध्यक्ष श्री कैलख ज्योतिष एवं वैदिक संस्थान ट्रस्ट(पंजीकृत)*
*संपर्कसूत्र :-9858293195,7006711011,9796293195*ईमेल.rohitshastri.shastri1@gmail.com.*

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