आयुर्वेद ने रोगी को मौत के आगोश से निकाल कर नव जीवन प्रदान किया

उत्तराखंड स्वास्थ्य हरिद्वार

नारायण आयुर्वेद चिकित्सा केन्द्र के संस्थापक डॉ. सत्यनारायण शर्मा ने बताया कि लिवर सिरोसिस (liver cirrhosis ), जलोदर ( Ascites ), दोनों फेफड़ों में पानी ( bilateral plural iffusion) एल्ब्यूमिन की कमी (hypoalbuminemia) आदि अनेक कारणों से एक सप्ताह तक निरन्तर ऑक्सिजन पर निर्भर व बार बार फेफड़ों व पेट से पानी निकालने (tapping ) पर भी कुछ भी खाते ही उल्टियां , बुखार ,शरीर का बिल्कुल कृश व स्याह हो जाने के पश्चात जब हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइन्स के डॉक्टरों द्वारा स्थिति को नाजुक बताते हुए स्टेरॉयड शुरू करने व लिवर ट्रांसप्लांट की संभावना भी जताने पर रोगिणी , को हॉस्पिटल से रिलीव करवा घर लाकर ,आयुर्वेदिक उपचार भी करने का निर्णय किया गया।

इस दारुण रोग के उपचार में सर्वाधिक सहयोग रोगिणी का आवश्यक था , क्योंकि परहेज के बिना चिकित्सा व्यर्थ थी, और परहेज अत्यंत कठिन प्रतीत होना था अतः रोगिणी को समझाया गया कि आपके जीवन की रक्षा के लिए आपको कुछ माह तक आयुर्वेदोक्त पथ्य पालन (निर्जल,निरअन्न,निर्लवण रहना) करना होगा, आपको न तो जल पीना होगा न अन्न और न ही नमक खाना होगा, केवल दुग्धाहार पर रहना होगा।

सबके सहमत होने पर नारायण आयुर्वेद चिकित्सा केंद्र में औषधि निर्माण कर चिकित्सा प्रारम्भ की ।

एक दिन की औषधि से ही चमत्कार हुआ जो रोगिणी सीधे लेट नही पा रही थी, ठीक से सो नही पा रही थी, कुछ भी सेवन करने से उल्टी कर देती थी ; रात को आराम से सोई और देशी गाय का दूध पीने पर उल्टी तो क्या उबकाई तक नही आई।

रोगिणी सहित समस्त परिजनों ने इस ईश्वर प्रदत्त आयुर्वेद चिकित्सा के प्रति आभार जताया एवं समस्त एलोपैथिक दवाइयां तुरन्त बन्द कर केवल आयुर्वदिक औषधि ही जारी रक्खी।

पांच माह के परहेज व आयुर्वेद औषधि सेवन के पश्चात एक बार भी फेफड़ों व उदर से पानी ( tapping) नही निकालना पड़ा; प्रत्येक माह किये जा रहे एक्सरे व अल्ट्रासाउंड (X-ray, Ultrasound) की रिपोर्ट्स में अत्यन्त सुधार आधुनिक चिकित्सकों के लिए आश्चर्यजनक था।

पाँच माह में ही रोगिणी पूर्वापेक्षा अधिक स्वस्थ व शक्ति सम्पन्न हो गई कि समस्त सामान्य गृह कार्य करने में सक्षम हो गई।

श्रावणी पर्व (रक्षाबंधन) के दिन से उनको अन्न ,जल व न्यून नमक का सेवन प्रारम्भ कर दिया, आज दिनांक तक रोगिणी बहुतस्वस्थ महसूस कर रही है।

पूर्व रिपोर्ट्स में वर्णित शरीरस्थ लिवर सिरोसिस के समस्त उपद्रव-चिन्ह गायब हो चुके थे, केवल लिवर सिरोसिस के कुछ दाग शेष रह गए है, उनके भी निकट भविष्य में इस अत्यंत प्रभावशाली औषधि से समाप्त होने की आशा है । रोगिणी की औषधि अभी भी निरन्तर जारी है।
मृत्यु के आगोश में जकड़ी रोगिणी को नव जीवन प्रदान करने वाले आयुर्वेद विज्ञान एवम गुरु-शिष्य , पिता-पुत्र,पति-पत्नी परम्परा से संवर्धित कर आज तक सुरक्षित रखने वाले परम कारुणिक ऋषियों ,आचार्यों, वैद्यों को नमन, वन्दन।

1) – नारायण आयुर्वेद चिकित्सा केंद्र,
गली न.3 बिरला फार्म , हरीपुर कलां
(हरिद्वार-देहरादून बॉर्डर) 249205 हरिद्वार ( उत्तराखंड)*

2) नारायण चिकित्सा केंद्र, गौसाई गली, भीमगोडा, हरिद्वार 249401(उत्तराखंड)

Mobile 9412978670

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *