हिमस्खलन में 10 ट्रेनी पर्वतारोही की बर्फ के तूफान में हुई मौत

उत्तराखंड

उत्तरकाशी। उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में आए हिमस्खलन में 10 ट्रेनी पर्वतारोही की बर्फ के तूफान में फंस कर मौत हो गई है, जबकि दो दर्जन से ज्यादा प्रशिक्षणार्थियों के फंसे हुए हैं। उत्तरकाशी जिले में स्थित द्रौपदी का डांडा टू को फतह करना बेहद जटिल ही नहीं बल्कि चुनौतीपूर्ण भी है। इस चोटी को ट्रैक करने के लिए निम के उन प्रशिक्षणार्थियों को भेजा जाता है जो बेसिक कोर्स पूरा कर लेते हैं।

एडवांस कोर्स में भी 25 दिनों तक विपरीत परिस्थितियों में रहने और कठिन परिस्थितियों में ढलने के बाद ही प्रशिक्षणार्थी इस चोटी की चढ़ाई के लिए निकलते हैं। नेहरू पर्वतारोहण संस्थान के पूर्व प्रिंसिपल कर्नल अजय कोठियाल ने बताया कि द्रौपदी का डांडा टू चोटी को फतह करना खासा मुश्किल है। उन्होंने कहा कि इस चोटी पर भेजने से पहले प्रशिक्षणार्थियों को ट्रेन किया जाता है और कई दौर की कठिन ट्रेनिंग दी जाती है। बिना प्रशिक्षण और परिस्थितियों में ढ़ले इस चोटी को फतह करने के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता। उन्होंने बताया कि द्रौपदी का डांडा टू चोटी को क्लाइंब करने के लिए डोकरानी बामक ग्लेशियर को बेस कैंप बनाया जाता है और यहां से इस चोटी की चढ़ाई शुरू होती है। डोकरानी बामक ग्लेशियर पहुंचने के बाद तीन दिन की कठिन चढ़ाई के बाद द्रौपदी का डांडा टू चोटी तक पहुंचा जाता है।

नेविगेशन, कम्युनिकेशन में आती है मुश्किल कर्नल कोठियाल ने बताया कि द्रौपदी का डांडा टू चोटी को फतह करने के दौरान प्रशिक्षणार्थियों को नेविगेशन, कम्युनिकेशन में खासी मुश्किल आती है। उन्होंने बताया कि एडवांस कोर्स शुरू होने से पहले प्रशिक्षणार्थियों को बर्फ में बचाव के लिए इग्लू बनाने के साथ ही आग जलाने और खाना पकाने आदि का प्रशिक्षण भी दिया जाता है।

उन्होंने बताया कि निम का एडवांस कोर्स 28 दिन का होता है जिसमें से 25 दिनों तक द्रौपदी का डांडा टू चोटी को फतह करने के लिए प्रशिक्षणार्थियों को तैयार किया जाता है। उन्होंने कहा कि 1965 में निम की स्थापना के बाद ही प्रशिक्षणार्थी इस चोटी को फतह कर रहे हैं लेकिन छिटपुट घटनाओं को छोड़कर कभी इस तरह की घटना नहीं घटी है।

5006 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है द्रौपदी का डांडा टू
कर्नल कोठियाल ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि द्रौपदी का डांडा टू चोटी 5006 मीटर है और इस परिस्थिति में ट्रैकिंग बेहद जटिल हो जाती है। उन्होंने बताया कि इस दुघर्टना से बचाव के लिए निम के इंस्टैक्टर और प्रशिक्षणार्थी ही सबसे उपयुक्त हैं और जब भी कोई दल द्रौपदी का डांडा टू की चढ़ाई के लिए निकलता है तो बेस कैंप में पहले से ही रेस्क्यू टीम को तैनात रखा जाता है।

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