भगवान परशुराम का जीवन का समूचा अभियान, संस्कार, संगठन, शक्ति और समरसता के लिए समर्पित रहा है – डा. श्रीप्रकाश मिश्र

धर्म राज्य

मातृभूमि सेवा मिशन के तत्वावधान में भगवान परशुराम की जयंती पर कार्यक्रम संपन्न।

भारतीय वाङमय में सबसे दीर्घजीवी चरित्र भगवान परशुराम का है। सतयुग के समापन से कलयुग के प्रारंभ तक उनका उल्लेख मिलता है। भारतीय इतिहास में इतना दीर्घजीवी चरित्र किसी का नहीं है। वे हमेशा निर्णायक और नियामक शक्ति रहे। दुष्टों का दमन और सत पुरूषों का संरक्षण उनके की चरित्र विषेशता है। उन्होंने अपने गुरूकुल के जीवन से ही समाज को संस्कार देने का अभियान आरंभ कर दिया था। यह विचार भगवान परशुराम जयंती की पूर्व संध्या पर मातृभूमि शिक्षा मंदिर द्वारा आयोजित कार्यक्रम में मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने व्यक्त किये। कार्यक्रम का शुभारम्भ वैदिक ब्रम्हचारियों द्वारा भगवान परशुराम के विग्रह के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन, माल्यार्पण एवं पुष्पार्चन के साथ भगवान परशुराम की जय जयकार से हुआ। डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा भगवान परशुराम का चरित्र अक्षय है। भगवान परशुराम का जीवन का समूचा अभियान, संस्कार, संगठन, शक्ति और समरसता के लिए समर्पित रहा है। अपने किशोर वय से है भगवान परशुराम ने समाज की कुप्रथाओं को रोककर एक संस्कारी समाज के निर्माण का अभियान छेड़ दिया था। उस काल में जितने अराजक और आतंकी तत्व थे भगवान परशुराम ने सबका दमन किया। भगवान परशुराम ने प्रत्येक व्यक्ति को उसकी प्रतिभा के अनुसार काम का अवसर देने का हर संभव प्रयास किया, जो आज के लिए समयानुकूल है। भगवान परशुराम जी नें मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम को विष्णु धनुष प्रदान किया और उन्होंने ही श्रीकृष्ण को सुदर्शन चक्र दिया। भगवान परशुराम महाभारत के प्रमुख योद्धा कर्ण, भीष्म,द्रोण और कृपाचार्य के गुरु हैं।

डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा जब भगवान परशुराम के हाथ में शासन व्यवस्था आई तो उन्होंने समाजिक उत्पीड़न झेल रहे समाज के शूद्र, वंचित और विधवा महिलाओं को मुख्यधारा में लाकर उल्लेखनीय काम किए। केरल प्रदेश की कोंकण की भूमि पर शूद्र और वनवासियों के यज्ञोपवीत संस्कार कराकर उन्हें ब्राह्मण होने के दायित्व से जोड़ने और फिर सामूहिक रूप से अक्षय तृतीया के दिन विवाह कराए। ये विवाह उन विधवा महिलाओं से भी कराए गए, जो परशुराम और सहस्त्रबाहू अर्जुन के बीच हुए युद्ध में विधवा हो गईं थीं। वे भगवान परशुराम ही थे, जिन्होंने वनवासी श्रृंगी ऋषि से दशरथ की पुत्री और भगवान श्रीराम की बहन शांता से विवाह कराया।

डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा समाज सुधार और जनता को रोजगार से जोड़ने में भी परशुराम की अंहम् भूमिका है। केरल, कच्छ और कोकण क्षेत्रों में जहां परशुराम ने समुद्र में डूबी खेती योग्य भूमि निकालने की तकनीक सुझाई, वहीं पर उपयोग जंगलों का सफाया कर भूमि को कृषि योग्य बनाने में भी किया। यहीं परशुराम ने शूद्र माने जाने वाले दरिद्र नारायणों को शिक्षित व दीक्षित कर उन्हें ब्राह्मण बनाया। यज्ञोपवीत संस्कार से जोड़ा और उस समय जो दुराचारी व आचरणहीन ब्राह्मण थे, उन्हें शूद्र घोषित कर उनका सामाजिक बहिष्कार किया। आज भी भगवान परशुराम के अंत्योदय के प्रकल्प अनूठे व अनुकरणीय हैं वर्तमान काल में जिन्हें रेखांकित किए जाने की आवश्यकता है। कार्यक्रम का समापन सर्वमंगल के निमित्त प्रार्थना से हुआ। कार्यक्रम में आश्रम के सदस्य, विद्यार्थी, कार्यकर्ता एवं गणमान्य जन उपस्थित रहें।

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