माता कूष्मांडा देवी की पूजा अर्चना करने से भक्तों के रोगों और शोकों का नाश होता है : महंत रोहित शास्त्री ज्योतिषाचार्य

धर्म

नवरात्र पूजन के चौथे दिन देवी दुर्गा के चौथे स्वरूप माता कूष्मांडा देवी की पूजा अर्चना की जाती है, इस विषय में महंत रोहित शास्त्री ज्योतिषाचार्य ने बताया त्रिवीध ताप युक्त संसार इनके उदर मे स्थित है, इसलिए ये भगवती “कूष्मांडा” कहलाती है , ईषत हँसने से अंड को अर्थात ब्रह्मांड को जो पैदा करती है ,वही शक्ति कूष्मांडा है,जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब इन्हीं देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी। अतः ये ही सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति हैं, इस दिन सुबह सुबह स्नान कर पूजन स्थल पर सर्वप्रथम कलश में भरने के लिए शुद्ध जल, गंगाजल, मोली, इत्र, साबुत सुपारी, दूर्वा, कलश में रखने के लिए कुछ सिक्के, पंचरत्न, अशोक या आम के 5 पत्ते, कलश ढकने के लिए मिट्टी का दीया, अक्षत, नारियल, नारियल पर लपेटने के लिए लाल कपडा,और उसमें उपस्थित देवी देवता की पूजा करनी चाहिए,उसके बाद साफ चौकी पर माता कूष्मांडा का चित्र या प्रतिमा स्थापित करें फिर माता कूष्मांडा का षोडशोपचार से पूजन करें, इस देवी को कुम्हड़े की बलि चढ़ाई जाती है कूष्मांडा का अर्थ है कुम्हड़े, मां को बलियों में कुम्हड़े (कद्दू ) की बलि सबसे ज्यादा प्रिय है, इसलिए इन्हें कूष्मांडा देवी कहा जाता है,माता को इस दिन मालपुए का भोग लगाने से माता प्रसन्न होती हैं तथा बुद्धि का विकास करती है, और साथ साथ निर्णय करने की शक्ति भी बढाती है,साथ में उन्हें भोजन में दही, हलवा खिलाना श्रेयस्कर है, इसके बाद फल, सूखे मेवे और सौभाग्य का सामान भेंट करना चाहिए और उसके बाद आरती करें।

माता का स्वरूप इस प्रकार है,देवी कूष्मांडा की आठ भुजाएं है इसलिए इन्हें अष्टभुजा भी कहा जाता है। इनके सात हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। माता का वाहन सिंह है।

कूष्मांडा देवी की पूजा अर्चना करने से भक्तों के रोगों और शोकों का नाश होता है तथा उसे आयु, यश, बल और आरोग्य प्राप्त होता है, यह देवी अत्यल्प सेवा और भक्ति से ही प्रसन्न होकर आशीर्वाद देती हैं।

माँ कूष्मांडा का उपासना मंत्र :-

“कुत्सित: कूष्मा कूष्मा-त्रिविधतापयुत: संसार:, स अण्डे मांसपेश्यामुदररूपायां यस्या: सा कूष्मांडा”

या देवी सर्वभूतेषु मां कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

अर्थ – हे मां! सर्वत्र विराजमान और कूष्माण्डा के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूं। हे मां, मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें।

-महंत रोहित शास्त्री (ज्योतिषाचार्य)
*अध्यक्ष श्री कैलख ज्योतिष एवं वैदिक संस्थान ट्रस्ट(पंजीकृत)*
*संपर्कसूत्र :-9858293195,7006711011,9796293195*

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