-एस.डी. पांडेय
भगवान शिव देवों के देव महादेव हैं। वे कल्याण के देवता है क्योंकि उनके हर रूप में कल्याणकारी गुण हैं। शिव के कई रूपों की महिमा अलग-अलग बताई गई है। शिव को श्मशान का देवता महाकाल भी कहते हैं। वे ऐसे देवता हैं जो भक्त की भक्ति से जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं, इसलिए उन्हें आशुतोष भी कहा जाता है। केवल जल का अभिषेक करने से ही शिव प्रसन्न हो जाते हैं और अपने भक्तों का कल्याण करते हैं। महादेव सृष्टि के संहार के देवता भी माने जाते हैं और सृष्टि के निर्माण के कारक भी। मानव-दानव, पशु-पक्षी, भूत-प्रेत, साधु-संत, सात्विक आध्यात्मिक साधना से जुड़े साधक और तामसी अधोर विद्या और तांत्रिक विद्या साधना के जानकार सभी शिव को अपना आराध्य मानते हैं। इस तरह महादेव तीनों लोकों के निवासियों से से जुड़े जुड़े हैं है और समाज के सभी वर्गों का वे प्रतिनिधित्व करते हैं। इसीलिए भगवान शिव को लोकनायक माना गया हैं। उनकी स्वीकृति सर्व समाज में हैं। साधक शिव तत्त्व को पाने के लिए अपने-अपने तरीके से शिव साधना करते हैं।
श्रावण माह शिव साधना के लिए सबसे उत्तम माह माना गया है। इस माह में शिव की साधना करने से वह यथाशीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं और अपने भक्तों का कल्याण करते हैं। श्रावण माह में गंगाजल और बेलपत्र से शिव के अभिषेक का विशेष महत्त्व है। श्रावण माह में भगवान शिव पृथ्वी लोक में निवास करते हैं और अपने भक्तों को अभय दान देते हैं।
श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा के सचिव एवं दक्षेश्वर महादेव मंदिर कनखल के मुख्य प्रबंधक एवं साधक श्री महंत रविंद्र पुरी महाराज कहते हैं कि हिंदू धर्म ग्रंथों में मान्यता है कि भगवान शिव श्रावण माह में पृथ्वी लोक में आकर अपने ससुराल कनखल में निवास करते हैं। मान्यता है कि सतयुग में ब्रह्माजी के मानस पुत्र प्रजापति दक्ष ने अपनी राजधानी कनखल में एक बड़े धार्मिक अनुष्ठान और यज्ञ का आयोजन किया था और उन्होंने अपनी पुत्री सती और उनके पति भगवान शिव को इस यज्ञ में निमंत्रण नहीं दिया। अपने पति के मना करने के बाद भी माता सती अपने मायके कनखल गई और उन्होंने अपने मायके में अपने पिता राजा दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में सभी देवी देवताओं, ऋषि मुनियों के स्थानों को पाया, परंतु अपने पति भगवान शिव के लिए कोई स्थान नहीं देखा तो उन्होंने अपने पिता राजा दक्ष से इसका कारण पूछा तो उन्होंने अपनी पुत्री सती के पति भगवान शिव के लिए अत्यंत अनुचित शब्दों का प्रयोग किया। इस महायज्ञ के आयोजन स्थल में अपने पति का अपमान होते देख सती इस धार्मिक अनुष्ठान के यज्ञ कुंड में धधकती अग्नि में कूद पड़ीं और उन्होंने अपने प्राण न्योछावर कर दिए और अपने पिता के द्वारा आयोजित इस धार्मिक अनुष्ठान और महायज्ञ का विध्वंस कर दिया। जिससे यज्ञ स्थल में हाहाकार मच गया। जब भगवान शिव को सती के यज्ञ कुंड में कूद कर अपने प्राणों की आहुति देने की घटना की जानकारी मिली तो वे अत्यंत क्रोधित हो गए हैं और तीनों लोक उनके इस क्रोध से कुपित होने लगे, मानी पूरा ब्रह्मांड समाप्त हो जाएगा और महाविनाश होगा। शिव ने अपनी जटाओं से अपने प्रिय गण वीरभद्र को प्रकट किया और कनखल अपने ससुराल भेजा, माता सती के शव को देखकर वीरभद्र अत्यंत क्रोधित हुए और उन्होंने इस घटना के लिए शिव के ससुर राजा दक्ष को दंडित करने के लिए उनके सिर को घड़ से अलग कर दिया। इस घटना से राजा दक्ष की राजधानी कनखल में हाहाकार मच गया। महायज्ञ के अनुष्ठान में आए सभी देवी-देवता भगवान शिव के पास गए और उनसे ब्रह्मांड को बचाने और इस विध्वंस को रोकने की प्रार्थना की। जिस पर भगवान शिव स्वयं कनखल अपने ससुराल आए और राजा दक्ष के घड़ पर बकरे का सिर लगाकर उन्हें अभय दान दिया। राजा दक्ष ने शिव का अपमान किए जाने पर उनसे क्षमा याचना की, तब जाकर विध्वंस रुका। राजा दक्ष की पत्नी और भगवान शिव की सास ने अपने दामाद भगवान शिव से अनुरोध किया कि श्रावण माह में वे एक महीना अपने ससुराल कनखल में ही वास करें। भगवान शिव ने अपनी सास की इस विनती को स्वीकार किया और तब से हर वर्ष श्रावण माह में भगवान शिव कनखल अपने ससुराल में ही निवास करते हैं।
धार्मिक मान्यता है कि शिव ने अपने अंशों से सभी देवी- देवताओं और शक्ति को जन्म दिया, इसलिए उन्हें देवों का देव महादेव कहा गया है। तभी महादेव की उपासना से सभी देवी- देवताओं की पूजा का फल प्राप्त होता है और सोमवार और प्रदोष के दिन शिव की पूजा का विशेष महत्त्व है। इसीलिए शिव भक्त सोमवार और प्रदोष के दिन भगवान शिव के शिवलिंग का रुद्राभिषेक करते हैं। भगवान शिव समतावादी समाज की स्थापना के रचनाकार हैं। जो भी देवी-देवता समाज में जिन दैत्यों दानवों और पशु- पक्षियों को त्याग देते हैं उन्हें भगवान शिव अंगीकार कर लेते हैं, भगवान शिव का यह संदेश हमें यह प्रेरणा प्रदान करता है कि सृष्टि के सभी प्राणियों के प्रति प्रेम और समान भाव रखो। जिससे समाज में सामूहिक रूप सामाजिक समरसता व्याप्त हो। भगवान शिव को निराकार और निर्गुण माना जाता है और वे सर्वव्यापी, अद्वैत, आदि और अनंत हैं।
हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार राजा दक्ष की पुत्री सती ने अगले जन्म में पर्वतराज हिमालय की पुत्री माता पार्वती के रूप में जन्म लिया था और माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए श्रावण माह में हरिद्वार में शिवालिक पर्वत माला मनसा देवी पर्वतमाला की तलहटी पर स्थित विल्वकेश्वर महादेव मंदिर में कठोर तपस्या की थी और प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनकी मनोकामना पूरी की थी और उन्हें अधर्धांगिनी के रूप में अंगीकार किया। मान्यता है कि श्रावण माह में भगवान शिव की पूजा करने से वह प्रसन्न होकर भक्तों को शिव तत्त्व प्रदान करते हैं। स्कंद पुराण में भगवान शिव ने सनत्कुमार को श्रावण माह के आध्यात्मिक महत्त्व के बारे में बताते हुए कहा कि उन्हें श्रावण माह अत्यधिक प्रिय है। धर्म सिंधु ग्रंथ में कहा गया है कि शिवलिंग की प्राण-प्रतिष्ठा के लिए श्रावण माह सर्वश्रेष्ठ है। ज्योतिषाचार्य पंडित प्रदीप कुमार जोशी बताते हैं कि चंद्र गणना के अनुसार श्रावण माह इस बार गुरु पूर्णिमा 21 जुलाई के अगले दिन श्रावण माह कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होगा और श्रावणी पूर्णिमा 19 अगस्त तक चलेगा।