काल भैरवाष्टमी-काल भैरव के जन्म से संबंधित धार्मिक कथाएंः जानिए

धर्म

काल भैरवाष्टमी 2022
ॐ कर कलित कपाल कुण्डली दण्ड पाणीतरुण तिमिर व्याल
यज्ञोपवीती कर्त्तु समया सपर्या विघ्न्नविच्छेद हेतवे
जयती बटुक नाथ सिद्धि साधकानाम
ॐ श्री बम् बटुक भैरवाय नमः

16 नवंबर 2022 दिन बुधवार को भैरवाष्टमी पर्व मनाया जाएगी।
भगवान शिव के उग्र स्वरूप को काल भैरव के नाम से जाना जाता है पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मार्गशीर्ष माह की अष्टमी तिथि को भैरवाष्टमी का पर्व मनाया जाता है। धार्मिक मान्यतानुसार भगवान शिव के चौथे स्वरूप के रूप में काल भैरव की उत्पत्ति हुई।(1–शरभ अवतार, 2–पिप्पलाद अवतार,3– नंदी अवतार,4–भैरव अवतार,)
धार्मिक मान्यतानुसार काल भैरव की पूर्ण श्रद्धा व विधिवत रूप से पूजन करने से शत्रु बाधा दूर होती है, भय से मुक्ति मिलती है, जिन जातकों पर ऊपरी हवाओं का प्रभाव अधिक होता है उससे मुक्ति प्रदान करते हैं काल भैरव। जिन जातकों पर राहु, केतु ,मंगल जैसे क्रूर ग्रहों का दुष्प्रभाव हो रहा हो, स्वास्थ्य संबंधी परेशानी हो रही हो, राहु की महादशा के कारण मानसिक तनाव हो रहा हो ऐसे जातकों को भैरवाष्टमी पर भैरव मंदिर जाकर सरसों के तेल से दीपक प्रज्वलित करना चाहिए व काले तिल, उड़द की दाल से बने हुए पकवान बटुक भैरव को अर्पित करने चाहिए। जिससे कि ग्रहों के नकारात्मक प्रभाव समाप्त हो जाते है। इसके अतिरिक्त बिल्वपत्र पर सफेद या लाल चंदन से ॐ नमः शिवाय लिखकर शिवलिंग पर चढ़ाना भी अति श्रेष्ठ माना गया है। भैरव के वाहन कुत्ते को काल भैरव जयंती पर भोजन कराएं। काले कुत्ते को मीठी रोटी और गुड़ के पुए खिलाने से आपके जीवन से कष्टों का निवारण होता है।
कथा
काल भैरव के जन्म से संबंधित दो धार्मिक कथाएं प्रचलित हैं एक कथा से विगत वर्ष हम आपको अवगत करा चुके हैं।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार एक बार श्री ब्रह्मा एवं श्री हरि विष्णु के बीच इस बात को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया कि हम दोनों में श्रेष्ठ कौन हैं विवाद का अंत नहीं हो रहा था ऐसे में नारद जी ने सभी देवी देवताओं एवं ऋषि-मुनियों से विवाद को सुलझाने के लिए भगवान शंकर के पास जाने का आग्रह किया। शिव धाम जाकर ऋषि-मुनियों ने भोलेनाथ से पूछा कि हे भोलेनाथ आप ही बताइए सबसे श्रेष्ठ कौन है। सभी देवी देवताओं एवं ऋषि-मुनियों के विचार विमर्श से निर्णय निकला की सबसे श्रेष्ठ भगवान शिव हैं। भगवान विष्णु ने यह बात स्वीकार कर ली परंतु ब्रह्मा जी को यह स्वीकार नहीं था। ब्रह्मा जी ने भगवान शंकर की वेशभूषा एवं उनके गणों की रूप सज्जा का अपमान करते हुए तिरस्कारयुक्त वचन कहे। भगवान शंकर स्वयं का अपमान तो सह सकते थे परंतु अपने गणों के रूप रंग को लेकर अपमान सहन नहीं कर पाए। उनके शरीर से (काल भैरव रूपी) क्रोध उत्पन्न हुआ। जिससे कम्पायमान होते हुए विशाल दंडधारी एक प्रचंडकाय काया प्रकट हुई। जिस ने क्रोधित होकर ब्रह्माजी का पांचवा सर अपने नाखून से धड़ से अलग कर दिया जिसके कारण भैरव को ब्रह्म हत्या का दोष भी लगा। शंकर का काल भैरव रूप ब्रह्मा जी को नष्ट कर दे इससे पूर्व ब्रह्मा जी ने भैरव देव से क्षमा याचना की और उन्हें शांत किया इस प्रकार भैरव देव की उत्पत्ति हुई।

-ज्योतिषाचार्य डॉ मंजू जोशी
8395806256

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