* *श्री हरि (देव) शयनी एकादशी तुलसी रोपण, चातुर्मास प्रारंभ*
17 जुलाई 2024 दिन बुधवार को तुलसी रोपण व देव शयनी एकादशी का उपवास रखा जाएगा तथा देवशयनी एकादशी से ही चातुर्मास प्रारंभ होगा।
हिंदू धर्म में चातुरमास का विशेष महत्व है आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु चार माह की योग निद्रा में चले जाते हैं। 4 माह तक प्रकृति का संचालन भगवान भोलेनाथ करते हैं। चातुर्मास में सभी प्रकार के मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं। और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की देवप्रबोधनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु जागते हैं। और सभी मांगलिक कार्य पुनः प्रारम्भ हो जाते है। देवशयनी एकादशी को तुलसी पौध रोपण भी किया जाता है और देवी तुलसी की पूजा अर्चना की जाती है।
*17 जुलाई 2024 को प्रातः 8:54 से भद्रा प्रारंभ होने के कारण तुलसी पूजन का समय सूर्योदय से प्रातः 8:53 तक रहेगा।*
तुलसी की पूजा करते समय इस मंत्र का पाठ करें-:
*महाप्रसाद जननी सर्व सौभाग्यवर्धिनी*,
*आधि व्याधि हरा नित्यं तुलसी त्वं नमोस्तुते*।
देवी तुलसी को सोलह श्रृंगार अर्पित कर घी के दीपक जलाएं और चातुर्मास पूर्ण होने तक देवी तुलसी की प्रतिदिन आरती करें।
देवशयनी एकादशी पर सर्वार्थ सिद्धियोग तथा अमृत सिद्धि योग होने से एकादशी पर्व अति शुभ फल दाई रहेगा।
*शुभ मुहूर्त*
एकादशी तिथि प्रारंभ 16 जुलाई 2024 रात्रि 8:35 से 17 जुलाई 2024 रात्रि 9:04 तक।
व्रत पारण 18 जुलाई 2024 प्रातः 5:35 से 8:20 मिनट तक।
*पूजा विधि*
देवशयनी एकादशी के दिन प्रातः घर व मंदिर को स्वच्छ करने के उपरांत गंगाजल से स्नान करें। व्रत का संकल्प लें व भगवान विष्णु मां तुलसी का स्मरण करें। तदोपरांत पीले रंग का आसन बिछाकर उस पर विष्णु जी की प्रतिमा स्थापित करें और भगवान विष्णु को रोली, कुमकुम, धूप, दीप, पीले फूल अर्पित करें। भगवान विष्णु के सहस्त्रनाम का पाठ करें। घी के दीपक से आरती करें। पीली वस्तुओं का भोग अर्पित करें। भगवान विष्णु की स्तुति इस मंत्र का जाप करें…
*‘सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जगत्सुप्तं भवेदिदम्। विबुद्धे त्वयि बुद्धं च जगत्सर्व चराचरम्।।*
एकादशी के दिन विधिपूर्वक फलाहार कर उपवाव रखें व अन्न वस्त्र दान आदि के बाद उपवास का पारण कर सकते हैं।
*कई जातकों के मस्तिष्क में यह सवाल अवश्य आता होगा कि देव शयनी एकादशी पर भगवान विष्णु योगनिद्रा में क्यों जाते हैं?*
इस परिपेक्ष में अनेक कथाएं हमारे पुराणों में लिखी गई है जिसमें से एक से मैं आपको अवगत कराना चाहूंगी।
*राजा बलि को दिया वरदान*
वामन पुराण के अनुसार असुरों के राजा बलि ने अपने बल और पराक्रम से तीनों लोकों पर अपना अधिकार प्राप्त कर लिया। और राजा बलि में अहंकार भर गया। राजा बलि के आधिपत्य को देखकर इंद्रदेव और अन्य देवता घबराकर भगवान विष्णु की शरण में गए और उनसे मदद करने की प्रार्थना की। देवताओं की पुकार सुनकर भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण किया और राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंच गए।
(क्योंकि राजा बलि खुद को महादानी व सत्यवादी मानते थे।) वामन अवतार में भगवान विष्णु ने राजा बलि से तीन पग भूमि मांगी। पहले पग में पृथ्वी व दूसरे पग में आकाश नाप लिया। अब तीसरा पग रखने के लिए कुछ बचा नहीं था तो राजा बलि ने भगवान विष्णु से कहा प्रभु तीसरा पग मेरे सिर पर रख दें। भगवान वामन ने ऐसा ही किया। इस तरह देवताओं की चिंता खत्म हो गई और वहीं विष्णु भगवान, राजा बलि के दान-धर्म से बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने राजा बलि से वरदान मांगने को कहा तो बलि ने उनसे पाताल में बसने का वर मांग लिया। बलि की इच्छा पूर्ति के लिए भगवान विष्णु पाताल लोक चले गए। भगवान विष्णु के पाताल जाने के उपरांत सभी देवतागण और माता लक्ष्मी चिंतित हो गए। अपने पति भगवान विष्णु को वापस लाने के लिए माता लक्ष्मी गरीब स्त्री बनकर राजा बलि के पास पहुंची और उन्हें अपना भाई बनाकर राखी बांध दी। बदले में भगवान विष्णु को पाताल लोक से वापस ले जाने का वचन ले लिया। पाताल से विदा लेते समय भगवान विष्णु ने राजा बलि को वरदान दिया कि वह आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी से कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तक पाताल लोक में वास करेंगे। पाताल लोक में उनके रहने की इस अवधि को ही चातुर मास कहा जाता है।
*डॉ.मंजू जोशी ज्योतिषाचार्य*
*8395806256*