भारत के लिए स्वामी विवेकानंद के विचार चिंतन और संदेश प्रत्येक भारतीय के लिए अमूल्य धरोहर है: डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र

राष्ट्रीय

मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा आजादी के अमृतोत्सव के उपलक्ष्य में स्वामी विवेकानन्द की पुण्यतिथि की पूर्व संध्या पर श्रद्धांजलि कार्यक्रम सम्पन्न

कुरुक्षेत्र\स्वामी विवेकानंद भारतीय और विश्व इतिहास के उन महान व्यक्तियों में से हैं जो राष्ट्रीय जीवन को एक नई दिशा प्रदान करने में एक अमृतधारा की भांति हैं । स्वामी विवेकानंद के व्यक्तित्व और विचारों में भारतीय संस्कृति परंपरा के सर्वश्रेष्ठ तत्व निहित थे। उनका जीवन भारत के लिए वरदान थे। स्वामी जी का संपूर्ण जीवन माँ भारती और भारतवासियों की सेवा हेतु समर्पित था। यह विचार मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने आजादी के अमृतोत्सव के उपलक्ष्य में स्वामी विवेकानन्द की पुण्यतिथि की पूर्व संध्या पर मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा आश्रम परिसर में आयोजित श्रद्धांजलि कार्यक्रम में व्यक्त किए। कार्यक्रम का शुभारंभ स्वामी विवेकानन्द के चित्र पर पुष्पार्चन एवं दीप प्रज्वलन से हुआ। स्वामी विवेकानन्द की पुण्यतिथि की पूर्व संध्या पर मातृभूमि शिक्षा मन्दिर के विद्यार्थियों ने स्वामी विवेकानन्द को आदरांजलि आर्पित की।

डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि स्वामी विवेकानंद का व्यक्तित्व विशाल समुद्र की भाॅति था। वे आधुनिक भारत के एक आदर्श प्रतिनिधि होने के अतिरिक्त वैदिक धर्म एवं संस्कृति के समस्त स्वरूपों के उज्जवल प्रतीक थे। स्वामी विवेकानन्द भारत के बहुमूल्य रत्न एक जीवित क्रांति के मशाल थे, एक व्यक्ति नही एक चमत्कार थे। आज से लगभग 130 वर्ष पहले पराधीन और पददलित भारत के जिस एकाकी और अकिंचन योद्धा संयासी ने हजारों मील दूर विदेश में नितांत अपरिचितों के बीच अपनी ओजमयी वाणी में भारतीय धर्म-साधना के चिरंतन सत्यों का जयघोष किया। उनका वह उद्घोष आज भी पूरी दुनिया के लोगो में भारतीय अस्मिता की अलख जगा रहा है। स्वामी विवेकानन्द सामायिक भारत में उन कुशल शिल्पियों में हैं जिन्होने आधारभूत भारतीय जीवन-मूल्यों की आधुनिक अंतराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में विवेक संगत व्याख्या की। भारत के लिए स्वामी जी के विचार चिंतन और संदेश प्रत्येक भारतीय के लिए अमूल्य धरोहर है तथा उनके जीवन शैली और आदर्श प्रत्येक युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत्र हैं।

डॉ. मिश्र ने कहा कि स्वामी विवेकानंद जी प्राचीन भारतीय संस्कृति के केवल मानने वाले ही नही बल्कि उनके सच्चे उपासक भी थे। स्वामी जी ने भारत के जन-समुदाय के सामाजिक ,धार्मिक एवं आर्थिक परिस्थितियों को निकट से देखा तथा समझा था। इस जानकारी के पृष्ठभूमि में ही उनका दार्शनिक चिन्तन का उदभव हुआ । स्वामी जी भारतीय संस्कृति के प्राचीनता और महत्व को जानने और समझने के लिए भारत वासियों को सदैव प्रेरित करते रहे। संस्कृति के संदर्भ में उनका मानना था कि ’वैदिक संस्कृति भारत की आत्मा है और यहाँ की आध्यामिकता भारत का मेरूदण्ड है। स्वामी विवेकानंद शिक्षा के विषय में कहतेे है कि सच्ची शिक्षा वह है जिससे मनुष्य की मानसिक शक्तियों का विकास हो। वह शब्दों को रटना मात्र नहीं है। वह व्यक्ति की मानसिक शक्तियों का ऐसा विकास है , जिससे वह स्वयंमेव स्वतंत्रतापूर्वक विचार कर ठीक-ठीक निर्णय कर सकें।

डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा स्वामी विवेकानंद अस्पृश्यता को भारतीय समाज का कोढ़ मानते थे. विवेकानंद ने अस्पृश्यता का घोर विरोध किया. उनका कहना था कि ईश्वर कि दृष्टि में सब मनुष्य समान हैं, अत: किसी विशेष जाति या वर्ग को हीन दृष्टि से देखना अत्यंत क्रूरता है । आज आत्मनिर्भर भारत के निर्माण का रास्ता स्वामी विवेकानंद के विचारों में समाहित है। स्वामी विवेकानंद ने अपने जीवन का प्रधान लक्ष्य भारत के नैतिक तथा सामाजिक पुनः उद्धार के लिए उन्होंने एक अनुप्रेरित कार्यकर्ता के रूप में अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। मातृभूमि शिक्षा मंदिर के विद्यार्थियों ने भी स्वामी विवेकानंद के जीवन पर अपने विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम का समापन शांतिपाठ से हुआ।

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