बड़े भाग्य से और अनेक पुण्यों के उदय के बाद मानव जन्म मिलता है

राष्ट्रीय

-प्रो. रामेश्वर मिश्र पंकज

आयु सीमित है ।
पूर्ण स्वस्थ व्यक्ति की भी आयु औसत 100 वर्ष ही है।

इसमें से बाल्यावस्था और अत्यंत जीर्ण शीर्ण दशा को छोड़ दें तो मुश्किल से 60 से 70 वर्ष आपको पुरुषार्थ और अध्ययन के लिए मिलते हैं।।
ज्ञान अनंत है और भारतीय शास्त्र तो अत्यंत विराट और विशाल हैं।
भारत का इतिहास और भारत के धर्म शास्त्र और इतिहास पुराण, अध्यात्म शास्त्र उपनिषद् आदि विशाल ज्ञान राशि हैं।
वेद तो सबके लिए सहज सुगम भी नहीं है अतः वेदों का ज्ञान विशेष सुपात्र को ही मिल सकता है।यदि आपको ज्ञान की अधिक अभीप्सा है तो वेद ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए ।
यदि इतनी सामर्थ्य नहीं है तोउपनिषद तथा अन्य धर्म शास्त्र एवं पुराण अवश्य पढ़ने चाहिए ।
इसके साथ ही ज्ञानियों के द्वारा लिखी गई पुस्तकें पढ़नी चाहिए।

बदमाशों और दुष्टों की लिखी पुस्तकें पढ़कर फिर उनके खण्डन में समय नष्ट करना पाप है ।एक तो ऐसों की पुस्तकें पढ़ना ही पाप है ।वह उन्हें महत्व देना है ।उनके पुस्तकों की बिक्री बढ़ाना है। उन्हें पाप कर्मों के लिए धन कमाने में सहायक बनना है ।
और फिर उस पर चर्चा पाप का प्रसार है।।

हमें केवल प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति स्तर के व्यक्ति के द्वारा भारत के विरुद्ध कही गई बात का खंडन करना चाहिए।

जहां तक सरकारी इतिहास लेखकों की बात है ,कांग्रेस के राज में बहुत ही अलग स्थिति थी।
मूर्ख एवं अल्पज्ञ मामूली लोगों को इतिहासकार बना दिया गया क्योंकि प्रतिभाशाली लोग तो ऐसा घटिया काम कर ही नहीं सकते।
गए गुजरे लोगों के खण्डन में समय नष्ट करना भी तमस है।

अगर भाजपा सरकार सही इतिहास लेखन नहीं करवा रही या सही इतिहास लेखकों को पाठ्यक्रम का अंग नहीं बना रही है तो इसके लिए दोषी भाजपा शासन है।
पुराने मामूली किस्म के बदमाश लोगों की कोई हैसियत नहीं है कि वे शासन को नियंत्रित कर सके।

इसलिए अपनी कमी या गैर जिम्मेदारी या दोष के लिए शासन स्वयं जिम्मेदार है ।।

आपके पास जो भी समय है ,उसमें या तो शासनपर सत्य के ग्रहण और प्रसार के लिए दबाव डालना चाहिए अथवा सतसाहित्य और सच्चे इतिहास तथा शास्त्रों एवं सद ग्रंथों का अध्ययन करना चाहिए ।

कांग्रेश शासन में इतिहासकार प्रचारित किए गए लोगों के द्वारा फैलाए गए झूठ को हर हिंदू बच्चा भी जानता है कि
उनमें झूठ है और उसमें एक पल भी नहीं लगाना चाहिए।
सहज रूप से सच्चा इतिहास जो आपको लगे, उसे पढ़िए।

नहीं तो पुराण पढ़िए।

पुराण सबसे प्रामाणिक इतिहास ग्रंथ है ।।

रोमिला थापर या सतीश चंद्र या इरफान हबीब या उनके पिताजी या उनकी चेला मंडली या उनके अन्य तामसिक संस्करण देवदत्त पटनायक जैसे अनपढ़ मूर्ख की बकवास में समय लगाना आत्मवंचना है और आत्मिक क्षय है।

लोग संचार माध्यमों के द्वारा आकर्षित होकर उधर जा रहे हैं तो उसमें हाय हाय करना भी समय का नाशहै।

या तो आप संचार माध्यमों में अपना प्रभाव बढ़ाइए या भाजपा को संचार माध्यमों को सत्य के लिए समर्पित और मर्यादित करने और रखने का नागरिक कर्तव्य निभाने वाला कानून लाने का दबाव बनाइए ।।

माननीय प्रधानमंत्री जी ने लाल किले से नागरिक कर्तव्यों की बात कही भी है।
उन कर्तव्यों के निर्धारण की मांग कीजिए और इस दिशा में ध्यान दीजिए ।।

कचरा कूड़ा पढ़ने में और उसका खंडन करने में समय नष्ट करना मानव जीवन को व्यर्थ बिताना है।

प्रगतिवादी और स्वयं को आधुनिक कहने वाले किसी भी लेखक या लेखिका का कुछ भी पढ़ना समय का नाश है।
वे आपके मित्र हैं तो उनको सद्बुद्धि दीजिए।
परंतु मित्रता की आड़ में उनकी प्रशंसा करने का पाप मत करिए ।
जीवन को आत्म नियंत्रित कीजिए।
समय का निर्धारण कीजिए ।
सत्य और धर्म के अध्ययन में ही समय लगाइए ।।

कूड़े कचरे में समय लगाना अपने चित्त के भीतर विषैले जीवों को पालना है। इससे बचे ।।

इसके साथ ही एक सीधा सा सूत्र है कि जो भी व्यक्ति भारत की किसी भी जाति या किसी भी वर्ण की संपूर्ण समूह यानी संपूर्ण जाति और संपूर्ण वर्ण के रूप में निंदा करता है अथवा पुराणों का कुछ इस प्रकार भाष्य करता है जिससे ग्लानि और हीनता पैदा हो या समाज में अपने ही अतीत के और इतिहास के प्रति लज्जा और ग्लानि पैदा हो तथा गौरव का भाव नहीं पैदा हो और सत्य का प्रकाश आपके भीतर आपके चित्त को उत्फुल्ल नहीं कर रहा हो,
तो ऐसे कूड़े को पढ़ने और उसके खंडन में एक पल भी लगाना मानव जीवन का अनादर है ।
इससे बचना चाहिए ।

दुर्लभ मानव जीवन का एक एक पल सत्य और धर्म के बोध की साधना और आचरण की साधना में ही बीते।
इसी में मानव होने की सार्थकता है ।

अब तक यदि कुछ अन्य कर भी रहे हो तो अब वह सब त्याग कर सत्य और धर्म के लिए समर्पित होने में जीवन की धन्यता है।।

रोमिला थापर से देवदत्त पटनायक तक सैकड़ों कथित लेखकों की लफंगा गिरी में जुटी हुई एक पूरी पीढ़ी है बल्कि तीन तीन पीढ़ियां हैं।
उनसे इतनी दूरी आवश्यक है ,जितनी औरंगजेब या माओ जे़ डोंग या अन्य नर पिशाचों से दूरी आवश्यक है।

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