निरोग दीर्घायु के लिए आयुर्वेदोक्त ये सरल उपाय अपनाएंः डॉ. सत्यनारायण शर्मा

स्वास्थ्य

विश्व में जितनी भी चिकित्सा पद्धतियां हैं उनमें भारतीय आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति को छोड़कर सभी का एक मात्र उद्देश्य है – रोग से पीड़ित व्यक्ति के कष्टों को दूर करना , किन्तु भारतीय आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान में यह उद्देश्य दूसरे स्थान पर आता है।

आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान का सर्वप्रथम उद्देश्य है कि व्यक्ति रोगी हो ही नही । सबसे पहला उद्देश्य है स्वस्थस्य स्वस्थ्यरक्षणम ” अर्थात स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना !
यदि फिर भी देश, काल परिस्थिति या अन्य अप्राकृतिक कारणवश व्यक्ति बीमार हो जाये तो उसके विकार को दूर करना , दूसरा उद्देश्य है “आतुरस्य विकार प्रशमनं च ।”

स्वस्थ व्यक्ति कभी बीमार न हो, उसका जीवन निरोगी दीर्घायु हो इसके लिए आयुर्वेद शास्त्र में ऐसे जीवन को जीने के तरीके बताए गए हैं जिनको आयुर्वेदोपदेश कहा गया है, उन उपदेशों में से एक अत्यंत महत्वपूर्ण नित्य पालनीय उपदेश है :-
भोजनान्ते पिवेद तक्रं निशांते च पिवेद जलं।
निशामध्ये पिवेद दुग्धं कीं वैद्यस्य प्रयोजनम।।

इस उपदेश का तात्पर्य है जो स्वस्थ व्यक्ति भोजन के तुरन्त पश्चात तक्र ( मट्ठे) का , रात्रि के अंतिम समय अर्थात सुबह उठने पर जल पिता है तथा आधी रात्रि में गाय के दूध का सेवन करता है, उसे वैद्य की क्या आवश्यकता ? अर्थात उसे रोग ही नही होते।

इस उपदेश में नित्य सेवनीय तीन द्रव पदार्थों के सेवन के विषय मे बताया गया है, यहां हम एक एक करके तीनों पेय पदार्थों के विषय मे आयुर्वदिक दृष्टिकोण से विमर्श करेंगे। आज के संदेश में प्रथम सेवनीय द्रव तक्र विषयक वर्णन प्रस्तुत है ।

भोजन्ते पिवेद तक्रं स्वस्थ व्यक्ति को भोजन के आखिर में तक्र अर्थात मट्ठे का नित्य सेवन करना चाहिए ।
आयुर्वेद विज्ञानानुसार तक्र के निम्न आठ गुण हैं :-

क्षुद्वार्धनं नेत्ररूजापहम् च प्राणपदं शोणितमाँसदं च।
आमाभिद्यातं कफवातहन्तृ त्वष्ठौ गुणावे कथिता हि तक्रे।।

अर्थात मट्ठा भूख बढ़ाने वाला, नेत्र रोग नाशक, बल,रक्त एवं मांस को बढ़ाने वाला, आम दोष को दूर करने वाला तथा कफ एवं वात नाशक होता है।
इसके गुणों से प्रभावित होकर ही “योगरत्नाकर” के रचयिता ने अद्भुत परिकल्पना को निम्न रूप में अंकित किया है:-

कैलाशे यदि तक्रमस्ति गिरिशः किं नीलकण्ठोभवेद्
बैकुण्ठे यदि कृष्णतामनुभवेद्यापि किं केशवः।
इन्द्रो दुर्भगता क्षयं द्विजपतिर्लम्बोरत्व गणः
कुष्ठित्वं च कुबेरको दहनतामश्ग्निश्च किं विन्दति।

अर्थात यदि कैलाश पर्वत पर मट्ठा होता तो क्या शिव का कण्ठ नीला होता? नही। (यह मठ्ठे की विषनाशक गुण के विषय को वर्णित करता है)

बैकुण्ठ में यदि मट्ठा होता तो केशव(विष्णुजी) सांवले होते क्या? नही। (यह मट्ठे के रूप निखार गुण को इंगित करता है।)

क्या इन्द्र को दुर्भग नामक शारिरिक दुर्गुण होता ? नही(यह मट्ठे के सौंदर्य वर्धक गुण की ओर लक्ष्य करता है।)

चन्द्रमा को क्षय रोग नही होता। (यह क्षय रोगोत्पादक विषाणु नाशक गुणों को इंगित करता है।)

मट्ठे का उपयोग होता तो क्या गणेश जी का पेट विशाल होता। (यह मट्ठे के मेदनाशक गुणों को बताता है।)

यदि कुबेर इसका सेवन करते तो उनको कुष्ठ रोग नही होता। यह मट्ठे के कुष्ठघ्न गुण ( त्वचा विकार नाशक ) को स्पष्ट करता है।

अग्नि देव यदि मट्ठा सेवन करते तो उनमें दाह नही होता। (यह दाहहर गुणों को स्पष्ट करता है।)

उपरोक्त उद्धरणों से मट्ठे के रोगनाशक गुणों का स्पष्ट ज्ञान होता है।

मानव शरीर में किये गए आहार से शरीर के धारण , समस्त किर्याओं के संचालन हेतु जिन सात धातुओं का निर्माण होता है, भोजन के अंत मे मट्ठा सेवन से ,इसके कषाय रस युक्त होने से पाचन होकर सबसे पहली धातु ‘रस’ का दोषरहित सही मात्रा में निर्माण होता है। मधुर रस युक्त होने के कारण यह दूसरी धातु ‘रक्त’ का भी ठीक प्रकार से निमार्ण हो उसकी वृद्धि होती है तथा अम्ल रस युक्त होने से मज्जा धातु का सम्यक निर्माण होता है।

स्वस्थ व्यक्ति द्वारा नित्य भोजनोत्तर तक्र ( मट्ठा) सेवन से मन्दाग्नि , वायुरोग, अरुचि, नदियों का अवरोध , गर विष प्रभाव, वमन, प्रसेक ( कफविकार से लार का गिरना ) विषमज्वर ( मलेरिया आदि मच्छरों के काटने से होने वाले बुखार ) , पाण्डु रोग ( पीलिया) , मेदरोग (मोटापा), ग्रहणी ( कोलाइटिस), अर्श (बवासीर ) , मूत्रग्रह , भगंदर , प्रमेह (मूत्र में धातु जाना, शुगर आदि रोग) , गुल्म ( ग्रन्थि) , अतिसार ( दस्त आदि) , उदर रोग , कुष्ठ ( कोढ़ आदि), शोथ ( सूजन), तृष्णा (प्यास अधिक लगना), त्वचा विकार, कृमि विकार आदि पचास से भी अधिक रोग नही सताते।

स्वस्थ व्यक्ति को भोजन के पश्चात मट्ठे में गौ घृत में भुना हींग, भुना जीरा व सैंधा नमक मिला कर सेवन करना चाहिए ।

मट्ठे का नित्य सेवन करें और अपने स्वास्थ्य की रक्षा करें ( क्रमश:)

!! इति शुभम !!

नारायण आयुर्वेद चिकित्सा केन्द्र
गली न.3,बिरला फार्म, हरीपुर कलां।
एवं
नारायण चिकित्सा केन्द्र
गौसाई गली ,भीमगोडा, हरिद्वार।।

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