स्वामी श्रद्धानंद मातृभाषा हिन्दी को शिक्षा का माध्यम बनाने वाले प्रथम व्यक्ति थे: डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र

राज्य

मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा आयोजित स्वामी श्रद्धानंद जी के 96वें बलिदान दिवस के उपलक्ष्य में वैदिक यज्ञ कार्यक्रम संपन्न

मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा स्वामी श्रद्धानंद जी के 96वें बलिदान दिवस के उपलक्ष्य में मातृभूमि शिक्षा मंदिर के विद्यार्थियों ने स्वामी श्रद्धानंद की शिक्षाओं को आत्मसात करने का संकल्प लिया

कुरुक्षेत्र\
स्वामी श्रद्धानंद आर्यसमाज के महान संन्यासी थे जिन्होंने स्वामी दयानन्द सरस्वती की शिक्षाओं का प्रसार किया। वे भारत के उन महान राष्ट्रभक्त सन्यासियों में अग्रणी थे, जिन्होंने अपना जीवन स्वाधीनता, स्वराज्य, शिक्षा तथा वैदिक धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित कर दिया था। उन्होंने गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार सहित अनेक शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना की और हिन्दू समाज व भारत को संगठित करने तथा 1920 के दशक में शुद्धि आन्दोलन चलाने में महती भूमिका अदा की। यह विचार मातृभूमि सेवा मिशन के सस्थापक डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने स्वामी श्रद्धानंद जी के 96वें बलिदान दिवस के अवसर पर मिशन द्वारा आयोजित वैदिक यज्ञ, युवा संवाद एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम में व्यक्त किए। कार्यक्रम में मातृभूमि शिक्षा मंदिर के विद्यार्थियों ने वैदिक यज्ञ में मंत्रोंच्चारण कर विश्व मंगल की कामना करते हुए स्वामी श्रद्धानंद को श्रद्धांजलि आर्पित की। कार्यक्रम में मातृभूमि शिक्षा मंदिर के विद्यार्थियों ने स्वामी श्रद्धानंद की शिक्षाओं को आत्मसात करने का संकल्प लिया।
डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि स्वामी श्रद्धानंद ने सामाजिक समरसता सौहार्द एकता समान शिक्षा व शोषण विहीन समाज की संरचना कर स्वस्थ एवं उद्दात जीवन का दर्शन प्रतिपादित किया। स्वामी श्रद्धानंद ने स्वामी दयानंद से प्रेरणा प्राप्त कर राष्ट्र एवं वैदिक धर्म में चेतना व जागरूकता लाने का कार्य किया था। उन्होंने शुद्धि आंदोलन चलाए और भारत में सामाजिक शिक्षा व धर्म के क्षेत्रों में योगदान दिया। डॉ. भीमराव आम्बेडकर ने सन 1922 में कहा था कि श्रद्धानंद अछूतों के महानतम और सबसे सच्चे हितैषी हैं। मुंशी राम से महात्मा मुंशीराम और महात्मा मुंशीराम से स्वामी श्रद्धानंद तक का उनका सफर बहुत ही प्रेरणादायक है।
डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि स्वामी श्रद्धानंद मातृभाषा हिन्दी को शिक्षा का माध्यम बनाने वाले प्रथम व्यक्ति थे। उन्होंने बड़े बड़े शिक्षा शास्त्रीयों के दिल से निकाल दिया की हिन्दी के माधयम से विज्ञान की उच्च शिक्षा नहीं हो सकती। स्वामी श्रद्धानंद के मार्गदर्शन में गुरुकुल के अनेक स्नातकों द्वारा विज्ञान, दर्शन तथा इतिहास विषयों के मौलिक ग्रंथों की रचना की गई तथा परिभाषिक शब्दों को निर्माण किया गया। स्वामी श्रद्धानंद शिक्षा को केवल पुरुषों तक ही सीमित करने के पक्षपाती नहीं थे, वह चाहते थे कि भारतीय जनसंख्या का अर्धअंग भी विकसित हो जाए इसलिए उन्होंने आर्य कन्या पाठशालाओं की स्थापना हेतु भीपूरा पूरा ध्यान दिया जिसके कारण गुरुकुलों और महाविद्यालयों का जाल पूरे देश में फैल गया और उनके ही प्रयास हिन्दी को राष्ट्र भाषा का महत्वपूर्ण पद मिला।
आभार ज्ञापन कार्यक्रम के संयोजक एवं रामपाल आय ने किया। कार्यक्रम में शिक्षक बाबू राम, हरि व्यास, गुरप्रीत सिंह एवं मिशन के सदस्यों सहित अनेक धार्मिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक संस्थाओं के प्रतिनिधि जन उपस्थित रहे। कार्यक्रम का समापन शांतिपाठ से हुआ।

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