रास लीला मंचन देख भाव विभोर हुए दर्शक

राज्य

जी हिन्दुस्तान संवाद
देवरिया। सोनूघाट, शहर के निकट आईटीआई चौराहे के समीप रविवार की रात सोंदा महोत्सव के प्रथम दिन मथुरा वृंदा वन से आई रास मंडली ने कृष्ण जन्म का किया मंचन ,द्वापर युग में भोजवंशी राजा उग्रसेन मथुरा में राज्य करता था। उसके आततायी पुत्र कंस ने उसे गद्दी से उतार दिया और स्वयं मथुरा का राजा बन बैठा। कंस की एक बहन देवकी थी, जिसका विवाह वसुदेव नामक यदुवंशी सरदार से हुआ था।
एक समय कंस अपनी बहन देवकी को उसकी ससुराल पहुंचाने जा रहा था।
रास्ते में आकाशवाणी हुई- ‘हे कंस, जिस देवकी को तू बड़े प्रेम से ले जा रहा है, उसी में तेरा काल बसता है। इसी के गर्भ से उत्पन्न आठवां बालक तेरा वध करेगा।’ यह सुनकर कंस वसुदेव को मारने के लिए उद्यत हुआ।
तब देवकी ने उससे विनयपूर्वक कहा- ‘मेरे गर्भ से जो संतान होगी, उसे मैं तुम्हारे सामने ला दूंगी। बहनोई को मारने से क्या लाभ है?’
कंस ने देवकी की बात मान ली और मथुरा वापस चला आया। उसने वसुदेव और देवकी को कारागृह में डाल दिया। परंतु उसने अपने पिता समेत, देवकी और वासुदेव को कारागार में डाल दिया।
इसी बीच नारद मुनि ने कंस से भेंट की और उसे और विचलित कर दिया की क्या पता कौन सी संतान उसके विनाश का कारण बने । यह सुनते ही कंस ने यह तय कर लिया की वह देवकी और वासुदेव की सभी संतानों को मार डालेगा।
वसुदेव-देवकी के एक-एक करके सात बच्चे हुए और सातों को जन्म लेते ही कंस ने मार डाला। अब आठवां बच्चा होने वाला था। कारागार में उन पर कड़े पहरे बैठा दिए गए। उसी समय नंद की पत्नी यशोदा को भी बच्चा होने वाला था।
उन्होंने वसुदेव-देवकी के दुखी जीवन को देख आठवें बच्चे की रक्षा का उपाय रचा। जिस समय वसुदेव-देवकी को पुत्र पैदा हुआ, उसी समय संयोग से यशोदा के गर्भ से एक कन्या का जन्म हुआ, जो और कुछ नहीं सिर्फ ‘माया’ थी।
जिस कोठरी में देवकी-वसुदेव कैद थे, उसमें अचानक प्रकाश हुआ और उनके सामने शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण किए चतुर्भुज भगवान प्रकट हुए। दोनों भगवान के चरणों में गिर पड़े। तब भगवान ने उनसे कहा- ‘अब मैं पुनः नवजात शिशु का रूप धारण कर लेता हूं।
गोकुल मंडल के मुखिया नंद और उनकी पत्नी यशोदा भी उनके कष्ट से बहुत दुखी थे। देवकी और वासुदेव के सातवें पुत्र को वासुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी के गर्भ में स्थानांतरित किया गया।
यह भी भगवान् विष्णु की माया थी। रोहिणी, नन्द और यशोदा के साथ ही वृंदावन में रहतीं थी। उस बच्चे को बाद में बलराम के नाम से जाना गया। बलराम को शेषनाग का अवतार माना जाता है। उधर वृंदावन में यशोदा भी गर्भ
तुम मुझे इसी समय अपने मित्र नंदजी के घर वृंदावन में भेज आओ और उनके यहां जो कन्या जन्मी है, उसे लाकर कंस के हवाले कर दो।
इस समय वातावरण अनुकूल नहीं है। फिर भी तुम चिंता न करो। जागते हुए पहरेदार सो जाएंगे, कारागृह के फाटक अपने आप खुल जाएंगे और उफनती अथाह यमुना तुमको पार जाने का मार्ग दे देगी।’
उसी समय वसुदेव नवजात शिशु-रूप श्रीकृष्ण को सूप में रखकर कारागृह से निकल पड़े और अथाह यमुना को पार कर नंदजी के घर पहुंचे।
वासुदेव ने वैसा ही किया जैसा उन्हें भगवान विष्णु ने करने को कहा था। जैसे ही देवकी ने नन्हे कृष्ण को जन्म दिया, वासुदेव उन्हें एक टोकरी में रख वृंदावन के लिए निकल पढ़े।
वह दिन आलौकिक था, सारे कारागार के पहरेदार सो रहे थे। यमुना नदी में भयंकर तूफान था। ज्यूँ ही वासुदेव यमुना को पार करने लगे, नदी ने उन्हें रास्ता दे दिया।
उस तूफान और बारिश के बीच नन्हे कृष्ण की रक्षा के लिए शेषनाग भी पहुँच गए। वह दृश्य अत्यंत अद्भुत था। भगवान् स्वयं पृथ्वी पर आये थे, दुष्टों के दमन के लिए
वहां उन्होंने नवजात शिशु को यशोदा के साथ सुला दिया और कन्या को लेकर मथुरा आ गए। कारागृह के फाटक पूर्ववत बंद हो गए। लीला का शुभारंभ डाव अशोक राय, मोहन गुप्ता ने फीता काट कर किया इस दौरान डाव दिनेश चंद गुप्ता, राजेश मिश्र, कौशल तिवारी कुशल गुरु प्रसाद आदि प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *