मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव पर जन्माष्टमी के उपलक्ष्य में आयोजित मातृभूमि शिक्षा मंदिर के विद्यार्थियों के मध्य सांस्कृतिक कार्यक्रम संपन्न
कुरुक्षेत्र। भगवान श्रीकृष्ण हम सबके भीतर एक आकर्षक और आनंदमय धारा हैं। जीवन की समग्रता और जीवन की परिपूर्णता ही कृष्ण हो जाना है। हमारे शास्त्रें में कहा गया है कि केवल और केवल एकमात्र भगवान श्रीकृष्ण ऐसे देव अथवा व्यक्तित्व हैं जो चौसठ कलाओं से परिपूर्ण हैं। यह विचार मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने मातृभूमि शिक्षा मंदिर के विद्यार्थियों के मध्य योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव पर जन्माष्टमी के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम में व्यक्त किए। इस अवसर पर मातृभूमि शिक्षा मंदिर के विद्यार्थियों द्वारा भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं से संबंधित सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए गए।
डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने अपने संदेश में कहा कि जीवन में सभी गुणों की परिपूर्णता ही श्रीकृष्ण हो जाना है।भगवान श्रीकृष्ण एक तरफ युद्ध में परिपूर्ण हैं तो दूसरी तरफ शांति में परिपूर्ण हैं। एक तरफ शस्त्र में परिपूर्ण हैं तो दूसरी तरफ शास्त्र में परिपूर्ण हैं। परिपूर्ण वत्ता हैं तो परिपूर्ण श्रोता भी हैं। परिपूर्ण नृत्यकार हैं तो परिपूर्ण गीतकार भी हैं। परिपूर्ण भगवान हैं तो परिपूर्ण भक्त भी हैं। जिस प्रकार से संसार की सभी नदियाँ गिरकर सागर में मिल जाती हैं उसी प्रकार मनुष्य के समस्त गुणों का मिलकर परिपूर्ण मात्रा में एक जीवन में अथवा एक चरित्र विशेष में आ जाना ही श्रीकृष्ण बन जाना है।
डॉ. मिश्र ने कहा कि श्रीकृष्ण ने जो भी किया सदा परिपूर्ण ही किया है। प्रत्येक कार्य की स्वीकारोक्ति और उसके साथ साथ कार्य कुशलता और कार्य निपुणता वर्तमान समय में योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण के जीवन की सबसे प्रधान शिक्षा है। एक प्रसन्न एवं आनंदचित्त व्यक्ति कभी किसी के लिए समस्याएँ नहीं खड़ी करता है, परन्तु भावनात्मक रूप से दुखी व्यक्ति अक्सर दूसरों को दुखी करते हैं, या उनकी राह में अवरोध पैदा करते हैं। जिस व्यक्ति को लगता है कि उसके साथ अन्याय हुआ है, वह अपने अहंकार के कारण दूसरों के साथ भी अन्यायपूर्ण व्यवहार करता है। कार्यक्रम में मिशन के सदस्यों सहित अनेक सामाजिक, धार्मिक संस्थाओं के प्रतिनिधि के गणमान्य जन उपस्थित रहे।